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________________ पता नहीं लगता। उसकी पृष्ठभूमिमें एक भवन है, जिसके मध्यमें एक विशाल शिखर तथा आजू-बाजूमें ३-३ छोटे-छोटे शिखर और उनके ऊपर विपरीत मुखी छोटी-बड़ी दो-दो विशाल फहराती हुई नुकीली ध्वजाएँ हैं। अन्य कई साक्ष्योंके आधार पर यह सिद्ध होता है कि महाकवि रइधू सरस्वतीके महान् उपासक थे। उन्होंने अपनेको 'सरस्वती निलय' एवं 'सरस्वती निकेतन' जैसे विशेषणोंसे विभूषित किया है। एक स्थानपर उन्होंने यह भी लिखा है कि प्रारम्भिक जीवनमें अकस्मात् ही स्वप्नमें उन्हें सरस्वतीने आकर कवि बननेकी प्रेरणा दी थी और उसमें सभी प्रकारकी सफलता का उसने उन्हें आश्वासन दिया था। कविने उसीकी आज्ञाको मानकर कविताके क्षेत्रमें प्रवेश किया और फलस्वरूप वे विख्यात महाकविके रूपमें साहित्यिक क्षेत्रमें प्रसिद्ध हो गये । कोई असम्भव नहीं, यदि महाकवि कालिदासके समान ही महाकवि रईधूको भी सरस्वती सिद्ध रही हो। क्योंकि अपने छोटेसे जीवनकालमें ही २३से भी अधिक महान् एवं विशाल ग्रन्थोंकी रचना कर पाना सामान्य कविके लिए सम्भव नहीं था। अपभ्रंशके क्षेत्रमें इतने विशाल समृद्ध साहित्यका प्रणेता रइधूको छोड़कर अभी तक अन्य कोई भी दूसरा कवि अवतरित नहीं हुआ। जहां तक महिलाओंके चित्रालेखनके प्रसंग हैं, उनमें उनके नेत्र मत्स्याकृतिके विशाल, किन्तु उनकी पुतलियाँ छोटी चित्रित हैं एवं कटाक्षरेखा कर्णपर्यन्त चित्रित की गयी हैं। नेत्रोंको तो इतना : गया है कि किसी अजनबीको उन्हें देखकर चश्मा लगानेका भ्रम हो सकता है। उनके केशपाश गुंथे हुए एवं माथेके पीछे कुछ ऊंचाई पर वत्तु लाकार जूड़ाकृतिमें बद्ध है। उनकी नाक बड़ी एवं नुकीली है। कहीं-कहीं नाक एवं मुख एक दूसरेमें प्रविष्ट करनेकी होड़ लगाये हुए जैसे दिखायी पड़ते हैं । ओष्ठ फैले हुए, चिबुक नुकीली एवं छोटी, श्रवण अंडाकृति वाले एवं लघु हैं, किन्तु दोनों पयोधर चक्राकार एवं बेतरह उन्नत हैं । ऐसा लगता है कि उनकी विशालता दिखाने में चित्रकारने कुछ अधिक जबर्दस्ती की है कटिभाग अत्यन्त सूक्ष्म तथा कहीं-कहीं अदृश्य जैसा प्रतीत होता है। इनकी गर्दन कुछ लम्बी एवं रेखांकित दिखायी देती है, किन्तु सभीके शरीर सुपुष्ट अंकित किये गये हैं। महिलाओं द्वारा प्रयुक्त वस्त्रोंमें लंहगा, ओढ़नी एवं चोली जिसमें उदर भाग स्पष्ट रूपसे दृश्यमान है, प्रधान है । कहीं-कहीं ओढ़नीका अभाव भी है। आभूषणोंकी दृष्टिसे महिलाओंके कानोमें कानोंसे भी डेवढ़ा दुगुना, चक्राकार विशाल कर्णफूल, गलेमें बड़े-बड़े गुरियों वाली एकाधिक लड़ीकी माला एवं हाथोंमें ३-३या४-४ कड़े चित्रित किये गये हैं तथा नाकमें मोतीकी छोटी पोंगड़ी धारण किये हुए है। इनके हाथों में कंगन एवं पैरोंमें कड़े हैं, ललाटपर टीका भी दिखायी देता है । देवांगनाओंके चित्रणमें उक्त महिलाओंकी अपेक्षा बहुत कम अन्तर दर्शित किया गया है । जहाँपर पुरुषों या महिलाओंको खड़ा अथवा बैठा दिखाया गया है वहाँ उन्हें देखनेसे ऐसा प्रतीत होगा, मानों वे चल रहे हों या चलने के लिए उत्सुक हो रहे हों । तात्पर्य यह है कि उनमें स्फूर्तिकी झलक दिखायी देती है। कहीं-कहीं पुरुष दण्ड धारण किये हुए हैं किन्तु हाथों में उसे इस प्रकार चित्रित किया गया है, मानों वे कम वजनकी मामूली कोई छोटी-मोटी दातुन या सलाई पकड़े हुए हों। प्रकृति चित्रणके प्रसंगोंमें नदी, नद, सरोवर, उद्यान, मैदान, वृक्ष, हरी-भरी घास एवं वन आदिके रंगीन चित्रण किये गये हैं, किन्तु उन्हें जैसे नयनाभिराम, रम्य, गम्भीर एवं सजीव होना चाहिए था, उस भावका उसमें अभाव है। उदाहरणार्थ वृक्षकी आकृति ऐसी प्रतीत होती है जैसे किसी छोटी लचीली डंडीपर पत्तोंका ढेर सजा दिया गया हो। जंगलकी आकृति भी ऐसी प्रतीत होती है जैसे दीवालपर आड़ी-तिरछी रंगीन १. सम्मइजिणचरिउ १।४।२-४ । २४ इतिहास और पुरातत्त्व : १८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211642
Book TitleMahakavi Raidhu ki Aprakashit Sachitra Kruti Pasnahachariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherZ_Agarchand_Nahta_Abhinandan_Granth_Part_2_012043.pdf
Publication Year1977
Total Pages6
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size615 KB
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