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मालवा के श्वेताम्बर जैन भाषा कवि २७३
२. सम्वत् १५१६ में खरतरगच्छ की पिटपलक शाखा के स्थापक विद्वान जैनाचार्य जिनवर्द्धनसूरि के शिष्य न्यायसुन्दर उपाध्याय ने विद्या विलास नरेन्द्र चौपाई की रचना नरवर में की । ३५७ पद्यों का यह चरित्र - काव्य अभी अप्रकाशित है । इसके वे अंतिम तीन पद्य नीचे दिये जा रहे हैं जिनमें कवि ने ग्रन्थ का नाम, गुरु व अपना नाम तथा रचनाकाल एवं स्थान का उल्लेख किया है
इणि परि पूरउ पाली आऊ । देवलोक पहुतउ नर राउ | खरतरगच्छ जिनवर्धन सूरि । तासु सीस बहु आणंद पूरि ॥ श्री अ न्याय सुन्दर उवझाय । नरवर किध प्रबन्ध सुभाग ॥ संवत् पनर सोल (१५१६) वरसंमि । संघ वयण से विहिया सुरंमि ॥ विद्या विलास नरिंद चरित्र । भविय लोय कहूँ अव पवित्र ॥ जेनर पढई सुई सांभलई | पुण्य प्रभाव मनोरथ फलई ॥
३. सम्वत् १५६१ में कवि ईश्वर सूरि ने ललितांग चरित्र नामक सुन्दर काव्य दशपुर (मन्दसौर) में बनाया । काव्य की दृष्टि से यह बहुत उल्लेखनीय एवं मनोहर है । इसकी प्रशस्ति में कुछ ऐतिहासिक तथ्य भी प्राप्त हैं। इसकी भाषा भी कुछ अपभ्रंश प्रभावित है । इसे अवश्य प्रकाशित करना चाहिये । पाटण भण्डार में इसकी प्रति है । इसमें छन्दों का वैविध्य भी उल्लेखनीय है । प्रशस्ति देखिये -
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परिवार जुत्र ॥
महि महति मालव देश, घणा कणय लच्छि निवेस | सिंह नयर मंडव दुग्ग, अहि नवउ जाण कि सग्ग || सिंह अतुल बल गुणवंत, श्री ग्यास सुत जयवंत । समरथ साहस धीर, श्री पातिसाह निसीर ॥ तसु रज्जि सकल प्रधान, गुरु रुव रयण निधान । हिन्दुआ राय वजीर, श्री पुंज मयणह धीर ॥ श्रीमाल वंश वयंश, मानिनी मानस हंस सोना राय जीवन पुत्र बहु पुत्र श्री मलिक माकर पहि, हय गय सुदृढ़ बहु चहि । श्री पुंज पुज नरीन्द्र बहु कवित केलि सुछंद ॥ दश पुरह नयर मझारि, श्री संघ तणइ आधारि । श्री शांति सूरि सुपसाई, दुह दुरिय दूर पुलाई ॥ सेसि रसु विक्रम काल (१५६१), ए चरिय रचिउ रसाल । जां ध्रुव रवि ससि नभर, तहाँ जयउ गच्छ संडेर || वाचंत वीर चरित, विच्छरउ जगि जय तसु मणुअ भव धन्न, श्री पासनाहु
कित्ति ।
प्रसन्न ॥
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