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उपेक्षा के चक्रव्यूह में __ महर्षि मनु ने कहा-“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः" जहाँ स्त्रियों की प्रतिष्ठा है, वहाँ देवों का निवास है। स्त्रियों के विषय में
यह सर्वोत्तम उक्ति है। इसी उक्ति के आधार पर बताया जाता है, भारतीय नारी भारतीय संस्कृति में नारी का स्थान बहुत ऊँचा है। किसी अपेक्षा
विशेष से यह सत्य भी होगा, पर कुल मिलाकर देखें, तो क्या भारत
में, विश्व में नारी पुरुष की अपेक्षा बहुत ही पिछड़ी दशा में रही है। युग-युग में और आज समाज का नियन्ता पुरुष रहा है और उसने नारी को सदैव संकीर्ण
सीमाओं में बांधा है। इसमें पुरुष का नारी के प्रति दौर्मनस्य था, ऐसा नहीं पर, स्वयं का व समाज का हित उसको इसी में लगा । यह एक प्रकार का दृष्टि-दोष था। नारी के व्यक्तिगत हितों को इसमें सर्वथा गौण कर दिया गया था। समाज-हित जो उसमें समझा गया था, वह भी उसका व्यक्तिगत स्वार्थ ही था। उसने सारे सामाजिक नियमन स्त्री पर डाले और स्वयं उनसे मुक्त रहा। इसके उदाहरण हैंस्त्री एक ही पति करे; पुरुष चाहे तो सहस्रों पत्नियाँ भी कर सकता है-पति की चिता पर स्त्री आत्मदाह करे, सती हो जाये, पुरुष स्त्री के पीछे ऐसा तो करेगा ही नहीं, पर, उसके पीछे विधुर भी नहीं रहेगा । उसके घर को फिर से कोई नवोढ़ा सुशोभित करेगी । सदाचार समाज में आवश्यक है, पर घूघट इसके लिए स्त्री लगायेगी पुरुष नहीं । ये नियमन ही पुरुष ने स्वयं पर किये होते, तो उसे अनुभव होता, ये कितने कठोर और कितने अव्यवहार्य हैं। उसने नारी की
सीमाओं को इस प्रकार से सोचा ही नहीं कि ये ही सीमाएँ यदि मेरे राष्ट्रसन्त मुनिश्री लिए हों तो?
___ नारी इनको व इस प्रकार के अन्य नियमों को शताब्दियों तक नगराज जी (डा० लिट्०) निभाती रही । आज भी वैसी ही अनेक रूढ़ियों से वह चिपटी बैठी
- है। वह स्वयं भी उन्हें छोड़ना नहीं चाहती । इसका कारण है, उसका [प्रसिद्ध विद्वान्, विचारक, अन्तर्राष्ट्रीय
चैतन्य मूच्छित हो चला है । उसे स्वत्व का भान भी नहीं हो पा रहा स्तर के जैन मनीषी]
है। जिन शृंखलाओं से वह बांधी गई है और उनकी उपयोगिता जैसे उसे समझाई गई है, वह उसके अणु-अणु में रम गई है । उसने उसे ही अपना अजर-अमर स्वरूप मान लिया है। ___ शिक्षा के क्षेत्र में भी पुरुष ने स्त्री को अपने साथ नहीं रखा। पुरुष में विद्या का, बुद्धि का विकास होता चला । नारी जहाँ की तहाँ रही । योग्यता के अभाव में वह और उपेक्षित होती गई । वाणिज्य
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