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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य इन्द्रनन्दि - इन्द्रनन्दि नाम के अनेक विद्वान आचार्य हो गए हैं। दक्षिण भारत में दिगम्बर जैन आचार्यों ने द्रविड भाषा इन्द्रनन्दिसंहिता के रचयिता का नाम विशेष प्रसिद्ध है। इनके तमिल, तेलुगू और कन्नड़ के उत्थान में सेवाएँ समर्पित की। अतिरिक्त ज्वालामालिनीकल्प के रचयिता एक अन्य इंद्रनन्दि तोलकाघियम तमिल भाषा के सभी व्याकरण ग्रन्थों का मूल ईसवी सन की दशवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हो गए हैं। ये वासवनन्दि माना जाता है। इसे विद्वानों ने जैनग्रन्थ माना है। इसके कर्ता के प्रशिष्य और वप्पनन्दि के शिष्य थे। संस्कृत-व्याकरण में तथा साहित्य में निर्विवाद रूप से प्रवीण थे। तिरुक्कुरल एक तमिल नीति-ग्रन्थ है। इसे तमिलवेद भी जिनचन्द्राचार्य - 'सिद्धान्तसार' नामक ग्रंथ के रचनाकार कहा जाता है। इसके कर्ता एलाचार्य कुन्दकुन्द थे। नालडियार जिनचन्द्राचार्य की भास्करनन्दि के गुरु के रूप में पं. नाथूराम एक संग्रहग्रन्थ है, यह भी कुरल के समान समाहत है। प्रेमी ने संभावना की है। इनका उल्लेख श्रवणबेलगोल के शिलप्पदिकारम् चेल के युवराज, जो कि मुनि हो गए थे, की ५५वें शिलालेख में किया गया है। महत्त्वपूर्ण कृति है। यह तमिल के पाँच महाकाव्यों में परिगणित जिनचन्द्र नाम के एक और आचार्य हो गए हैं जो धर्मसंग्रह है। पंचमहाकाव्यों में तीन जैनग्रन्थ तथा दो बौद्धग्रन्थों की गणना श्रावकाचार के कर्ता पं. मेधावी के गुरु थे और शुभचन्द्राचार्य होती है। अवशिष्ट दो जैन महाकाव्य वलयापति और के शिष्य थे। ये शुभचन्द्राचार्य पद्मनन्दि आचार्य के पट्टधर थे जीवकचिन्तामणि हैं। तमिल में पाँच लघुकाव्य भी अतिप्रसिद्ध और पाण्डवपुराण आदि ग्रन्थों के कर्ता शुभचन्द्र से पहले हो गए हैं। हैं। ये हैं-यशोधरकाव्य, चूलामणि, उदयनकथै, नागकुमार काव्य और नीलकेशि। ये पाँचों ही जैन रचनाएँ हैं। इन ग्रन्थों के अतिरिक्त श्रीधरसेन - सुप्रसिद्ध दिगंबर जैनाचार्य श्रीधरसेन जैन-वाङ्मय अनेरिच्चारम्, पलनोलि आदि नीतिग्रन्थ, मेरूमंदिरपुराणम्, श्रीपुराणम् में कोशसाहित्य के रचयिता के रूप में चर्चित हैं। इसका दूसरा आदि पुराण ग्रन्थ, यप्परंगुलक्करिकै, यप्परंगुलवृत्ति, नेमिनाथम्, नाम मुक्तावलकोश भी है। ये नाना शास्त्रों के पारगामी विद्वान् नानूल आदि व्याकरण्ग्रन्थ, उच्चनंदिमालै आदि ज्योतिषग्रंथ भी होने के साथ ही बड़े-बड़े राजपुरुषों के द्वारा पूजित थे। . जैन साहित्यकारों की तमिल में महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं । विश्वलोचनकोश में २४५३ पद्य हैं, जो अनष्टप छन्द में रचित हैं। नानार्थकोशों में यह सबसे बड़ा कोश है। इसके कर्ता का समय उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त संस्कृत में भट्टारकों ने १३५० और १५५० ई. के मध्य अनुमानित किया जाता है। प्रभूत मात्रा में साहित्यनिर्माण किया। ये भट्टारक प्रारंभ में दिगम्बर मुनि ही हुआ करते थे। धीरे-धीरे इनमें शिथिलाचार बढ़ता गया श्रीधर नाम के अन्य अनेक आचार्य हो गए हैं। एक और ये वस्त्रधारी हो गए तथा राजसी ठाठबाट से रहने लगे, श्रीधराचार्य ईसवी सन् की आठवीं शती के अंतिम भाग या किन्तु इसमें कोई संदेह नहीं की इनके कारण जैन-संस्कृति और नवम शती के पूर्वार्द्ध में हुए। इनका उल्लेख भास्कराचार्य केशव, साहित्य दक्षिण में सुरक्षित रहा। इस प्रकार भारतीय साहित्य के दिवाकर, देवज्ञ आदि ने किया है। इनके द्वारा चार ग्रन्थों की क्षेत्र में दिगम्बर जैन आचार्यों का महान योगदान है। रचना की गयी सन्दर्भ १. गणितसार या त्रिंशतिका, २. ज्योतिर्ज्ञानविधि, ३. जातकतिलक और ४. बीजगणित। १. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा, भाग - २, श्रीधराचार्य गणित और ज्योतिष के अच्छे विद्वान् थे। पृ. ३१ डॉ. रमेशचन्द्र जैन, जैन पर्व - पृ.६६ - ६९ अन्य आचार्य - उपर्युक्त आचार्यों के अतिरिक्त दुर्गदेवाचार्य, The Jain sources of the history of India, P. 114 मुनिपद्मकीर्ति, गणधरकीर्ति, भट्टवोसरि, उग्रादित्याचार्य, भावसेन ४. कसायपाहुड़ - पञ्चम भाग, पृ. ३८८ विद्य, नयसेन, श्रुतमुनि, माघनन्दि, वज्रनन्दि, महासेन द्वितीय, 5. The Jain sources of the History of ancient India सुमतिदेव, पद्मसिंह, नयनन्दि आदि अनेक दिगम्बर आचार्य हुए, P.116 जिन्होंने विविध विषयों पर साहित्य-सर्जना की। ६. कसायपाहुडसुत्त (पं. हीरालाल सद्धान्तशास्त्री द्वारा लिखित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211428
Book TitlePrachin Digambaracharya aur unki Sahitya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherZ_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf
Publication Year1999
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size3 MB
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