________________ मन : शक्ति, स्वरूप और साधना-एक विश्लेषण 453 . + ++++ + + + + + + + + + + + ++ 66 मणो साहसिओ भीमो दुट्ठसो परिधावई / -उत्तराध्ययन 23158 70 रम्भ समारम्भे आरम्भे य तहेव य / मणं पवत्तमाणं तु नियत्तिज्ज जयं जई / / -उत्तराध्ययन 24111 71 गीता, 6634 72 गीता, 6-35 73 मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः।-गीता 6-14 74 धम्मपद, चित्तवर्ग, 33-35 75 योगशास्त्र (हेमचन्द्र) 36-36 76 प्रकृति यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ।-गीता 333 77 सर्वास्या एवं राषि ! भूतजातर्जगत्त्रये / देवादेवरपि देहोऽयं द्वयात्मैव स्वभावतः / अज्ञमस्त्वथ तज्ज्ञ वा यावत्स्वान्तं शरीरकर्म ॥-योगवसिष्ठ 105 / 106 78 तथा तथा प्रवर्तेत यथा न क्षुभ्यते मनः / संक्षुब्धे चित्तरत्ने तु सिद्धिनैर्व कदाचनः / / -प्रज्ञोपाय विनिश्चय, 5 / 40 (उद्धृत बोधिचर्यावतार, भूमिका, पृ० 20 76 बोधिचर्यावतार, भूमिका, पृ० 20 80 विशेष जानकारी के लिए देखिए-गुणस्थानारोहण / 81 योगशास्त्र 12133-36 ----पुष्कर वाणी-0--0--0--0-0--0--0--0--0--0----0-0--0--0--0-0--02 10-0--0--0--0--0--0--0--2--0 किसी भी वस्तु का बाहरी रंग-रूप देखकर मत भरमाओ, उसका गुण और 1 तत्त्व दोनों ही विचारणीय हैं / कस्तूरी काली होती है पर कितनी मूल्यवान है। भैस भी काली होती है पर कितना उजला-चिकना दूध देती है / सज्जन बाहर से भले ही मलिन वस्त्र पहने दीखें, सीधे-सादे दुबले-पतले / हों, किन्तु उनकी उज्ज्वल आत्मा कितनी महान है ! तुम बाहर को नहीं, भीतर को देखो। ---------------- h-o-----0-0--0--0-0--0--0--0--0--0-0--0-----0--0-0--0-0--0--0--S Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org