________________ है नारायण पण्डित (1356 ई0): नारायण पण्डित ने अंकगणित पर "गणितकौमुदी' नामक एक वृहद् ग्रंथ की रचना की। इसमें अनेक विषयों का प्रतिपादन किया गया है। मायावर्ग (Magic Squares) प्रमुख हैं। यह ग्रंथ ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। नीलकण्ठ (1587): नीलकण्ठ ने “ताजिकनीलकण्ठी" नामक ग्रन्थ की रचना की जिसमें ज्योतिष गणित का प्रतिपादन किया गया है। कमलाकर (1608 ई0): कमलाकर ने 'सिद्धान्त तत्व विवेक' नामक ग्रंथ की रचना की। सम्राट जगन्नाथ (1731 ई0): सम्राट जगन्नाथ ने “सम्राट सिद्धान्त" तथा "रेखागणित" नाम की दो पुस्तकें लिखीं। रेखा-गणित की वर्तमान शब्दावली अधिकांशत: इसी पुस्तक पर आधारित है। ___ उपर्युक्त के अतिरिक्त इस काल में केरलीय गणितज्ञों में संगम ग्राम में जन्मे माधव (1350-1410) 'युक्तिभाषा' नामक गणित ग्रंथ के लेखक ज्येष्ठ देव (1500-1610 ई0) तथा 'क्रियाक्रमकरी' नामक लीलावती व्याख्या के रचयिता शंकर पारशव (1500-1560 ई0) के नाम विशेष उल्लेखनीय सुधाकर द्विवेदी: सुधाकर द्विवेदी ने 'दीर्घ वृत्त लक्षण', 'गोलीय रेखा गणित', 'समीकरण मीमांसा', 'चलन कलन' आदि अनेक पुस्तकों की रचना की। साथ ही ब्रह्मगुप्त एवं भास्कर की पुस्तकों पर टीकाएं लिखकर सामान्य जनता के लिए सुलभ कराया। रामानुजम् (1889 ई0): __ सूत्र में गणितीय एवं अन्य सिद्धांतों को लिखने एवं सिद्ध करने की वैदिक परम्परा के आधुनिक युग के महान् गणितज्ञ रामानुजम् हैं। उनकी श्रेष्ठता इसी से प्रमाणित है कि उनके द्वारा प्रतिपादित 50 प्रमेयों में से एक दो को सिद्ध करने में ही गणितज्ञों एवं शोधकर्ताओं को वर्ष पर्यन्त दत्तचित्त होकर परिश्रम करना पड़ा। कुछ प्रमेय अभी तक सिद्ध नहीं किये जा सके हैं। उनकी कृति 'रामानुजम् डायरी' शीर्षक से जन्मशती वर्ष में प्रकाशित हुई है। स्वामी भारती कृष्णतीर्थजी महाराज (1884-1960 ई0): ___ महान् गणितज्ञ एवं दार्शनिक जगद्गुरु शंकराचार्य भारती कृष्णतीर्थजी आधुनिक युग में वैदिक गणित के प्रधान भाष्यकार हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक “वैदिक गणित" में वैदिक सूत्रों को पुनः प्रतिपादित किया है और उनमें निहित सिद्धांतों और विधियों को इतनी सरल, सुग्राह्य एवं सुस्पष्ट भाषा में प्रस्तुत किया है कि गणित का एक साधारण विद्यार्थी भी उसे आत्मसात् कर गणित के जटिलतम प्रश्नों को अत्यल्प समय में हल कर सकता है। उनकी पुस्तक वैदिक गणित पर एक प्रामाणिक ग्रंथ है। स्वामीजी ने अपनी इस अनुपम कृति के माध्यम से वैदिक गणित में छिपी हुई अद्भुत क्षमता से परिचय कराकर गणित के केवल सामान्य विद्यार्थी को ही नहीं अपितु अधिकारी विद्वानों के अन्त:करण को भी झंकृत कर दिया है। इन्होंने हमें सर्वथा नवीन दृष्टि देकर वैदिक गणित पर शोध करने तथा उसका उपयोग करने के लिए विवश कर दिया है। सह शिक्षक-श्री जैन विद्यालय, कलकत्ता वर्तमान काल (1800 ई0 के पश्चात्): वर्तमान काल के कुछ प्रमुख गणितज्ञों एवं उनकी कृतियों का संक्षिप्त परिचय निम्नवत् हैनृसिंग बापू देव शास्त्री (1831 ई0) : नृसिंग बापू देव शास्त्री ने भारतीय एवं पाश्चात्य गणित पर पुस्तकों का सृजन किया। इनकी पुस्तकों में रेखागणित, त्रिकोणमिति, सायनवाद हीरक जयन्ती स्मारिका अध्यापक खण्ड /5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org