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________________ विभाजन के नियम संख्या को वर्ग और घन में बदलने की विशिष्ट परिस्थितियाँ, भिन्न के घन और घनमूलों को प्राप्त करने की विधि, अनुपात के नियम, और प्रतिशत और सोने की शुद्धता ज्ञात करने के नियम । महावीर उन आरंभिक गणितज्ञों में से हैं जिन्होंने दो अज्ञात राशि वाली दो रैखिक समीकरणों की प्रणाली अनिश्चित रैखिक समीकरणों की प्रणाली, और दूसरे घात की अनिश्चित समीकरण प्रणाली को हल करने के नियम बनाए। इसके अतिरिक्त उन्होंने कई अज्ञात राशि वाले रैखिक समीकरणों को हल करने की मौलिक विधियों, चौबे और आठवें घात के समीकरणों के मूल निकालने की विधि, अंकगणित श्रेढ़ी के पहले पद और श्रेढ़ी का अंतर ज्ञात करने की विधि और ज्यामिति श्रेढ़ी के किसी भी पद और योगफल को प्राप्त करने की विधि भी बनाई । भारतीय गणित के इतिहास में महावीर ने सबसे पहले बताया कि लघुत्तम समान गुणज क्या है। महावीर ने ही धन संख्याओं के वर्गमूलों के दोहरे अर्थ बताए और यह भी बताया कि ऋण संख्याओं के वर्गमूल नहीं प्राप्त किए जा सकते हैं । महावीर और उनके बाद के गणितज्ञों के ग्रंथों में श्रीधर ने “गणितसारसंग्रह " से कई नियम और प्रश्न लिए हैं। नारायण के ग्रन्थों में भी मिलते हैं। सातवीं-नवीं शताब्दी में अज्ञात है। गहरा संबंध है। विशेषकर श्रीधर पर महावीर का बहुत प्रभाव है। वैसे ही प्रश्न और नियम आर्यभट्ट प्रथम, श्रीपति, भास्कर द्वितीय और ब्रह्मगुप्त के बाद महावीर के शिष्यों ने जो काम किया वह अभी तक ५. संदर्भ साहित्य ० प० युश्क्येविच इस्तोरिया मातेमाविकी व सरयेदनिये वेका, मास्को, १६६१. १. २. द० या० स्त्रोइक, कास्की ग्रोचेर्क इस्तोरी मातेमातिकी, इ० ब० पोग्रेविस्स्की द्वारा जर्मन से अनूदित और संवद्धित, मास्को, १६६४. ३. क० प्र० रिव्निकोव, इस्तोरिया मातेमातिकी, खण्ड १, मास्को, १९६०. ४. श्रीधर, पतिगणित प्रो० फ० वोल्कोवा तथा प्र० इ० बोलोदारकी द्वारा संस्कृत से अनूदित प्र० इ० बोलोदारकी द्वारा परिचयात्मक लेख और ६. ७. " रूसी से अनुवाद -- सुश्री मंजरी सहाय अनुवाद संशोधन - प्रो० हेमचंद पांडे टिप्पणियां “ फीजिको - मते मातीचेस्किये नऊकि व स्नानाख वोस्तोका" १९६६, विपु०, I (IV), पृ० १४१-२४६. अ० प० यूक्येविच और ब० प्र० रोजेन्पयेल्द, मातेमातिका व स्वानाख वोस्तोका व सरयेदनिये वेका “ईज इस्तोरी नऊकि इ तेनिक व स्त्रानाख वोस्तोका, " १९६०, विपु० I, पृ० ३४६-४२१. B. Datta, A.N. Singh, History of Hindu Mathematics, Vol. 1-2, Bombay, 1962. D.E. Smith, History of Mathematics, Vol. 1-2, Boston - London, 1930. ८. G. Sarton, Introduction to the History of Science, Vol. 1–3, Baltimore, 1927-1947. e. M. Rangācārya, The Ganita - Sara - Sangraha of Mahāvīrācārya, Ed. with English translation and notes, Madras, 1912. १०. W.E. Clark, The Aryabhatiya of Aryabhata, An Ancient Indian Work on Mathematics and Astronomic, Chicago, 1930. 99. "Algebra with Arithmatics and Mensuration from the Sanskrit of Brahmagupta and Bhascara" Translated by H.T. Colebrooke, London, 1817. Jain Education International १२. “ The Maha - Bhāskariya by Bhāskara I” Ed. and translated into English with notes and comments by K.S. Shukla, Lucknow, 1960. १३. “ The Maha-Siddhanta by āryabhata II”, Ed. with explanatory notes by Sudhakara Dwivedi, Benaras, 1910: १४. “ The Ganita tilaka by Sripati", Ed. with comment of Simhatilaka Suri by H.R. Kapadia, Baroda, 1935. १५. “The Ganita- Kaumudi by Nārāyana", Pt. 1, Ed. by Padmakara Dwvedi Jyautishacharya, Benaras, 1936. है ८ आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211694
Book TitleMahaviracharya krut Ganitasar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlexzander Volodraski
PublisherZ_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Publication Year1987
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationArticle & Mathematics
File Size2 MB
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