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________________ प्राचीन भारतीय मूर्तिकला को मालवा की देन २२७ लक्ष्मी सहित विष्णु की प्रतिमा उपलब्ध हुई है। ग्यारसपुर के हिंडोला द्वार पर दशावतार की प्रतिमाएँ हैं । धमनार के उपर्युक्त मन्दिर में भी दशावतार का आकर्षक अंकन हुआ है । बड़ोह तथा करोहन से भी वराह प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं। हिरण्यकशिपु का हनन करते नृसिंह की एक प्रतिमा टोंगरा में प्राप्त होती है। कोहला के वराह मन्दिर में वराह के अतिरिक्त नृसिंह की भी प्रतिमा है। सुनारी तथा बड़ोह में विष्णु के एक अवतार बुद्ध को भी शिलांकित किया गया है। धमनार के पूर्वोक्त मन्दिर में शेषशायी विष्णु की प्रतिमा प्रदर्शित है जिसकी नाभि-कमल पर ब्रह्मा विराजमान हैं। नारायण पर मधु तथा कैटभ आक्रमण करते हैं परन्तु उन्हें वे नष्ट कर देते हैं । माण्डू की लोहानी गुहा के निकट से शेषशायी की सुन्दर प्रतिमा प्राप्त हुई है । जिस पर १२५८ संवत् उत्कीर्ण है । धार से ब्रह्मा एवं दशावतार सहित शेष की प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसी प्रकार झारडा से शेषशायी विष्णु की एवं अनन्तशय्या की दूधाखेड़ी से प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं। प्राचीन मन्दिरों की भित्ति तथा स्तम्भों पर रामायण एवं महाभारत के दृश्य अंकित पाए जाते हैं। रामायण का ऐसा ही दृश्य सन्धाना से उपलब्ध हुआ है। बड़ोह के गडरमल मन्दिर में कृष्ण-यशोदा का अंकन है। हुमैन के प्राचीन मन्दिर में भी कृष्णकथाएँ अंकित हैं। मोड़ी के पार्श्वनाथ मन्दिर के मण्डप में कृष्णजीवन से सम्बद्ध अनेक दृश्य उत्कीर्ण हैं।१० परमार मूलत: शव थे। इस काल में अनेक शैव प्रतिमाएँ निर्मित हुईं। शिव की वाम-जंघा पर आसोन पार्वती की प्रतिमाएँ मालवा के प्रायः सभी प्राचीन स्थलों में देखी जा सकती हैं। उज्जैन में तो ये विपुल मात्रा में मिलती हैं। झालरापाटन में परमारयुगीन नृत्यशिव की सुन्दर प्रतिमा प्राप्त होती है। धमनार के पूर्वोक्त मन्दिर में ताण्डव करते शिव अंकित हैं। इनके पास नन्दी एवं नृत्य करती देवियाँ भी प्रदर्शित हैं-नन्दी सहित पार्वती, गरुड़ासीन वैष्णवी, ऐरावतासीन इन्द्राणी, हंसासीन ब्रह्माणी। उज्जैन से उपलब्ध नृत्यशिव की एक प्रतिमा ग्वालियर संग्रहालय में प्रदर्शित है। यह पांच फीट ऊँची तथा दशभुजात्मक प्रतिमा गजासुर का वध करती बतायी गयी है। रामगढ़ के शिव मन्दिर में भी दशभुज शिव की प्रतिमा प्राप्त होती है । वे त्रिभुवन में नृत्य करते प्रदर्शित हैं जिनके समक्ष समस्त देववर्ग भी बौना प्रदर्शित है। उज्जैन के निकट आगर में नन्दी पर आसीन शिव-पार्वती की प्रतिमा प्राप्त होती है । ग्यारसपुर से भी शत्रुहन्ता शिव की प्रतिमा प्राप्त होती है। त्रिपुरारि शिव झारड़ा में प्रदर्शित हैं । उदयपुर पहाड़ी की ढलान पर एक विशाल पाषाण पर अपूर्ण शिव प्रतिमा बनी है । इसके छः हाथ हैं यह २६ फीट ऊँची एवं १२ फोट ७ इंच चौड़ी है। चरण नृत्यमुद्रा में हैं जिसके नीचे कोई राक्षस कुचला जा रहा है। गले में नाग, १० डॉ० के० सी० जैन, मालवा थ द एजेज, पृ० ४५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211435
Book TitlePrachin Bhartiya Murtikala ko Malva ki Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagvatilal Rajpurohit
PublisherZ_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf
Publication Year
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationArticle & Art
File Size964 KB
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