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परिणाम का उपादान कारण होता है । कणाद ने नौ द्रव्य तत्व पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन माने हैं, जिनमें प्रथम चार नित्य और अविभाज्य कणों से मिलकर बने हैं। मन अनेक, नित्य, सूक्ष्म परिणाम वाला तत्व है व आकाश, काल, दिशा और आत्मातत्व सर्वव्यापी और नित्य है जिनमें आत्मा अनेक है, पर शेष अनेक नहीं है। आत्माबंधन में भी हो सकती है और मुक्त भी । मुक्त आत्मा सुख दुःख बोध जैसे
षक गुणों से भी मुक्त होती है । द्रव्य तत्व में गुण सदा निहित रहते हैं जिनमें गुणों की संख्या सत्रह है - रूप, रस, गंध, स्पर्श, संख्या, परिणाम, पृथकत्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष और प्रयत्न ।
कर्म गुणरहित होता है जो एक से अधिक वस्तु में निहित नहीं रहता । कर्म केवल द्रव्य के साथ ही रहता है और यह संयोग और विभाग का स्वतंत्र कारण होता है । कर्म के पांच भेद हैं- उत्प्रक्षण (ऊपर की ओर गति) अपक्षेपण (नीचे की और गति ), आकुंचन, प्रसारण और गमन । समावेशन और अपवर्जन की दृष्टि से सामान्य और विशेष, व्याप्ति और व्यतिरेक नामक दो सापेक्ष कोटि हैं। आधेय और आधार के कार्य कारणात्मक नित्य सम्बन्ध को समवाय कहते हैं। कणाद के ग्रंथ का नाम वैसेषिक दर्शन दिया गया है, जिसका अर्थ है, श्रेष्ठ, श्रेष्ठतर, विशिष्ट और दूसरों से भिन्न।
महर्षि कणाद ने वस्तुओं को समझने व समझाने के लिए उनका विश्लेषण समता व विषमता के आधार परक स्पष्ट वर्गों में विभाजित किया क्योंकि उनकी मान्यता थी कि निश्रंयस और अभ्युदय की सिद्धि के लिए दृष्ट और अदृष्ट की व्याख्या व भिन्नता बताना व जानना आवश्यक है। वैशेषिकों का मानना है कि कारण द्वारा निर्माण किए जाने के पूर्व कार्य का अस्तित्व नहीं हो सकता । यह सिद्धान्त सांख्य मत के सत्कार्यवाद के सर्वथा विपरीत है । कणाद के बहुत से सिद्धान्त गलत सिद्ध होने पर भी यह तो मानना पड़ेगा कि सत्य और धर्म का वैज्ञानिक विवेचन करने वालों में कणाद संसार के महान विचारकों की कोटि में आते है। सी. बी. रमन जैसे प्रख्यात वैज्ञानिकों ने कणाद के प्रकाश के गुण धर्म वाले सिद्धान्त की यथार्थता स्वीकार की है । कणाद के सूत्रों का भारतीय दर्शन की सभी शाखाओं ने अपने ग्रंथों में प्रयोग किया है। सत्रहवीं शताब्दी में रोह गुप्त ( निन्हव) ने चैराशिक पदार्थ की स्थापना कणाद की मान्यता के अनुसार की। जैनागम नन्दीसूत्र व अनुयोग द्वार में व उपास्वाति के तत्वार्थ सूत्र व अन्य आचार्यो की रचनाओं में भी वैशेषिक दर्शन के अनेक उल्लेख एवं उद्धरण मिलते हैं । बौद्ध दर्शन में वैशेषिकों के यथार्थवाद का
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दर्शन-दिग्दर्शन
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