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प्रसिद्ध है । यंत्र रचनात्मक शैली में चार्टों द्वारा विषय को स्पष्ट किया है । अर्थ संदृष्टि अधिकार इसी प्रकार की रचना है। विवेचनात्मक शैली में सैद्धान्तिक विषयों को प्रश्नोत्तर पद्धति में विस्तृत विवेचन कर के युक्ति व उदाहरणों से स्पष्ट किया है। मोक्षमार्ग प्रकाशक इसी श्रेणी में आता है ।
'सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका' विवेचनात्मक गद्यशैली में लिखी गई है। प्रारम्भ में इकहत्तर पृष्ठ की पीठिका है। आज नवीन शैली में सम्पादित ग्रन्थों की भूमिका का बड़ा महत्व माना जाता है। शैली के क्षेत्र में दो सौ बीस वर्ष पूर्व लिखी गई सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका की पीठिका आधुनिक भूमिका का आरंभिक रूप है. उसमें हलकापन कहीं भी देखने को नहीं मिलता है। इसके पढ़ने से ग्रंथ का पूरा हार्द खुल जाता है एवं इस ग्रन्थ के पढ़ने में आनेवाली पाठक की समस्त कठिनाइयाँ दूर हो जाती हैं । हिन्दी आत्मकथा साहित्य में जो महत्व
पंडित टोडरमलजी की व्याख्यात्मक टीकाएँ दो महाकवि बनारसीदास के अर्द्ध कथानक को प्राप्त है,
रूपों में पाई जाती हैं :
aa महत्व हिन्दी भूमिका साहित्य में 'सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका' की पीठिका का है ।
पद्यात्मक रचनाएँ दो रूपों में उपलब्ध हैं : (1 ) भक्ति परक, ( 2 ) प्रशस्ति परक ।
भक्तिपरक रचनाओं में गोम्मटसार पूजा एवं ग्रन्थों के आदि, मध्य और अन्त में मंगलाचरण के रूप में प्राप्त फुटकर पद्यात्मक रचनाएं हैं । ग्रन्थों के अन्त में लिखी गई परिचयात्मक प्रशस्तियाँ प्रशस्तिपरक श्र ेणी में आती हैं ।
1. संस्कृत ग्रन्थों की टीकाएँ । 2. प्राकृत ग्रन्थों की टीकाएँ ।
संस्कृत ग्रन्थों की टीकाएँ आत्मानुशासन भाषा टीका और पुरुषार्थ सिद्धयुपाय भाषा टीका है। प्राकृत ग्रन्थों में गौम्मटसार जीवकाण्ड, गोम्मटसार कर्मकाण्ड, लब्धिसार-क्षपणासार और त्रिलोकसार हैं, जिनकी भाषा टीकाएँ उन्होंने लिखी हैं ।
गोम्मटसार जीवकाण्ड, गोम्मटसार कर्मकाण्ड लब्धिसार और क्षपणसार की भाषा टीकाएँ पंडित टोडरमलजी ने अलग-अलग बनाई थीं, परन्तु उन चारों टीकाओं को परस्पर एक-दूसरे से सम्बन्धित एवं परस्पर
एक का अध्ययन दूसरे के अध्ययन में सहायक जानकर उन्होंने उक्त चारों टीकाओं को मिलाकर एक कर दिया तथा उसका नाम "सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका " रख दिया ।
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मोक्षमार्ग प्रकाशक पंडित टोडरमलजी का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ का आधार कोई एक ग्रन्थ न होकर सम्पूर्ण जैन साहित्य है । यह सम्पूर्ण जैन साहित्य को अपने में समेट लेने का एक सार्थक प्रयत्न था, पर खेद है कि यह ग्रन्थराज पूर्ण न हो सका, अन्यथा यह कहने में संकोच न होता कि यदि सम्पूर्ण जैन बाङ्गमय कहीं एक जगह सरल, सुबोध और जनभाषा में देखना हो तो मोक्षमार्ग प्रकाशक को देख लीजिए । अपूर्ण होने पर भी यह अपनी अपूर्वता के लिए प्रसिद्ध है । यह एक अत्यन्त लोकप्रिय ग्रन्थ है जिसके कई संस्करण निकल चुके हैं एवं खड़ी बोली में
6. ( क ) बाबू ज्ञानचन्दजी जैन लाहौर, (वि० सं० 1954 ) । (ख) जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई (सन् 1911 ) । (ग) बाबू पन्नालालजी चौधरी, वाराणसी (वी० नि० सं० 2451 ) । (घ) अमन्त कीर्ति ग्रन्थमाला, बम्बई (वी० नि० सं० 2463 ) ।
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(ड) सस्ती ग्रन्थमाला, दिल्ली
(च) वही ।
(छ) वही ।
(ज)
वही ।
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