________________
१२० | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
००००००००००००
००००००००००००
माण
MINIL
...... SPREAKS
CONTHURE
तियों पर बहुत कुछ सफलता प्राप्त की। महाराणा अरिसिंह की माधवराव सिन्धिया के साथ उज्जैन में हुई लड़ाई में अगरचन्द वीरतापूर्वक लड़ता हुआ घायल हुआ एवं कैद कर लिया गया। बाद में रूपाहेली के ठाकुर शिवसिंह द्वारा भेजे गये बावरियों ने उसे छुड़वाया । माधवराव सिन्धिया द्वारा उदयपुर को घेरने के समय तथा टोपलमगरी व गंगार की लड़ाइयों में भी अगरचन्द महाराणा के साथ रहा । अरिसिंह की मृत्यु के पश्चात् महाराणा हमीरसिंह द्वितीय (वि० सं १८२६-३४) के समय मेवाड़ की विकट स्थिति संभालने में यह बड़वा अगरचन्द के साथ रहा। महाराणा भीमसिंह (वि० सं० १८३४-८५) ने इसे प्रधान के पद पर नियुक्त किया। अम्बाजी इंगलिया के प्रतिनिधि गणेशपन्त के साथ मेवाड़ की हुई विभिन्न लड़ाइयों में भी अगरचन्द ने भाग लिया। अमरचन्द द्वारा मेवाड़ के महाराणाओं एवं लम्बे समय तक मेवाड़ राज्य के लिए की गई सेवाओं से प्रसन्न होकर उपर्युक्त तीनों महाराणाओं ने समय-समय पर अगर चन्द को विभिन्न रुक्के प्रदान किये, उनसे एवं मराठों, मेवाड़ के महाराणाओं एवं अन्य शासकों से हुए उसके पत्र व्यवहार से तथा 'मेहताओं की तवारीख' से अगरचन्द के सैनिक व राजनीतिक योगदान और मेवाड़ राज्य की रक्षा हेतु उसकी कुर्बानी की पुष्टि होती है । सोमचन्द गाँधी
महाराणा भीमसिंह (वि० सं० १८३४-८५) का शासनकाल मेवाड़ राज्य में भयंकर उथल-पुथल एवं अराजकता के काल के रूप में प्रसिद्ध है । एक ओर मराठों के आक्रमणों से मेवाड़ त्रस्त था तो दूसरी ओर मेवाड़ के अनेक सामन्त-सरदार महाराणा से बागी हो गये थे। चूंडावतों एवं शक्तावतों के मध्य भी पारस्परिक वैमनस्य चरम सीमा पर पहुँच गया था। राज्य कार्य में चुडावतों का प्रभावी दखल था। सलूम्बर का रावत भीमसिंह, कुराबड़ का रावत अर्जुनसिंह तथा आमेट का रावत प्रतापसिंह महाराणा भीमसिंह के पास रहकर राजकाज देखते थे।
इन विषम परिस्थितियों में राजकोष भी एकदम रिक्त था । राज्य प्रबन्ध एवं अन्य साधारण खर्च भी कर्ज लेकर चलाना पड़ता था । वि० सं० १८४१ में महाराणा के जन्मोत्सव पर रुपयों की आवश्यकता हुई । राजमाता ने उपर्युक्त तीनों चूडाबत सरदारों से इसका प्रबन्ध करने के लिए कहा किन्तु इन्होंने टालमटूल की, फलस्वरूप राजमाता काफी अप्रसन्न हुई।
सोमचन्द गांधी इस समय जनानी ड्योढ़ी पर नियुक्त था। अनुकूत स्थिति देखकर रामप्यारी के माध्यम से उसने राजमाता को कहलाया कि अगर उसे राज्य का प्रधान बना दिया जाय तो वह जन्मोत्सव के लिए रुपयों का प्रबन्ध कर सकता है। राजमाता ने उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और उसे प्रधान बना दिया। सोमचन्द ने शक्तावत सरदारों से मेलजोल बढ़ाया एवं रुपयों का प्रबन्ध कर दिया । ५.
प्रधान बनते ही सोमचन्द का दायित्व बढ़ गया । वह अत्यन्त योग्य, नीति-निपुण एवं कार्यकुशल व्यक्ति था । सबसे पहले उसने मेवाड़ के सरदारों के मध्य व्याप्त आपसी वैमनस्य को समाप्त करने का निश्चय किया। कई असन्तुष्ट सरदारों को खिलअत व सिरोपाव आदि भेजकर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास किया । कोटा का झाला जालिमसिंह उस समय राजस्थान की राजनीति में सर्वाधिक प्रभावशाली था, सोमचन्द ने बुद्धिमानी से काम लेकर उसे अपनी ओर मिला लिया। भीण्डर का स्वामी शक्तावत मोहकमसिंह पिछले बीस वर्षों से मेवाड़ के शासकों के विरुद्ध चल रहा था, सोमचन्द की सलाह पर महाराणा स्वयं भीण्डर गये, उस समय झाला जालिमसिंह भी पांच हजार की फौज लेकर भीण्डर पहुंच गया और मोहकमसिंह को समझाकर उदयपुर ले आये । मेवाड़ को शोचनीय स्थिति से उबारने के लिए
AUTIL
A
RIY
१ शोध पत्रिका, वर्ष १८, अंक २, पृ०८१-८२ । २ ओझा-राजपूताने का इतिहास, द्वितीय भाग, (उदयपुर), पृ० १३१४-१५ । ३ ओझा-राजपूताने का इतिहास, द्वितीय भाग (उदयपुर) पृ० ६८३ । ४ वीर विनोद, भाग २, पृ० १७०६ । ५ ओझा--राजपूताने का इतिहास, द्वितीय भाग (उदयपुर) पृ०६८५ । ६ ओझा-राजपूताने का इतिहास, द्वितीय भाग (उदयपुर), पृ० ६८५ । ७ वीर विनोद, भाग-दो, पृ० १७०६ ।
MARO
Amideaommenational
TO Pivareta Personal use only
www.janenbrary.org