SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बैठे हैं भौतिक विज्ञान ने जो आराम की सामग्री के समस्त दु:खों का मूल कारण हिंसा है। ज्ञानार्णव में साथ में सर्वनाश करने वाले अणुबम आदि अस्त्र प्रदान आचार्य शुभचंद्र ने कहा है : किये हैं, उससे सारा विश्व गहरी चिन्ता में डूब गया यत्किचित् संसारे गरीरिणिां दःख शोक भय बीजम् । है । सर्वत्र भय और स्नेह शून्यता की प्रचण्ड पवन बह दौर्भाग्यादि समस्तं तद्धिसा-संभवं ज्ञेयम् । रही है। डॉ. इकबाल ने वर्तमान हिंसात्मक विकास की व्यंग्यात्मक शैली में इन शब्दों में समीक्षा की है : इस संसार में जीवों के दुःख शोक एवं भय के बीज स्वरूप दुर्भाग्य आदि का दर्शन होता है, वह जान ही लेने की हिकमत में तरक्की देखी। हिंसा से ही उत्पन्न समझना चाहिये। मौत का रोकनेवाला कोई पैदा न हुआ। शुद्ध तथा स्वार्थी व्यक्ति "जीवो जीवस्यभक्षणम्" दार्शनिक बड रसिल ने लिखा है जिस अणुबम जीव का आहार दूसरा जीव है अथवा समर्थ को ही जीने का अधिकार है (Survival of the fittest) के फेंके जाने पर जापान का हिरोशिमा नगर नष्ट हो। गया, आज उससे पच्चीस हजार गुने बम का निर्माण सोचा करता है। यथार्थ में उक्त बात पशू जगत से संबंध रखती है। मनुष्य पशु जगत से श्रेष्ठ है। वह हो चुका है। उन्होंने अपनी पुस्तक Impact of Science on Sociology' में लिखा है : Some eminent विवेक और विचार शक्ति समलंकृत है। उसे अपनी authorities including Eienstein hav epointed दृष्टि को उदार बनाना चाहिए । संत वाणी हैout that there is a danger of the extinc जैसे अपने प्रान हैं वैसे पर के प्रान । tion of all life on this planet (P. 126) कैसे हरते दुष्ट जन बिना बैर पर प्रान ।। आइंस्टीन आदि कुछ प्रमुख विशेषज्ञों ने कहा है कि सर्वोदय पथ: वर्तमान स्थिति इतनी भयावह है कि उससे इस सर्वज्ञ तीर्थंकर महावीर ने सर्वोदय मार्ग का उपदेश भूमंडल पर विद्यमान जीवमात्र के विनाश की संभावना दिया है। उनका सर्वोदय बहुत व्यापक है। उसमें सर्व जीवों का, सर्वकालीन तथा सर्वांगीण उदय विद्यमान है । हिंसा की भावना पर निर्मित विकास या विलास स्वर्गीय राष्ट्रपति डा. राजेन्द्रप्रसाद ने अपने एक का भवन शीघ्र धराशायी हो जाता है। भगवान बक्तव्य में कहा था, "जिन्होंने अहिंसा के मर्म को समझा महावीर के शिक्षण के विषय में आचार्य समन्तभद्र ने है, वे ही इस अंधकार में कोई रास्ता निकाल सकते हैं। कहा है "सर्वापदा मन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्थमिदं जैन धर्म ने संसार को अहिंसा की शिक्षा दी है। आज । तदैव ।।" युक्त्मतुशासन । ६१ । आपका तीर्थ (शासन) संसार को अहिंसा की आवश्यकता महसूस हो रही है। समस्त संकटों का अन्त करनेवाला तथा स्वयं विनाश जैनियों का आज मनुष्य समाज के प्रति सबसे बड़ा रहित सर्वोदय रूप है। है कर्त्तव्य यह है कि वह कोई रास्ता ढूढ़ निकालें।" अहिंसा की महत्ता : भगवान महावीर ने संसार के दुःखों का मूल कारण भगवान की करुणामयी दृष्टि जीवमात्र के हिंसात्मक भावना और आचरण को कहा है। उनका यह उत्थान की थी। वे स्वार्थ पति के स्तर पर अहिंसासूत्र अत्यन्त मार्मिक है, "हिंसा प्रसूतानि सर्वदुःखानि"- हिंसा का विश्लेषण नहीं करते थे। उनकी करुणामयी ६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211506
Book TitleMahavir ka Sarvodaya Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZ_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
Publication Year
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & Society
File Size730 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy