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घर-घर और गाँव-गाँव में शुभ मंगल स्वराज का दृष्टिकोण से विज्ञान मानव-समाज के लिए वरदान मधुमास क्यों नहीं खिला ? जबकि भौतिक सुख- नहीं अभिशाप बनता जा रहा है। साधनों की सभी क्षेत्रों में प्रचुरता परिलक्षित हो इस विज्ञान में सुन्दरता है किन्तु मूल तत्व
रही है। पग-पग और डग-डग पर साधन उपलब्ध शिव अर्थात् कल्याण का अभाव रहा है। प्रकृति ON हैं। कुछ भी हो, भौतिक विज्ञान का सर्वोपरि का अन्वेषण-अनुसंधान करना, नाशवान वस्तुओं का
विकास हो जाने पर भी विज्ञान अपने-आप में अपूर्ण परिवर्तन-परिवर्धन एवं नवनिर्माण करने तक ही
और अधूरा ही रहने वाला है। वह इसलिए भी विज्ञान की अगणित उपलब्धियाँ हस्तगत होने पर कि भौतिक विज्ञान प्राणी जगत् के शारीरिक, मान- भी आज सामाजिक, राष्ट्रीय और पारिवारिक सिक, वाचिक, इन्द्रिय, मनविषयक एवं पेट, परि- जीवन निराशा के झूले ही झूल रहा है । इन्द्रियजन्य वार,पद,प्रतिष्ठाओं की क्षणिक पूर्ति करने तक ही सुख-सुविधा के साधनों की विपुलता ही सब-कुछ सफल रहा है। माना कि उसने संसार को कुछ नहीं है; चिरस्थायी शांति एवं आत्मानन्द-आत्मधन सुख-सुविधा के लिए तीब्रगामी वाहनों का विकास आत्म-विकास सम्बन्धी समस्या का समाधान
कर, यात्रा की अनुकूलता दी, तरंगों पर कंट्रोल कर भौतिक विज्ञान में खोजने का मतलब होगाद एक ज्वलंत समस्या का समाधान खोज निकाला, रिक्तता से रिक्तता की ओर लक्ष्यविहीन अंधी दौड
राकेट-उपग्रह शक्तियों की शोध कर भूगोल, लगाने जैसी स्यिति! खगोल सम्बन्धी जानकारियाँ दी और टेलीफोन, वस्तुतः यथार्थ आत्मशांति के लिये प्रत्येक टी० बी० का आविष्कार कर हजारों मील दू पिपासु मानव को अध्यात्म विज्ञान के दरवाजे खटसमाचारों से अवगत किया, कराया।
खटाने होंगे। अध्यात्म विज्ञान के उद्गमदाता, a दसरे पहल से देखा जाय तो भौतिक विज्ञान से द्रष्टा व सष्टा भ० ऋषभदेव से महावीर प्रभति 1301 प्राणी जगत् की हानियां कम नहीं हई हैं। विकास व राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध आदि महात्माओं ने
और विनाश दोनों पहलू भौतिक के रहे हैं। एक अध्यात्म-विज्ञानोदधि में अवगाहन किया, शनैः-शनैः बाजू पर विकास और सुख-सुविधा का सरसब्ज।
साधना-उपासना की गहराइयों में उनकी चेतना वाग का लेबल लगा है तो दूसरी ओर विनाश और
और पहुंची, चिंतन का मंथन हुआ, अंत में सर्वोपरि
सर्वोत्तम आत्म-विकास का साध्य फल मोक्ष प्राप्त दुविधा का ज्वालामुखी छिपा हुआ है।
किया और कई करेंगे। भोपाल में घटित गैस काण्ड के घाव अभी तक
__अध्यात्म-विज्ञान (Soul-Science) का कार्यभरे नहीं हैं। विषाक्त गैस रिसने से हजारों नर
क्षेत्र, कर्म-क्षेत्र उभय जीवन अर्थात लौकिक नारियों, बालकों की ज्योति को बर्बाद कर दिया,
और लोकोत्तर जीवन को अन्तर्मुखी और ऊर्जासाथ ही पशु-पक्षी जगत् भी उससे बच नहीं पाया। रोहण की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है। अध्यात्म
वस्तुतः वैज्ञानिक सुविधाजन्य प्रवृत्तियों से विज्ञान विकास के अवरोधक इन्द्रियों और मन के आज मानव-समाज सुविधाभोगी, अधिक आरामी विषयों-~-शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श पर नियन्त्रण
अवश्य बना है किन्तु जीवन में निष्क्रियता-निष्कर्म- पाने के लिये ध्यानी-ज्ञानी प्रवृत्तियों और योगासन O ण्यता का विस्तार हुआ है, साथ ही मानव परा- का विधान करता है। अहिंसा भगवती की अर्चा COMपेक्षी पंगु बनता हुआ व्यसन और फैशन की चका- से सुख-शांति के स्रोतों का प्रस्फुटन, संयमी वृत्ति से
चौंध में अपने को भलता जा रहा है। यह सब क्या अनैतिकता का अन्त, तपारा शुभाशुभ कर्महै ? इसे विज्ञान की देन समझना चाहिए। इस वर्गणा का आत्मस्वरूप से पृथक्करण होना और
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चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम 60 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ