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अभयकुमार ने कहा कि इसे सूली पर चढ़ाना ठीक दण्ड नहीं । इसके पास चोरी का सामान नहीं पकड़ा गया। वह गधे से उतारा गया। उससे पूछताछ हुई । उसने बताया कि मैं शालिग्राम का रहने वाला दुर्गचण्ड किसान हूँ। काम से यहां आया था । नगर में किसी सम्बन्धी के न होने से चण्डिकायतन में सोया था। तभी आरक्षकों द्वारा घेर लिया गया और मुझे प्राकार लाँघना पड़ा। वहीं पकड़ लिया गया। एक दूत शालिग्राम भेजा गया। वहां के ग्रामवासियों ने कहा कि दुर्गचण्ड यहां रहता है। आज काम से बाहर गया है। उस दिन रौहिणेय का न्याय टल गया।
अभयकुमार ने एक नाटक का आयोजन कराया। पहले तो रोहिणेय को सुरापान कराकर प्रमत्त कर दिया गया और उसके चारों ओर ऐसी व्यवस्था की गई कि वह स्वर्गलोक में है । नाट्याचार्य भरत के तत्त्वावधान में वेश्याङ्गनायें अप्सराओं की भूमिका में थीं। चन्द्रलेखा और वसन्तलेखा रौहिणेय के दाईं ओर बैठीं, और ज्योतिप्रभा और विद्युत्प्रभा उसके बाई ओर बैठीं । शृङ्गारवती नत्य करने लगी। गन्धवों ने सङ्गीत प्रस्तुत किया । तब तक रौहिणेय चेतना प्राप्त कर चुका था। सभी अभिनेता उसे चेतनापूर्ण देख चिल्ला उठे-आज देवलोक धन्य है कि स्वामी-रहित हम लोगों को आप स्वामी प्राप्त हुये।' चन्द्र लेखा' और विद्युत्प्रभा' ने भी ऐसे ही विचार व्यक्त किये।
तभी प्रतिहार ने आकर कहा कि तुम लोगों ने स्वर्लोकाचार किये बिना ही अपना कौशल दिखाना आरम्भ कर दिया। पूछने पर बताया कि जो कोई यहां नया देवता बनता है, वह अपने पूर्व जन्म सुकृत-दुष्कृत को पहले बताता है। उसके पश्चात् वह स्वर्गोचित भोगों का अधिकारी होता है। उसने रौहिणेय से कहा कि मुझे इन्द्र ने भेजा है । आप अपने मानव जन्म के उपार्जित शुभाशुभ का विवरण दें।
रोहिणेय ने सारी परिस्थिति भांप ली कि मेरे चारों ओर के लोग देव नहीं हैं क्योंकि उन्हें पसीना आ रहा है, वे भूतल का स्पर्श कर रहे हैं, उनकी मालायें मुरझा रही हैं । यह सारा कैतव है । उसने मिथ्या उत्तर दिया।'
प्रतिहार ने कहा कि ये तो शुभकर्म हैं, अशुभ बतायें । रोहिणेय ने उत्तर दिया कि दुष्कर्म तो उसके द्वारा कभी किए ही नहीं गए।
प्रतिहारी ने कहा कि स्वभावत: मनुष्य परस्त्री संग, परधन हरण, जुआ आदि दुष्प्रवृत्तियों से ग्रस्त होता है । आपने इनमें से क्या किया ? रौहिणेय ने उत्तर दिया कि यह तो मेरी स्वर्णगति से ही स्पष्ट है कि मैं इन दुष्प्रवृत्तियों से सर्वथा दूर रहा हूँ।
तभी राजा श्रेणिक और अमात्य अभय प्रकट हुए। प्रतिहारी को बात सुनकर अभयकुमार ने राजा से कहा कि इसको दण्ड नहीं दिया जा सकता। यह डाक है। पर प्रमाणाभाव के कारण दण्ड देना राजनीति के विरुद्ध है। उसे अभय प्रदान करके वास्तविकता पूछकर छोड़ दिया जाय।
१. अस्मिन् महाविमाने स्वमुत्पन्नास्त्रिदशोऽधुना ।
अस्माकं स्वामिभूतोऽसि त्वदीयाः किड करावयम् ॥६.५।। २. यज्जातस्त्व मञ्जमञ्जुलमहो प्रस्माकन प्राणप्रियः ॥६.१३॥ ३. जाता ते दर्शनात् सुभग समधिक कामदः स्थावस्था ॥६.१६॥
दत्त पात्रेषु दानं नयनिचितधनश्चक्रिरे शैलकल्पान्युच्चैश्चैत्यानि चिनाः शिवसुखफलदा: कल्पितास्तीर्थयात्राः । चक्रे सेवा गुरूणामनुपमविधिना ar: सपर्या जिनाना बिम्बानि स्थापितानि प्रतिकलममल ध्यातमहंतचश्च | ६.१९ |
दुश्चरित्र मया क्यापि कदाचिदपि नो कृतम् । ६.२०॥ ६. प्रपञ्चचतुरोऽप्युच्च रहमठेन वञ्चितः
वञ्च्यन्ते वञ्चनादक्ष दंक्षा पनि कदाचन ॥६.२४॥
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५.
जैन साहित्यानुशीलन
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