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________________ ६० पौंड वार्षिक किराये पर ले लिया था। पर उनकी बढ़ती हुई उच्छखलताओंको देखकर सन् १६८५ में तत्कालीन बंगालके राज्यपाल शाइस्ताखांने अंग्रेजों पर स्थानीय रूपसे टैक्स लगाकर उनकी गतिविधियोंको नियंत्रित करना चाहा । कम्पनीने खुले रूपसे औरंगजेबकी सत्ताकी उपेक्षा की फलस्वरूप मुगल सम्राट् एवं अंग्रेजोंके बीच अर्द्ध-सरकारी रूपसे संघर्ष छिड़ गया । कम्पनीकी मददके लिये इंग्लैंडके सम्राट जेम्स द्वितीय अनेकों जंगी जहाज भेज दिये। इन जहाजोंने चटगाँव पर अधिकार कर लिया। औरंगजेबने कुटनीतिसे काम लिया और उसने सूरत, मसौलीपट्टम एवं हगलीकी अंग्रेजी फैक्ट्रियों पर कब्जा कर लिया। अंग्रेजोंके होश ठिकाने आ गये। १६८८में दोनोंमें संधि हो गई अधिकांश तट मुगलों के आधीन हो गये। अंग्रेजोंको बंगालमें एक बस्ती बनानेकी आज्ञा दे दी गई। यह छोटी सी बस्ती बादमें आधुनिक कलकत्ता नगर बन गई। मराठोंके समय भी जल-सेना उपेक्षित न थी। सन् १६४० में शाहजी भोंसलेने पुर्तगालियोंके विरुद्ध सफल जल-युद्ध किया था। शिवाजीके सामुद्रिक अभियानोंने अंग्रेजों एवं पुर्तगालियोंकी नींद हराम कर दी थी। उन्होंने इन विदेशियोंके अनेकों जहाजोंको लूटा एवं ध्वस्त कर दिया था। शिवाजीने एक अच्छे एवं बड़े समुद्री बेड़ेका निर्माण कराया जो कोलाबामें रहा करता था। इसीसे उन्होंने जंजीराके निवासी अबीसीनियाके समुद्री लुटेरों को रोका एवं धनसे भरे मुगलोंके जहाज भी लूटे थे । आंग्रेकी कहानी वस्तुतः जल अभियानोंकी कहानी है। १६९४से १७५० तक आंग्रेने मालाबारसे त्रावनकोर तक अपना एकछत्र जल साम्राज्य स्थापित कर लिया था। सन् १६९८में कान्होजी आंग्रेने 'दरियासारंग'की उपाधि धारण की एवं उसे मरहठा जल सेनापति बनाया गया। सन् १७०७ एवं १७१२में दो बार बम्बईपर आक्रमण किया एवं १७१० में खंडगिरिपर अधिकार कर लिया। १७९० में अंग्रेजी जल-सेनाने कान्होजीके जहाजोंपर भारी बमबारी की एवं उसके जहाजी बेड़ेको काफी नुकसान पहँचाया पर उसने शीघ्र ही क्षतिपति कर ली। सन् १७२० में अंग्रेजों एवं पुर्तगालियोंने एक साथ मिलकर आंग्रेपर आक्रमण किया एवं विजय-वर्ग नदीपर स्थित १६ मरहठा जहाजोंको आग लगा दी गई। कान्हौजीने फिर भी साहस नहीं छोड़ा। १७२२में पुनः सम्मिलित प्रयास किया गया और कोलाबाके प्रसिद्ध मरहठा अड्डेपर आक्रमण किया। विरोधमें १७२६में कान्हौजीने बहुमूल्य वस्तुओंसे लदे हुए प्रसिद्ध अंग्रेजी जहाज 'डर्बी'को अपने कब्जेमें ले साथ ही अनेकों पर्तगाली एवं डच जहाज भी। उस समय केवल ईस्ट इंडिया कम्पनीको अपने तटीय व्यापार की, आंग्रेसे, रक्षा करने में ५० हजार पौण्ड प्रति वर्ष व्यय करने पड़ते थे । कान्होजीकी मृत्युके पश्चात एक बार फिर १७५४ में उसके उत्तराधिकारी तुलाजी आंग्रेके हाथों डच जहाजी बेड़ेको करारी हार खानी पड़ी। पुर्तगाली हमेशा ही भारतकी समृद्धिको ललचाई आँखोंसे देखते रहे हैं । राजकुमार हेनरीने, जो एक प्रसिद्ध नाविक था, अपना सारा जीवन पुर्तगालसे भारतको होनेवाले सीधे जलमार्गके खोजने में ही व्यतीत कर दिया। उसकी मृत्युके पश्चात् उसके साहसी नाविकोंने यह प्रयास जारी रखा और २० मई सन् १४९८को वास्कोडिगामा सफल हो ही गया और कालीकट पहुँच गया। सन् १५००में पुर्तगालियोंने पेड्रो अलवारिस कैबालके नेतृत्वमें एक बड़ा जहाजी बेड़ा भेजा जिसने भारत के एक अंशमें पुर्तगालियोंका आधिपत्य किया एवं उनके लिये बस्ती बनाई । अलमेड़ा एवं अलबुकर्कके समय भारतमें पुर्तगाली जहाजी बेड़ा काफी सक्रिय रहा पर १६१२ ई० में अंग्रेजोंने पुर्तगालियोंको एक भयंकर जल-पराजय दी एवं सुरतपर अधिकार कर लिया। १६१५में अंग्रेजोंने पुनः पुर्तगालियोंको हराया एवं आरमिजपर अधिकार किया । १६२२ ई० में अंग्रेजोंकी इतिहास और पुरातत्त्व : ३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211563
Book TitleBharatiya Nausena Aetihasik Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGayantrinath Pant
PublisherZ_Agarchand_Nahta_Abhinandan_Granth_Part_2_012043.pdf
Publication Year1977
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & History
File Size867 KB
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