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________________ १२२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ ०००००००००००० 000000000000 पराक्रम की कथाएँ आज भी मेवाड़ में प्रचलित हैं। मालदास अदम्य योद्धा और श्रेष्ठ सेनापति ही नहीं अपितु योग्य प्रशासक भी था। समकालीन कवि किशना आढ़ा कृत 'भीम विलास'२ तथा पीछोली एवं सीसारमा स्थित सुरह व शिलालेख में मेहता मालदास के कार्यों का उल्लेख उपलब्ध होता है। मेहता रामसिंह इतिहास प्रसिद्ध जालसी मेहता की वंशपरम्परा में मेहता ऋषभदास हुआ, मेहता रामसिंह उसी का पुत्र था। यह अपने समय का सर्वाधिक प्रभावशाली, कार्यदक्ष, स्वामीभक्त, नीतिनिपुण, दूरदर्शी एवं बुद्धिमान था। इसके इन्हीं गुणों से प्रसन्न होकर महाराणा भीमसिंह ने वि०सं० १८७५ श्रावणादि में आषाढ़ सुदी ३ को बदनौर परगने का आरणा गाँव उसे जागीर में दिया । भीमसिंह के काल में मेवाड़ में अंग्रेजों का हस्तक्षेप आरम्भ हो गया था और वि०सं० १८७४ में अंग्रेजों के । साथ सन्धि होने के पश्चात् तो वहाँ द्वेध शासन की स्थिति पैदा हो गई, फलस्वरूप मेवाड़ की प्रजा परेशान हो गई। मेवाड़ के तत्कालीन पोलिटिकल एजेन्ट कप्तान कॉव ने इस परेशानी का मूल कारण उस समय के प्रधान शिवदयाल गलूंड्या की अकुशल व्यवस्था को माना और उसे इस पद से हटा कर वि०सं० १८८५ के भाद्रपद में मेहता रामसिंह को मेवाड़ राज्य का प्रधान बना दिया। रामसिंह ने योग्यतापूर्वक व्यवस्था की, जिसके परिणामस्वरूप मेवाड़ की आर्थिक स्थिति कुछ ही समय में सुधर गई और खिराज के चार लाख रुपये एवं अन्य छोटे-बड़े कर्ज अंग्रेजों को चुका दिये । रामसिंह की इस दक्षता से प्रसन्न होकर महाराणा ने चार गाँव क्रमश: जयनगर, ककरोल, दौलतपुरा और बलदरखा उसे बख्शीस में दिये । महाराणा जवानसिंह (वि०सं० १८८५-६५) के समय में आर्थिक मामलों में सन्देह के कारण कुछ समय के लिए इसे प्रधान के पद से हटा दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि राज्य की आर्थिक स्थिति पहले से भी अधिक खराब हो गई, मजबूर होकर इसे पुन: प्रधान बनाया गया। इसने अंग्रेज सरकार से लिखा-पढ़ी करके कर्ज के दो लाख रुपये माफ करा दिये और चढ़ा हुआ खिराज भी चुका दिया। इस पर इसकी ईमानदारी की काफी प्रशंसा हुई और महाराणा ने इसे सिरोपाव दिया, किन्तु रामसिंह के विरोधी उसके उत्कर्ष को सहन नहीं कर पा रहे थे, वे महाराणा के पास जाकर रामसिंह के विरुद्ध कान भरने लगे । कप्तान काँब रामसिंह की योग्यता से काफी प्रभावित था, वह जब तक मेवाड़ में रहा, रामसिंह प्रधान बना रहा लेकिन उसके जाने के बाद रामसिंह को इस्तीफा देकर हटना पड़ा। महाराणा जवानसिंह की वि०सं० १८६५ में मृत्यु होने के बाद उनके उत्तराधिकारी के प्रश्न पर उस समय के प्रधान मेहता शेरसिंह को एक षड़यन्त्र के आरोप में अपने पद से हटना पड़ा और पुनः उसे मेवाड़ का प्रधान बनाया गया। महाराणा भीमसिंह के समय से ही महाराणाओं एवं सामन्त सरदारों के मध्म छटूंद व चाकरी के सम्बन्ध में विवाद चल रहा था और कोई समझौता नहीं हो पा रहा था, रामसिंह ने तत्कालीन पोलिटिकल एजेन्ट रॉबिन्सन से एक नया कौलनामा वि०सं० १८९६ में तैयार करा कर लागू कराया। वि०सं० १८९७ में खेरवाड़ा में भीलों की एक सेना संगठित करने में रामसिंह ने काफी उद्योग किया। इसी वर्ष रामसिंह का पुत्र बख्तावरसिंह जब बीमार हुआ तो महाराणा सरदारसिंह (वि०सं० १८६५-६६) उसकी हवेली पर आये एवं पूछताछ की। महाराणा सरूपसिंह (वि०सं० १८९६-१९१८) भी वि०सं० १९०० चैत्र वदी २ को रामसिंह की हवेली पर मेहमान हुए, उसकी मानवृद्धि की, ताजीम दी तथा 'काकाजी' की उपाधि देकर उसे सम्मानित किया। इतना होते हुए भी वि०सं० १६०१ में उसके विरोधियों की शिकायत पर उसे प्रधान पद से पूनः हटा दिया गया और १९०३ में तो एक षडयन्त्र के आरोप में उसे मेवाड़ छोड़कर ही ब्यावर चले जाना पड़ा । उसके जाने के बाद उसकी जायदाद जब्त कर ली गई तथा उसके बाल MITHILITY DMATERI १ टाड-एनल्स एण्ड एन्टिक्विटीज आफ राजस्थान, पृ० ३५० । २ भीम विलास, छन्द सं० २६२-६७, साहित्य संस्थान, रा०वि० उदयपुर की हस्त प्रति सं० १२३ । ३ वीर विनोद, भाग-२, पृ० १७७४-७५ एवं १७७७-७८ । ४ उदयपुर स्थित 'मालदास जी की सहरी' का नामकरण इसी मालदास की स्मृति में रखा गया है। ५ ओझा--राजपूताने का इतिहास, द्वितीय भाग (उदयपुर) पृ० १३२४ । ६ वही, पृ० १०२८ । MORRON TOBER & - Private P OS Wwwsanenbral yorg
SR No.211762
Book TitleMevad Rajya ki Raksha me Jainiyo ka Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDev Kothari
PublisherZ_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf
Publication Year1976
Total Pages11
LanguageHindi
ClassificationArticle & Society
File Size2 MB
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