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२७६ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
११. सम्वत् १७३० के विजयदशमी गुरुवार को मालवा के शाहपुर में 'सती मृगांकलेखारास' तपागच्छीय कवि विवेक विजय ने चार खण्डों वाला बनाया। उसमें ३५ ढालें हैं।
श्री वीर विजय गुरु सुपसायो, मृगांक लेखा रास गायो रे । श्री ऋषभदेव संघ सानिद्धे, सरस सम्बन्ध सवायो रे। सुखीयाने सुणंता सुख वाद्धे, विरह टले. विजोगो रे । विवेकविजय सती गुण सुण्यां पांगे वंछित भोगा रे। सम्वत सतरंजीवा (१७३०) वरचे, विजय दशमी गुरुवार रे ।
साहपुर सो भीत मालवे रास रच्यो जयकार रे । १२. सम्वत् १७१८ के वैशाख सुदी १० को भोपावर में शान्तिनाथजी के प्रसाद से तपागच्छीय कवि श्री मानविजय ने नव तत्व रास बनाया जो १५ ढालों में है।
सम्वत सतर अठारई, वैशाख सुदि दशमी सार।
श्री शान्तीसर सुदसाय, पुर भोपावर मांहि ॥ मालवा प्रदेश में कतिपय जैन तीर्थ भी हैं जिनमें मगसी पारसनाथ श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों के मान्य हैं। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनेक कवि जिन्होंने इस तीर्थ की यात्रा की थी उन्होंने यहाँ के पार्श्वनाथ के कई स्तुति-काव्य बनाये हैं। उनमें से विजयगच्छीय श्री उदयसागरसूरि रचित 'मगसी पार्श्वनाथ स्तवन' की कुछ पंक्तियाँ नीचे दी जा रही हैं
इस पाससामी सिद्धि गामी, मालव देसईं जाणीयइ । मगसिय मंडण दुरित खंडण, नाम हियडइ आणीयई। श्री उदयसागर सूरि पाय प्रणमइ अहनिस पास जणंद ओ।
जिनराज आज दया दीठ तु मन हुवई आंणद । पृष्ठ ५३० में सुबुद्धि विजय के मगसीजी पाश्र्व १० भव स्तवन का विवरण जै० गु० का० भा० ३ में है।
कई रचनाओं का रचना स्थान संदिग्ध है जैसे १५वीं शताब्दी के अन्त या १६वीं शताब्दी के प्रारम्भ में रचे एक महावीर स्तवन का विवरण जैन गुर्जर कवियों भाग-१ पृष्ठ ३३ में छपा है। उसमें यान विहार का अन्त में उल्लेख है जिसे श्री देसाई ने उज्जैन में बताया है। पर उद्धरित पदों में मालव या उज्जैन का कहीं उल्लेख नहीं है । कवि का नाम भाव सुन्दर बतलाया है वह भी संदिग्ध है। क्योंकि वहाँ इस नाम का दूसरा अर्थ भी हो सकता है। प्रारम्भ में सोमसुन्दर सूरि को स्मरण किया है अतः स्तवन प्राचीन है । अंतिम पद्य में यान विहार पाठ छपा है । देसाई ने ऊपर के विवरण में पान विहार दिया है । पता नहीं शुद्ध पाठ कौनसा है। उज्जैन में इस नाम का कौनसा विहार या मंदिर है-यह मुझे तो पता नहीं है। देसाई ने इसे उज्जैन में बताया है, इसका आधार अज्ञात है।
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