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________________ भगवान अरिष्टनेमि की ऐतिहासिकता ३६१ इन श्लोकों में 'शूरः शौरिर्जनेश्वरः' शब्दों के स्थान में 'शूरः शौरिजिनेश्वरः' पाठ मानकर अरिष्टनेमि अर्थ किया गया है । " स्मरण रखना चाहिए कि यहाँ पर श्रीकृष्ण के लिए 'शोरि' शब्द का प्रयोग हुआ है । वर्तमान में आगरा जिले के बटेश्वर के सन्निकट शौरिपुर नामक स्थान है । वही प्राचीन युग में यादवों की राजधानी थी । जरासंघ के भय से यादव वहाँ से भागकर द्वारिका में जा बसे । शौरिपुर में ही भगवान् अरिष्टनेमि का जन्म हुआ था, एतदर्थं उन्हें 'शोरि' भी कहा गया है । वे जिनेश्वर तो थे ही अतः यहाँ 'शूरः शौरिजिनेश्वरः' पाठ अधिक तर्कसंगत लगता है । क्योंकि वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में कहीं पर भी शौरिपुर के साथ यादवों का सम्बन्ध नहीं बताया, अतः महाभारत में श्रीकृष्ण को 'शौरि' लिखना विचारणीय अवश्य है । भगवान अरिष्टनेमि का नाम अहिंसा की अखण्ड ज्योति जगाने के कारण इतना अत्यधिक लोकप्रिय हुआ कि महात्मा बुद्ध के नामों की सूची में एक नाम अरिष्टनेमि का भी है । लंकावतार के तृतीय परिवर्तन में बुद्ध के अनेक नाम दिये हैं । वहीं लिखा है जिस प्रकार एक ही वस्तु के अनेक नाम प्रयुक्त होते हैं उसी प्रकार बुद्ध के असंख्य नाम हैं। कोई उन्हें तथागत कहते हैं तो कोई उन्हें स्वयंभू, नायक, विनायक, परिणायक, बुद्ध, ऋषि, वृषभ, ब्राह्मण, विष्णु, ईश्वर, प्रधान, कपिल, मूतानत, भास्कर, अरिष्टनेमि, राम, व्यास, शुक, इन्द्र, बलि, वरुण आदि नामों से पुकारते हैं । - इतिहासकारों की दृष्टि में नन्दी सूत्र में ऋषि-भाषित (इसिभासियं) का उल्लेख है । उसमें पैंतालीस प्रत्येक बुद्धों के द्वारा निरूपित पैंतालीस अध्ययन हैं। उनमें बीस प्रत्येकबुद्ध भगवान अरिष्टनेमि के समय में उनके नाम इस प्रकार हैं हुए 18 (१) नारद (२) वज्जियपुत्र (३) असित दविक (४) भारद्वाज अंगिरस (५) पुष्पसालपुत्र (६) वल्कलचीरि (७) कुर्मापुत्र (८) केवलीपुत्र (६) महाकश्यप (१०) तेतलिपुत्र १ मोक्षमार्ग प्रकाश – पं० टोडरमल २ बौद्धधर्म दर्शन, पृ० १६२ (११) मंखलिपुत्र (१२) याज्ञवल्क्य (१३) मंत्रय भयाली (२०) उल्कलवादी उनके द्वारा प्ररूपित अध्ययन अरिष्टनेमि के अस्तित्व के स्वयंभूत प्रमाण है । प्रसिद्ध इतिहासकार डाक्टर राय चौधरी ने अपने वैष्णवधर्म के प्राचीन इतिहास में भगवान अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) को श्रीकृष्ण का चचेरा भाई लिखा है । (१४) बाहुक (१५) मधुरायण (१६) सोरियायण (१७) विदु (१८) वर्षपकृष्ण (१६) आरियाण Jain Education International ३ नंन्दी सूत्र ४ णारद वज्जिय- पुत्ते आसिते अंगरिसि - पुफ्फसाले य । वक्कलकुम्मा केवल कासब तह तेतलिसुते य ॥ मंखलि जण्ण भयालि बाहुय महु सोरियाणा विदू विपू । वरिसकण्है आरिय उक्कल - वादी य तरुणे य ॥ इतिभासियाइं पढम संग्रहणी, गा० २-३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211487
Book TitleArishta Nemi ki Aetihasikta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherZ_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf
Publication Year
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirthankar
File Size476 KB
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