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________________ प्राचीन भारतीय मूर्तिकला को मालवा की देन २२५ हो गयी। अब कलाकार उन्हें कला के प्रतिष्ठित सौन्दर्य भावों से नहीं, सीधे प्रवाहित जीवन से लेने लगा। जीवन की सरसता मूर्तिमती होने लगी। अलंकरण में न्यूनता आ गयी। स्वाभाविक सौन्दर्य विहँस पड़ा। उदयगिरि की गुहा में वराह की १२ फीट ८ इंच ऊँची विशालकाय प्रतिमा अनायास पृथ्वी उठाते हुए शक्ति के प्रमाण सी प्रतीत होती है । छठी गुहा में चतुर्भुज विष्णु की दो प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। ५, ६, १०, ११ तथा १२वीं गुहा में भी विष्णु की खड़ी प्रतिमाएं निर्मित हैं। परन्तु १३वीं गुहा में शेषशायी विष्णु की बारह फीट लम्बी प्रतिमा उत्कीर्ण है जिसमें सिर कोहनी से उठे हाथ की हथेली पर टिका है । प्रतिमा अत्यन्त सौम्य एवं मनोहर है। इसमें परितः गरुड़ प्रभृति अनुचर भी प्रदर्शित हैं। १९वीं गुहा में समुद्रमंथन प्रदर्शित है। बेसनगर से उपलब्ध नृसिंह की मूर्ति भी आकर्षक है।८ उज्जैन के निकट कायथा से भी सूर्य की एक मनोहर मूर्ति प्राप्त हुई है। उदयगिरि की तीसरी गुहा में स्कन्द की सुन्दर प्रतिमा है जिसके एक हाथ में दण्ड अथवा शक्ति तथा दो सिर हैं । दुमैन से प्राप्त प्रतिमा लघु पर आकर्षक है। तथैव कोटा से भी प्राप्त हुई है। उदयगिरि की ६वीं एवं १७वीं गुहा में गणेश की मूर्तियां प्रदर्शित हैं। ६वीं एवं १७वों गुहा में ही द्वादश-करा महिषमदिनी की प्रतिमा भी सुन्दर हैं। मन्दसौर में उड़ते गन्धर्व की प्रतिमा में भी आकर्षण है। इसी काल की यक्ष-यक्षी प्रतिमा विदिशा से प्राप्त हुई है। बाघ एवं सांची में प्रदर्शित इस काल की बुद्ध प्रतिमाएँ युगानुरूप हृदयग्राहिणी नहीं बन पायीं। उदयगिरि की बीसवीं गुहा में अवशिष्ट नागछत्र से प्रतीत होता है कि वहाँ पार्श्वनाथ की प्रतिमा रही होगी। कुछ वर्ष पूर्व विदिशा से तीन प्रतिमाएं उपलब्ध हुई हैं तीर्थंकर पुष्पदन्त की दो प्रतिमाएँ तथा चन्द्रप्रभु की एक प्रतिमा। इन प्रतिमाओं पर 'महाराजाधिराज रामगुप्त' का नाम भी उत्कीर्ण है।' मन्दसौर के खिलचीपुर तथा बाघ के द्वारपालों का अंकन भी अनोखा है। गुप्तकाल तथा परमार युग के मध्यकाल की कला का मालवा में सतत क्रम प्राप्त नहीं होता। भोपाल के निकट भोजपुर में ७वीं-८वीं सदी की एक बुद्ध प्रतिमा है जो आभूषण मंडित भी है। धमनार की गुहाओं में भी बुद्ध की कई अज्ञात मुद्राएं अंकित हैं। ग्यारसपुर में बुद्ध की भूमिस्पर्श मुद्रा प्रदर्शित है। मन्दसौर से पूर्व में लगभग १२ मील दूर अफजलपुर में उत्तर गुप्तकालीन पर्याप्त प्रतिमाएं बिखरी पड़ी हैं। काले पत्थर से बनी इन मूर्तियों में अनोखा आकर्षण है। वहाँ भावसार के घर के आंगन में एक विशाल मूर्ति का मुख भाग दिखाई देता है जिसे मयूरध्वज की मूर्ति ७ डॉ० भगवतशरण उपाध्याय, भारतीय कला और संस्कृति की भूमिका, पृ० ६६ ८ विक्रमस्मृति ग्रन्थ, पृ० ६६७ ६ बड़ौदा प्राच्य शोध संस्थान का जर्नल, पृ० २५२ Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.211435
Book TitlePrachin Bhartiya Murtikala ko Malva ki Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagvatilal Rajpurohit
PublisherZ_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf
Publication Year
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationArticle & Art
File Size964 KB
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