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हर्षकीर्ति, (रचनाकाल सं० १६८३) हिन्दी के कवि थे। इन्होंने छोटी-छोटी मुक्तक रचनाओं का निर्माण किया है । उनमें सरसता एवं गतिशीलता है । 'नेमिनाथ राजुल गीत', 'मोरड़ा' तथा 'नेमिश्वर गीत' इन सभी में नेमिनाथ और राजुल को लेकर विविध भावों का प्रदर्शन हुआ है। ये सभी भगवद्विक रति से संबंधित गीत-काम्य हैं।
जिन समुद्र सूरि' कृत 'नेमिनाथ फाग' नामक रचना सं० १६६७ की मिलती है। यह कवि की सर्वप्रथम रचना है जिसमें नेमिनाथ का जीवन अत्यधिक रोचक ढंग से निबद्ध है। कविवर जिन' (काल सं० १७०४ से १०६३ तक) कृत 'नेमि चरित्र' नामक एक रचना का उल्लेख प्राप्त होता है । इन्हीं कविवर के नाम से 'नेमि राजमती बारहमास सवैया' तथा 'नेमि बारहमासा' नामक दो बारहमासे भी मिलते हैं। इनके पदों में 'जसराज' नाम की छाप मिलती है। 'जमराज' कविवर का पूर्व नाम है और 'जिन' दीक्षित अवस्था का नाम है ।
पाण्डे हेमराज ( रचना काल सं० १७०३ से १७३० तक) कृत 'नेमि राजमति जखड़ी' नामक एक रचना मिलती है । विश्वभूषण जी ( रचना काल सं० १७२९ ) का रचा हआ 'नेमिजी कामंगल' मिलता है। कवि ने इसकी रचना सं० १६६८ में सिकन्दराबाद के 'पार्श्व जिन देहुरे' में की थी। यह एक छोटा-सा गीतिकाव्य है। भट्टारक धर्मचन्द्र का पट्टाभिषेक मारोठ में स ं० १७१२ में हुआ था। ये नागौर गादी के भट्टारक थे । इन्होंने संस्कृत के साथ-साथ हिन्दी में भी काव्य-रचना की है। इनकी 'नेमिनाथ बीनती ' नामक रचना मिलती है । कवि भाऊ द्वारा रचित 'नेमिनाथ रास' एक उत्तम कृति है । इसमें १५५ पद्य हैं । कवि का समय सं० १६६६ से पूर्व का है । इस रास का संबन्ध नेमिनाथ की वैराग्य लेने वाली घटना से है ।
लक्ष्मीवल्लभ समय १० वीं शती का दूसरा पाद) लक्ष्मी कीति जी के शिष्य थे। उनकी शिजुन बारहमासा एक प्रौढ़ रचना है, जो सर्वयों में लिखी गई है। इसमें कुल १४ पद्य हैं। रचना भगवान् के प्रति दाम्पत्य विषयक रति का समर्थन करती है । कवि बिनोदीलाल (२० काल सं० १०५०) भगवान् नेमीश्वर के परम भक्त थे । उनका अधिकांश साहित्य नेमिनाथ के चरणों में ही समर्पित हुआ है। इस संबन्ध में उनकी रचनायें विशिष्ट हैं। उनको कृतियों में प्रसाद गुण तो है ही, चित्रांकन भी है। एक-एक चित्र हृदय को छूता है । कवि को जन्म से ही भक्त हृदय मिला था। उनकी कृतियों में शृंगार और भक्ति का समन्वय हुआ है तथा तन्मयता का भाव सर्वत्र पाया जाता है 'नेमि राजुल बारहमासा' 'नेमियाह' 'रामुलगीसी', 'नेमिनाथ जी का मंगल' (रचना काल १७४४), नेमजी का रेवता' आदि उनकी रचनायें मिगाव-राजुल के प्रसिद्ध कथानक से संबन्धित है। रामविजय दयासिंह के शिष्य थे। उनका समय १८ वीं शती विक्रम है। उनकी राजस्थानी हिन्दी की 'नेमिनाथ रासो नामक रचना प्राप्त है।'
कवि भवानीदास ( रचना काल सं० १७६१ से ०१०२० तक) की 'नेमिनाथ बारहमासा' (१२ परा), 'मिहिण्डोलना (पद्य), राजमति हिण्डोलना (पद्य) और 'नेमिनाथ राजीमती की (पद्य) नामक रचनायें इस कथानक से संबंधित मिलती हैं। अजयराज पाटनी की भी 'नेमिनाथ चरित' नामक एक रचना मिलती है। इसकी रचना सं० १७६३ * में हुई थी । २६४ पद्यों की यह एक महत्त्वपूर्ण कृति है । जिनेन्द्र भूषण ने सं० १८०० में इसी कथानक को लेकर 'नेमिनाथ पुराण' की रचना की थी । इसी प्रकार झुनकलाल ने सं० १८४३ में 'नेमिनाथ विवाहलों' (गरबा ढाल २२), कवि मनरंगलाल ने सं० १८८३ में 'नेमि चन्द्रिका ", ऋषभ विजय ने सं १८८६ में 'नेमिनाथ विवाहलो', भागचन्द्र जैन ने सं० १९०७ में 'नेम पुराण की कथा वचनिका', पं० बखतावर मल, दिल्ली निवासी ने सं० १९०६ में 'नेमिनाथ पुराण भाषा' तथा केवलचन्द्र ने सं० १९२९ में 'नेमिनाथ विवाह' नामक रचना के प्रणयन किया।
इनकी साधु अवस्था का नाम महिम समुद्र था और इनकी कृति का अन्य नाम 'न' मिनाथ बारहमासा' भी है।
इन कश्विर के श्री यगरचन्द्र नाहटा तथा डॉ० प्रेमसागर जैन द्वारा दिये गये परिचयों में १८वीं शती की निम्न रचनाओंों का भौर उल्लेख प्राप्त होता है-कवि केसवदास कृत न मिराजुल बारहमासा' ( सं १७३४), ब्रह्मनाथ कत ने मीपवर राजमती को व्याहलों' (सं० १७२८) तथा 'नेमजी को लूहरि', नो मिचन्द कृत 'ने मिसूर राजमती की लूहरि', 'न मिसुर को गीत' तथा 'नो मिश्वर रास (सं० १७६६), सेवक कवि कृत 'नेमिनाथ जी का दस भव वर्णन, धर्मवर्णन कृत 'न'मि राजुल बारहमासा' तथा विनयचन्द कतं 'न ेमि राजीमती बारहमासा मौर 'रहने मि राजुल सज्झाय' नामक दो क तियाँ ।
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एक लेखक महोदय ने इकना रचना काल सं० १७३५ दिया है जो निश्चय ही प्रशुद्ध है ।
५. किसी प्रज्ञात रचयिता की 'नम चन्द्रिका' नामक सं० १७६१ में रचित एक अन्य कृति भी मिलती है।
जैन साहित्यानुशीलन
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कुछ अन्तर है। वस्तुत: यह वाचक शांति हर्ष के ही शिष्य थे ।
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