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शिव प्रसाद प्रशस्तियाँ इन्हीं की हैं | इनका समय विक्रम सम्वत् की बारहवीं शती सुनिश्चित है । इनके द्वारा लिखे गये ५ ग्रन्थ उपलब्ध हैं जो इस प्रकार हैं
१. आख्यानकमणिकोष [मूल] २. आत्मबोधकुलक ३. उत्तराध्ययनवृत्ति [सुखबोधा] ४. रत्नचूड़कथा
५. महावीरचरियं इनमें प्रथम दो ग्रन्थ सामान्य मुनि अवस्था में लिखे गये थे, इसी लिये इन ग्रन्थों की अन्त्य प्रशस्तियों में इनका नाम देविन्द लिखा मिलता है। उत्तराध्ययनवृत्ति और रत्नचूड़कथा की प्रशस्तियों में देवेन्द्रगणि नाम मिलता है, जिससे स्पष्ट है कि उक्त ग्रन्थ गणि “पद” मिलने के पश्चात् लिखे गये । उक्त दोनों ग्रन्थों के कुछ ताड़पत्र की प्रतियों में नेमिचन्द्रसूरि नाम भी मिलता है। अन्तिम ग्रन्थ महावीरचरियं वि० सं० ११४१/ई० सन् १०८५ में लिखा गया है। उक्त ग्रन्थों की प्रशस्तियों से ज्ञात होता है कि इनके गुरु का नाम आम्रदेवसूरि और प्रगुरु का नाम उद्योतनसूरि था, जो सर्वदेवसूरि की परम्परा के थे।
मुनिचन्द्रसूरि'-आप उपरोक्त नेमिचन्द्रसूरि के सतीर्थ्य थे। आचार्य सर्वदेवसूरि के शिष्य यशोभद्रसूरि एवं नेमिचन्द्रसूरि थे। यशोभद्रसूरि से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की एवं नेमिचन्द्रसूरि से आचार्य पद प्राप्त किया । ऐसा कहा जाता है कि इन्होंने कुल ३१ ग्रन्थ लिखे थे। इनमें से आज १० ग्रन्थ विद्यमान हैं जो इस प्रकार हैं
१. अनेकान्तजयपताका टिप्पनक २. ललितविस्तरापञ्जिका ३. उपदेशपद-सुखबोधावृत्ति ४. धर्मबिन्दु-वृत्ति ५. योगविन्दु-वृत्ति ६. कर्मप्रवृत्ति-विशेषवृत्ति ७. आवश्यक [पाक्षिक] सप्ततिका ८. रसाउलगाथाकोष ९. सार्धशतकचूर्णी
१०. पार्श्वनाथस्तवनम् जैसा कि पहले कहा जा चुका है, इनके ख्यातिनाम शिष्यों में वादिदेवसूरि, मानदेवसूरि और अजितदेवसूरि प्रमुख थे । वि० सं० ११७८ में इनका स्वर्गवास हुआ।
वादिदेवसूरि-आप मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य थे । आबू से २५ मील दूर मडार नामक ग्राम में
१. परीख, रसिक लाल छोटा लाल एवं शास्त्री, केशवराम काशीराम
संपा० गुजरात नो राजकोयअने सांस्कृतिक इतिहास, भाग ४, पृ० २९०-९१; देसाई, पूर्वोक्त पृ० ३४१-४३ ।
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