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________________ श्रेष्ठ साधक बात कही है, The fewer are our wants the more we resemble gods. हमारी जितनी-जितनी जैन धर्म में दिगम्बर मूनि परिग्रह मात्र का त्याग आवश्यकताएँ कम होती हैं उतना हम दिव्यता के समीप करके श्रेष्ठ अहिंसा तथा आत्मशांति का सजीव पहुँचते हैं। उदाहरण उपस्थित करते हैं । परिग्रह त्यागी के चरणों के समीप विश्व का वैभव नतमस्तक होता है। एक कवि भीषण स्थिति कहता है : वर्तमान युग की यांत्रिक पद्धति के कारण जगत् में धनवान और धनहीनों के बीच बड़ी गहरी खाई बन चाह घटी चिन्ता हटी मनुआ बे परवाह । गई है । इसके कारण हिंसा का ज्वालामुखी सर्वसंहार जिन्हें कल नहिं चाहिये वे शाहनपति शाह । हेतु जागृत हो रहा है। इस महा विपत्ति से बचने का अपरिग्रहत्व तथा अकिंचन वृत्ति पर गांधीजी के उपाय भगवान महावीर का सीमित परिग्रह रखना तथा शब्द बड़े अनुभवपूर्ण हैं, "सच्चे सुधार का सच्ची सभ्यता अनावश्यक संपत्ति को सत्कर्मों में स्वेच्छा से लगाना का लक्षण परिग्रह बढ़ाना नहीं है, बल्कि उसका विचार है। राजकीय अनेक कदम धनिकों को उनके अंधकारऔर इच्छापूर्वक घटाना है । ज्यों-ज्यों परिग्रह घटाइये मय भविष्य का उद्बोधन करा रहे हैं। एक कवि कहता त्यों-न्यों सच्चा सुख और संतोष बढ़ता है, सेवा शक्ति है : बढ़ती है। आदर्श और आत्यंतिक अपरिग्रह तो उसी दातव्यं भोक्तव्यं सति विभवे संचयो न कर्तव्यः का होगा जो मन से और कर्म से दिगम्बर है। मतलब यश्येह मधुकरीणां संचितमर्थं हरन्त्यन्ये । वह पक्षी की भांति बिना घर के, बिना वस्त्रों के, बिना अन्न के वितरण करेगा । (गांधी वाणी प्र.98) अविद्या धन वैभव के प्राप्त होने पर सत्कार्यों में संपत्ति का से अभिभूत व्यक्ति ईसा के इस उपदेश को भूल जाता विनियोग करो तथा स्वयं भी उसका उपयोग करो। है कि Naked I came from my mother's देखो उस भ्रमरी को, जिसका संचित मधू दुसरे छीन womb and naked shall I go thither. मैं अपनी लेते हैं । माता के उदर से दिगम्बर रूप में आया था, तथा उसी महावीर की शिक्षा अवस्था में यहाँ से उसी स्थल पर चला जाऊंगा । आचार्य गुणभद्र आत्मानुशासन में मार्मिक शिक्षा देते भगवान महावीर ने कहा था अनित्यानि शरीराणि विभवोनैव शाश्वतः । सन्निहितं च सदा मत्युः कर्तव्यो धर्म संग्रहः ॥ अधो जिघृक्षवो यान्ति यान्त्यूर्व मजिघक्षवः । इति स्पष्टं वदन्तौ वा नामोन्नामौ तुलान्तयो ।। शरीर अनित्य है, वैभव सदा नहीं रहेगा, मृत्यु ॥154 ।। सदा समीप है, अतः धर्म का संग्रह करना चाहिए। अकबर का कथन सत्य हैतराजू के दोनों पलड़े यह बताते हैं कि लेने की आगाह अपनी मौत से कोई वशर नहीं। इच्छावाला प्राणी लदे पलड़े के समान नीचे जाता है सामान सौ बरस का है पल की खबर नहीं। और न लेने की इच्छावाला प्राणी खाली पलड़े के सेठ जी को फिक्र थी एक-एक के दस कीजिये। समान उन्नत दशा को पाता है । सुकरात ने बड़ी सुन्दर मोत आ पहुँची कि हजरत जान वापिस कीजिए। ६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211506
Book TitleMahavir ka Sarvodaya Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZ_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
Publication Year
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & Society
File Size730 KB
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