________________
सन् १५०७ में उसने तुर्की सेनाकी मददसे पुर्तगालियोंपर आक्रमण किया था । इसमें मुस्लिम सेनाने विजयश्री प्राप्त की और उन्होंने बम्बई के दक्षिणमें छम्बके निकट पुर्तगालियोंके कतिपय बहुमूल्य वस्तुओंसे लदे जहाजों को डुबो दिया था । पर यह विजय स्थायी न हो सकी। दो वर्षके पश्चात् ही सन् १५०९ में काठियावाड़ के ड्यू स्थान पर पुनः जल-युद्ध हुआ और पुर्तगालियोंने न केवल अपनी हारका बदला लिया वरन् मुस्लिम जल सेनाकी कमर ही तोड़ दी ।
मुगल काल में सभी दिशाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए। जल सेनाके महत्त्वको भी पहचाना गया । मुगल संस्थापक बाबर स्वयं एक प्रसिद्ध तैराक था और भारतकी कई नदियां उसने तैरकर पार की थीं । सन् १५२८में बाबरको कन्नौज के निकट गंगा तट पर युद्ध करना पड़ा था जिसमें उसने अपने शत्रुके ४० जलयानोंको पकड़ लिया था । 'बाबर नामा' एक सुन्दर चित्रमें बाबर द्वारा एक घड़ियाल के शिकार- दृश्य में मुगलकालीन नावोंका कलात्मक अंकन है । बाबरकी कुछ प्रसिद्ध नावोंके नाम ' असायश', 'आरायश', 'श्रुश्रं गुंजायश' एवं 'फरमायश' थे ।
अकबर के समय तो मीर बेलेरीके आधीन पूरा जल सेना विभाग ही था । इस समय कई प्रकारके जहाज थे एवं जहाज निर्माणके प्रमुख केन्द्र थे बंगाल, काश्मीर, इलाहाबाद एवं लाहौर । प्रत्येक जहाजमें १२ कर्मचारी होते थे जिनके प्रधानको 'नारवोदा' कहा जाता था । ३ जून, १५७४को किये गये पटना पर, दाऊन खांके विरुद्ध, आक्रमणमें अकबरने जिन जहाजोंका प्रयोग किया था उनमें हाथी, घोड़े एवं अन्य कार्यालयों तथा कर्मचारियोंके रख-रखावकी पूरी व्यवस्था थी । सन् १५८० में राजा टोडरमलको गुजरात के विरुद्ध अभियानके लिये १,००० जहाजों-नावोंका लश्कर लेकर भेजा गया था । सन् १५९० में खाने सामानने थट्टा के जानी बेगको एक करारी हार दी थी। इसी वर्ग में सन् १६०४में मानसिंहके नेतृत्वमें श्रीपुरके नरेश केदारराय के विरुद्ध किया गया जल-युद्ध भी आता था जिसमें मानसिंहने १०० जंगी जहाजोंका प्रयोग किया था ।
अफगानों एवं मगोंके निरन्तर आक्रमणोंके भयसे जहाँगीरको अपना 'नौवारा' ( नौविभाग ) पुनः संगठित करना पड़ा। उसने १६२३में इस्लाम खांके नेतृत्वमें आसामके उन विद्रोहियोंके विरुद्ध एक जहाजी बेड़ा भेजा जिन्होंने बंगाल तक अधिकार कर लिया था । इसमें लगभग ४,००० आसामियोंका वध कर दिया गया एवं उनकी १५ नावें मुगलों द्वारा छीन ली गईं। जल सेनाकी सबसे अधिक आवश्यकता शाहजहाँने अनुभव की । पुर्तगालियोंके निरन्तर हमले मुगल सम्राटके लिये एक भारी सिर दर्द बन गया था । उनकी धृष्टता इतनी बढ़ गई कि वे मुगल सेनानियोंको बन्दी बनाकर उन्हें दासों की भाँति बेचने लगे । एक बार उन्होंने बेगम मुमताज महलकी दो अंगरक्षिकाओं को भी बन्दी बना लिया । शाहजहाँ इसे अधिक सहन नहीं कर सका । उसने कासिम खां को पुर्तगालियोंके समूल नाश करनेका भार सौंपा । २४ जून, १६३२को हुगली पर घेरा डाल दिया गया । यह तीन महीनेसे अधिक समय तक चलता रहा । १० हजारसे अधिक पुर्तगाली मारे गये एवं ४,००० से अधिक बन्दी बना लिये गये ।
जलयुद्धों की कहानी औरंगजेब के कालमें भी दुहराई गई । सन् १६६२ में मुस्लिम फौजोंने मीरजुमला के नेतृत्वमें कूच-विहारके नरेशके ३२३ जलयानोंका सफलतापूर्वक सामना किया था और सन् १६६४ में तो शाइस्ता खांने मुगल नौ सेनाको कई जंगी जहाजोंसे लैस कर दिया था । औरंगजेबकी सबसे प्रसिद्ध टक्कर तत्कालीन विश्वकी सबसे महती जलशक्ति अंग्रेजी नौ सेनासे हुई । शाहजहाँने यद्यपि पुर्तगालियोंके विरुद्ध कार्यवाही की पर वह अंग्रेजोंके प्रति कृपालु था और उसने उन्हें १६५०-५१ में हुगली और कासिम - बाजार में कारखाने बनानेकी आज्ञा दे दी थी। इसी समय ईस्टइंडिया कम्पनीने चार्ल्स द्वितीयसे बम्बईका द्वीप
३८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org