SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड रुपये तथा बीस हजार अफियाँ भेंट किये थे। यह विश्वास किया जाता है कि वह धन मालवा पर किये गये धावे के बाद ही प्राप्त हुआ था। मालवा आक्रमण के बाद ही दिवेर के मुगल थाने पर मेवाड़ी सेना ने आक्रमण कर दिवेरु की नाल पर कब्जा कर लिया। इस आक्रमण में कुंवर अमरसिंह के साथ भामाशाह भी था।' प्रसिद्ध इतिहासकार डा० कालिकारंजन कानूनगो ने लिखा है कि दिवेर के महत्त्वपूर्ण युद्ध में चण्डावतों और शक्तावतों के साथ भामाशाह ने प्रमुख भाग अदा किया था। दिवेर विजय के बाद ही महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ पर आक्रमण किया और वहाँ स्थित मुगल सेना को परास्त कर किले पर कब्जा कर लिया। महाराणा प्रताप को अपने दीर्घकालीन संघर्ष की बड़ी सफलता १५८६ में मिली जब चित्तौड़, मांडलगढ़ और अजमेर को छोड़कर शेष मेवाड़ के हिस्सों पर उनका पुनः अधिकार हो गया। इस विजय अभियान में उनके प्रधान भामाशाह की प्रधान भूमिका रही। (वीर विनोद, भाग २, पृ० १६४) । जैन कवि दौलतविजय ने अपने ग्रन्थ 'खुमाण रासो' में उल्लेख किया है कि महाराणा अमरसिंह के काल में भामाशाह ने अहमदाबाद पर जबरदस्त धावा मारा और वहाँ से दो करोड़ का धन लेकर आया । ऐतिहासिक तथ्यों के अध्ययन के आधार पर यह आक्रमण महाराणा प्रताप के समय में भामाशाह द्वारा धन एकत्रित करने हेतु किये गये अभियानों में से एक होना चाहिए । भामाशाह की मृत्यु महाराणा प्रताप के देहावसान के तीन वर्ष बाद ही हो गई थी। __ भामाशाह के मेवाड़ के प्रधान पद पर आसीन होने और सैन्य व्यवस्था एवं अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित गतिविधियों में उसकी प्रमुख भूमिका को देखते हुए इस बात का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है कि राज्य की प्रशासन-व्यवस्था, आर्थिक प्रबन्ध, युद्ध नीति, सैन्य संगठन, आक्रमणों की योजना आदि तैयार करने में भामाशाह का महाराणा प्रताप के सहयोगी एवं सलाहकार के रूप में प्रमुख योगदान रहा होगा। महाराणा के आदेश से भामाशाह द्वारा जारी किये गये कई ताम्रपत्र भी मिले हैं जो उसके प्रधान पद पर आसीन होने तथा राज्य के शासन प्रबन्ध में उसकी महत्त्वपूर्ण स्थिति को दर्शाते हैं । - भामाशाह के उज्ज्वल चरित्र पक्ष को प्रकट करने वाली एक अन्य ऐतिहासिक घटना का उल्लेख मिलता है। बादशाह अकबर अपने साम्राज्य की सुदृढ़ता एवं विस्तार के लिए भेद नीति का सहारा लेकर राजपूत राजाओं एवं योद्धाओं को एक दूसरे के विरुद्ध करके तथा राजपूत राज्यों के भीतर बान्धवों-रिश्तेदारों के बीच पारस्परिक कलह में धावा बोलकर धन वसूल किया होगा। मालवे पर किये गये आक्रमण में भामाशाह का भाई ताराचन्द भी उसके साथ था। अकबर के सेनापति शाहबाज खाँ ने धावे के बाद में बड़ी सेना का पीछा किया था, उस समय लड़ते-लड़ते ताराचन्द बसी ग्राम के पास घायल हो गया था। बसी का स्वामी सांईदास उसको उठाकर ले गया और उसके उपचार की व्यवस्था कराई। १. वही, पृ० १५८ २. K. R. Quanungo, Studies in Rajput History, p. 52 ३. वीर विनोद पृ० १५८ ४. वही, पृ० १६४ ५. शोधपत्रिका वर्ष १४, अंक १, पृ० ६३ ६. (क) महाराजाधिराज महाराणा श्री प्रतापसिंघ आदेशातु चौधरी रोहितास कस्य ग्राम मया कीधो ग्राम डाईलागा बड़ा माहे षेडा ४ बरसाली रा उदक"..."सं० १६५१ वर्षे आसोज सुद १५ दव श्रीमुख बीदमान सा० भामा (ख) सिधश्री महाराजाधिराज महाराणाजी श्री प्रतापसिंघजी आदेशातु तिवाड़ी साहुल नायण भवान काना गोपाल टीला धरती उदक आगे राणांजी श्री जी ता--रा पत्र करावे दीधो थो प्रगणे जाजपुर रा राम ग्राम पडेर पट्टे हलै धरती बीगा धारा करे दीधो श्रीमुख हुकम हुआ। सा० भामा सं० १६४५ काती सुदी १५ (श्री रामवल्लभ सोमानी का लेख-दानवीर भामाशाह-मरुधरकेसरी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० १७५) 0 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211462
Book TitleBalidan aur Shaurya ki Vibhuti Bhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevilal Paliwal
PublisherZ_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
Publication Year1982
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Biography
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy