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मुक्त होकर भेद विज्ञान कर अपनी आत्मा के विशुद्ध रूप की जान पाता है। इसलिए उन्होंने गुरु की वन्दना की है। आनन्दतिलकं भी गुरू को जिनवर सिद्ध, शिव और स्व-पर का भेद दर्शानेवाला मानते हैं । जैन साधकों के ही समान कबीर ने भी गुरू को ब्रह्म (गोविन्द) से भी श्रेष्ठ माना है। उसी की कृपा से गोविन्द के दर्शन सम्भव हैं ।" रागादिक विकारों को दूर कर आत्मा ज्ञान से तभी प्रकाशित होती है जब गुरू की प्राप्ति हो जाती है।" उनका उपदेश सदावहारक और पथ प्रदर्शक रहता है।" गुरु के अनुग्रह एवं कृपा दृष्टि से शिष्य का जीवन सफल हो जाता है। सदगुरू स्वर्णकार की भाँति शिष्य के मन से दोष और दुर्गुणों को दूर कर उसे तप्त स्वर्ण की भांति खरा और निर्मल बना देता है 110 सूफी कवि जायसी के मन में पीर (गुरु) के प्रति श्रद्धा दृष्टव्य होती है। वह उनका प्रेम का दीपक है ।" हीरामन तोता स्वयं गुरु का रूप है। और संसार को उसने शिष्य बना लिया है।" उनका विश्वास है कि गुरु साधक के हृदय में विरह की चिन गारी प्रक्षिप्त कर देता है और सच्चा साधक शिष्य
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गुरू की दी गुरू की दी हुई उस वस्तु को सुलगा देता है।" जायसी के भावमूलक रहस्यवाद का प्राणभूत तत्व प्रेम है और यह प्रेम पीर की महान् देन है । पद्मावत के स्तुतिखण्ड में उन्होंने लिखा है-
सूर की गोपियाँ तो बिना गुरु के योग सीख ही नहीं सकीं। वे उद्धव से मथुरा ले जाने के लिए कहती हैं जहाँ जाकर वे गुरू श्याम से योग का पाठ ग्रहण
सैयद असरफ पीर पियारा, जेहि मोहि पंथ दीन्ह उजियारा । लेसा हिए प्रेम कर दिया, उठी जोति मा निरमल हीया । 15
कर सकें । 10 भक्ति-धर्म में सूर ने गुरू की आवश्यकता अनिवार्य बतलाई है और उसका उच्च स्थान माना है ।
सदगुरू का उपदेश ही हृदय में धारण करना चाहिए क्योंकि वह सकलभ्रम का नाशक होता है
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गुरू गोविन्द दोक गड़े काके लागू पायें।
बलिहारी गुरु आपकी जिन्ह गोविन्द दियो दिखाय ॥ संत वाणी संग्रह भाग 1, पृ. 2.
बलिहारी गुरु आपने यौं हाड़ो के बार ।
जिनि मानिष तं देवता करत न लागी बार || कबीर ग्रंथावली, पृ. 1.
संस खाया सकल जग, संसा किनहूं न खद्ध, वही, पृ. 2-3.
सदगुरू को उपदेश हृदयर्धारि, जिन भ्रम सकल निवरायौ ॥2"
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10. वही, पृ. 4 ।
11. जायसी ग्रन्थमाला पृ. 7 ।
12. गुरू सुआ जेइ पंथ देखावा । बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा || पद्मावत.
13. गुरू होड आय, कीन्ह उचेला जायसी ग्रन्थावली, पु. 33.
14. गुरू विरह चिनगी जो मेला । जो सुलगाइ लेइ सो चेला ॥। वही, पु. 51.
15. जायसी ग्रन्थावली, स्तुतिखण्ड, पृ. 7.
16. जोगविधि मधुबन सिखिहैं जाइ। ......
बिनु गुरू निकट संदेसनि कैसे, अवगाह्यौ जाइ । सूरसागर (सभा) पद 4328. 17. वही पद 336 1
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