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________________ पंचम खण्ड / 118 ध्यान अथवा समाधि की स्थिति का अनुभव करें। इस पद्धति से प्रत्येक चैतन्य केन्द्र को निर्मल बनाएं। इनकी निर्मलता से विशिष्ट प्रकार की शक्तियां जागृत होती हैं। शक्ति केन्द्र की निर्मलता से वाकसिद्धि, कवित्व और प्रारोग्य का विकास होता है। स्वास्थ्य केन्द्र की निर्मलता से प्रचेतन मन पर नियंत्रण करने की क्षमता पैदा होती है। प्रारोग्य और ऐश्वर्य का विकास होता है। तैजस केन्द्र के निर्मल होने पर क्रोध प्रादि वृत्तियों के साक्षात्कार की क्षमता पैदा होती है। प्राणशक्ति की प्रबलता भी प्राप्त होती है। प्रानन्द केन्द्र की निर्मलता द्वारा बुढापे की व्यथा को कम किया जा सकता है, विचार का प्रवाह रुक जाता है, सहज आनंद की अनुभूति होती है। विशुद्धि केन्द्र की सक्रियता से वृत्तियों के परिष्कार की क्षमता पैदा होती है / बुढापे को रोकने की क्षमता पैदा करना भी इसका एक महत्त्वपूर्ण कार्य है / ब्रह्म केन्द्र की निर्मलता द्वारा कामवृत्ति के नियंत्रण की क्षमता पैदा होती है। प्राण केन्द्र की निर्मलता द्वारा निर्विचार अवस्था प्राप्त होती है। अप्रमाद केन्द्र की साधना से नशे की आदत को बदला जा सकता है। शराब, तंबाकू आदि मादक वस्तुओं के सेवन की पादत को बदलना एक जटिल समस्या है। अप्रमाद केन्द्र की प्रेक्षा करते करते उस आदत में परिवर्तन शुरू होता है और कुछ दिनों के अभ्यास से परिवर्तन स्थिर हो जाता है। चाक्षुष केन्द्र की साधना के द्वारा एकाग्रता को साधन बनाया जा सकता है / दर्शन केन्द्र की प्रेक्षा के द्वारा अंतर्दष्टि का विकास होता है। यह हमारी अतीन्द्रिय क्षमता है। इसके द्वारा वस्तु-धर्म और घटना के साथ साक्षात् संपर्क स्थापित किया जा सकता है। ज्योति केन्द्र की साधना के द्वारा क्रोध को उपशान्त किया जा सकता है। शान्ति केन्द्र पर प्रेक्षा का प्रयोग कर हम भावसंस्थान को पवित्र बना सकते हैं। "लिम्बिक सिस्टम" मस्तिष्क का एक महत्त्वपूर्ण भाग है, जहां भावनाएं पैदा होती हैं / शान्तिकेन्द्रप्रेक्षा उसी स्थान को प्रभावित करने का प्रयोग है। प्राचीन भाषा में यह हृदय परिवर्तन का प्रयोग है। ज्ञान केन्द्र की साधना के द्वारा अन्तर्ज्ञान को विकसित किया जा सकता है। यह अतीन्द्रिय चेतना का विकसित रूप है। चैतन्य केन्द्र की साधना के साथ लघु मस्तिष्क की प्रेक्षा भी महत्त्वपूर्ण है / यह अतीन्द्रिय चेतना के विकास में बहुत सहयोगी बनता है। प्राज की समस्या का मूल है-चित्त की दुर्बलता, मनोबल की कमी। जब मन की शक्ति कम होती है तब समस्याएं भयंकर बनती चली जाती हैं / जब मन की शक्ति दृढ होती है, तब भयंकर समस्या आने पर भी नहीं लगता कि यह कोई समस्या है। बहुत बड़ी समस्या भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211451
Book TitlePrekshadhyan au Shakti Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherZ_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf
Publication Year1988
Total Pages3
LanguageHindi
ClassificationArticle & Meditation Yoga
File Size437 KB
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