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________________ मसीहीयोग / २१९ मनुष्य को समर्पित जीवन बिताना इस कारण आवश्यक है कि “जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न किया जाए तब तक वह कुछ नहीं पा सकता।" यूहन्ना ३:२७ । मसीहीधर्म में आसन मसीहीधर्म में प्रासन को इतना महत्त्व नहीं दिया गया है जितना कि हिन्दसंस्कृति में । आसन द्वारा शरीर को इस योग्य बनाया जाता है कि इन्द्रियों को वशीभूत किया जा सके। इस सम्बन्ध में मसीही विद्वानों का मत है कि प्रासन द्वारा शारीरिक कष्ट उठाना उचित नहीं है। उदाहरण की दृष्टि से फर्खर का मत उद्धृत करना न्यायोचित होगा। वह अपनी पुस्तक 'क्राउन अॉफ हिन्दूइज्म' में लिखता है कि अन्त में शरीर को कष्ट देने के बनिस्बत यीशु हमें स्वयं के बलिदान की अोर ले जाते हैं । २३ । मसीहीधर्म के मध्यकाल में रोमन कैथोलिक संत शरीर को कष्ट देने की विधियों को अपनाते थे ताकि इंद्रियों को नियंत्रित रखा जा सके । भारतीय दार्शनिक डॉ. राधाकृष्णन ने अपनी पुस्तक 'भारतीयदर्शन' में हेनरी सूसो के जीवन पर लिखी पुस्तक 'लाइफ ऑफ दि ब्लैसेड हेनरी सूसो' में टिप्पणी में लिखा है कि "बलिदानी ईसा के जीवन के प्रिय साथी रहे हैं-दारिद्रय, कष्ट, अपमान । अतः ईसाई संतों में उनका अनुकरण करने के लिए कष्ट और यातनाओं को झेलने की प्रतिस्पर्धा-सी रही।"३४ मसीहीधर्म की पुस्तक पुराने नियम में एक नबी योना का वर्णन है। जहां बुरे कर्मों से पश्चात्ताप के लिए. योना के प्रचार करने पर, तीनवे-शहर में बड़े से लेकर छोटे तक ने टाट प्रोढ़ा । यहाँ तक कि नीनवे के राजा ने भी राजकीय वस्त्र उतार कर टाट प्रोढ़ लिया और राख पर बैठ गया यह मन फिराने का और परमेश्वर से योग करने का एक साधन था। भारत में भी कुछ साधु संत टाट प्रोढ़ते हैं । जिन्हें 'टाटाम्बरी' कहा जाता है। मसीहीधर्म की मान्यता यह है कि शारीरिक योगाभ्यास से शारीरिक लालसानों को नहीं रोका जा सकता जैसा कि हम पहिले ही कह चुके हैं.६ मसीहीधर्म तो यह मानता है कि "धन्य हैं वे जो मन के शुद्ध हैं क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।"२७ अतः आसन से पवित्रता उत्पन्न नहीं हो सकती। मसीहीधर्म में ऐसा कोई नियम नहीं है कि प्रार्थना किस प्रासन में करनी चाहिए, फिर भी वर्तमान में ईश्वर के भक्त घटने टेक कर ही प्रार्थना करते हैं और घंटों प्रार्थना की दशा में रहते हैं । कुछ भक्त बैठकर और कुछ खड़े होकर भी प्रार्थना करते हैं। मसीहीधर्म में 'प्राणायाम' मसीहीधर्म की मान्यता यह है कि श्वास परमेश्वर की देन है, जैसाकि लिखा गया है कि "परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया। मनुष्यजीवन की प्रत्येक श्वास ईश्वर पर आधारित है। बैबल का पुराना नियम में 'अय्यूब' की पुस्तक १२:१० में कहा गया है कि "उसके हाथ में एक-एक जीवधारी का प्राण प्रौर एक-एक देहधारी मनुष्य की प्रात्मा भी रहती है।'' इससे यह स्पष्ट होता है कि प्राणायाम द्वारा मनुष्य ईश्वर साक्षात्कार की ओर बढ़ नहीं सकता । यद्यपि मसीहीधर्म की साधना में नूतन रूप से विचार किया गया है। एन्थोनी डी. मेलो का विचार है कि श्वास सबसे बड़ा मित्र है और आह्वान करते हैं कि "उसकी अोर अपनी परेशानियों में लौटो आसमस्थ तम आत्मस्थ मन तब हो सके आश्वस्त जम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211635
Book TitleMasihi Yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlerik Barlo Shivaji
PublisherZ_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf
Publication Year1988
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & Yoga
File Size1 MB
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