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________________ [४६] IIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIII I IIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIII भारण राजा के ३२५ रानियां थीं। परंतु किसी के भी सन्तान नहीं थी। इसलिये सन्तान की चाहना राजा ने अपने कुलगुरु के समक्ष व्यक्त की । श्री उदयप्रभसूरि प्राचार्य जी ने भाणराजा को बतलाया कि यदि वह उपकेश नामके नगरके निवासी श्री जयमल सेठ की पुत्री रत्नाबाई से विवाह कर सके तो उसे दो पुत्ररत्नों की प्राप्ति हो सकती है। भाणराजा ने कुलगुरु की बात सुन कर श्री जयमल सेठ से उसकी पुत्री रत्नाबाई का विवाह स्वयं के साथ करने का प्रस्ताव रखा। जयमल सेठ ने राजा का उक्त प्रस्ताव नहीं माना। फिर एक वारांगना की सहायता से भाणराजा उस रत्नाबाई के साथ इस शर्त पर विवाह करने में समर्थ हुए कि रत्नाबाई से उत्पन्न पुत्र भीनमाल का राज्याधिपति होगा। विवाह के पांच वर्ष बाद रत्नाबाई ने एक पुत्ररत्न को जन्म दिया जिसका नाम राणा रखा गया। उसके कुछ काल बाद रत्नाबाई ने एक अन्य पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम कुम्भा रखा गया। इन पुत्ररत्नों की प्राप्ति से भाणराजा को जैन धर्म में प्रगाढ श्रद्धा हो गई। उसने कुलगुरु के पास श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किये एवं नगर में यह उद्घोषणा कराई कि जो कोई व्यक्ति जैन धर्म स्वीकार करेगा वह राजा का सार्मिक भाई बनेगा, राजा उसकी सभी मनोवांछना पूरी करेगा। यह घोषणा वि. सं. ७९५ की मिगसर शुक्ल दशमी को रविवार के दिन की गई थी। उक्त घोषणा के बाद भीनमाल में रहने वाले श्रीमाली ब्राह्मण जाति के ६२ करोड़पति सेठों ने जैन धर्म स्वीकार किया। श्री उदयप्रभसूरिजी आचार्य ने उन ब्राह्मण सेठों को प्रतिबोध देकर उनके मस्तक पर वासक्षेप डाला। उन ब्राह्मण सेठों के गोत्र व नाम निम्नलिखित थे :क्रम संख्या गोत्र का नाम शेठ का नाम क्रम संख्या गोत्र का नाम शेठ का नाम १. गौतम विजय सांख्य मना हरियाण शंख महालक्ष्मी ममन कात्यायन श्रीमल्ल वीजल वर्धमान भारद्वाज नोड़ा लाकिल गोवर्धन आग्नेय वधा दीपायन गोध काश्यप जना पारध मीस वारिधि राजा चक्रायुध सारंग पारायण सोमल २४. जांगल रायमल्ल वसीयण ममच २५. वाकिल खोडायन जोग २६. माढर जीवा लोडायण सालिग २७. तुगियारण विजय पारस तोला २८. पायन वामउ चेडीसर नारायण एलायन कडा दोहिल जवाँ ३०. चोखायण जांजण पापच ससधर असायण १६. दाहिम शंका ३२. प्राचीन राजपाल १९. U * २२. २३. धन्ना 0 0 0 0 २९. 0 पोषा * રાએ માં શ્રઆર્ય કલ્યાણગૌતમસ્મૃતિગ્રંથ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211602
Book TitleBhinmal Jain Itihas ke Prushto par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Manekchand
PublisherZ_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf
Publication Year1982
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & History
File Size996 KB
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