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________________ ५] पौरवाट (परवार ) अन्वय - १ पौरपाट अन्वय सदा से अपने संगठन के मूल काल से 'मूलसंघ कुंदकुंद आम्नाय को मानने वाला रहा है । इस कथन में कोई अत्युक्ति नहीं है कि इस अन्वय ने ही इस आम्नाय को जीवित रखा है । इसीलिये सात-आठ सौ वर्ष पूर्व के चन्द्रकीर्ति नामक मुनि या भट्टारक ने मूलसंघ का उपहास किया हैं । ये १२-१३वीं सदी में हुए हैं और सम्भवतः काष्ठासंघी मूल गया पाताल, मूल न मने न दीसे । मूलहि सद् व्रत भंग, किम मूल पिठां परवार, तेने श्रावक यतिवर धर्म, तेह किम आवी आढो || सकल शास्त्र लिखतां, यह संघ दीसे नहीं । चन्द्रकीति एवं बदति, मोर पौछ काढे नहीं ॥ उत्तम होसे || सब काढी । थे । उसकी समझ से उन्हें मूलसंघ कहीं दिखाई नहीं दिया, वह पाताल में चला गया है। यह उत्तम कैसे हो सकता है जबकि इसमें भी व्रत क्रिया कहीं भी दिखाई नहीं देती । मूलसंघ की पीठ (आश्रयदाता) परवार अन्वय ही है, उसके द्वारा ही मूलसंघ की यह सब खुराफात चालू की गई है। यह श्रावकधर्म और यतिधमं के विरोध में खड़ा कैसे हो सकता है । वस्तुतः यह एक ऐसा उल्लेख है जिससे स्पष्ट है कि परवार अन्वय के लिये जो 'पौरपाट, पौरपट्ट' कहा गया है, वह सार्थक तो है ही, साथ ही ऐतिहासिक भी है। इस नाम से हमारी मूलसंघ की अनुयायिता की विशेषता का भान होता है जो लगभग दो हजार वर्ष पूर्व से चली आ रही है । ५. परवारों के भेद-प्रभेद ३६३ कविवर बखतराम कृत 'बुद्धि विलास' में परवारों (पुरवारों) के सात भेद बताये हैं - १. अठसरवा, २. चौसखा, ३ . सेडसरहा (खैसखा), ४. दो सखा, ५. सोरठिया, ६. गांगड़ और ७ पद्मावती । प्राग्वाट इतिहास की भूमिका में श्री नाहटा ने कुछ काट-छाँट के बाद वैश्यों की चौरासी जातियों का नाम निर्देश करते हुए एक सूची दी है जिसमें परवार अन्वय के गांगड़ को छोड़कर बाकी उपरोक्त छह नाम मिले। उस सूची में एक भेद का नाम कुंडलपुरी भी है । यदि इसे 'गांगड़' के स्थान पर परवार अन्वय में गिन लिया जावे, यहाँ भी सात भेद हो जाते हैं । कोल्हापुर के डा० संगवे ने 'जैन सम्प्रदाय - एक सामाजिक सर्वेक्षण' नामक पुस्तक में पी० डी० जैन, प्रो० एच० एच० विल्सन तथा अन्य कुल मिलाकर परवार के भेदों को चार सूचियाँ प्रस्तुत की हैं। पी० डी० जैन के अनुसार, परवार अन्वय के पाँच भेद हैं-- (१) परवार (२) पद्मावती पुरवाल (३) सोरठिया (४) दसहा और (५) माली परवार । प्रो० विल्सन की सूची में परवार, सोरठिया और गंगाड नामक तीन नाम ही हैं । इसमें एक जाति का नाम 'बहरिया' दिया है । परवार अन्वय के १४४ या १४५ मूलों में एक मूल का नाम बहुरिया है जो सम्भवतः बहरिया अन्वय के अर्थ में ही आया है, इससे संकेत मिलता है कि बहुतेरे मूल जाति के अर्थ में बदलकर स्वतन्त्र अन्वय (जाति) बन गये हों, तो कोई आश्चर्य नहीं । इन सूचियों पर दृष्टिपात करने से तत्तत् सूची में सम्मिलित कर लिया गया। इन Jain Education International संगवे द्वारा प्रस्तुत गुजरात की सूची में परवार, पुरवार या पोरवाल - किसी भी अन्वय का नाम नहीं है । उसमें एक अन्वय का नाम तिपोरा अवश्य है । संभवतः इससे पौरवाढ़, पौरपट्ट और पुरवारों का ग्रहण किया गया है । उनकी दक्षिण प्रदेश की सूची में परवार अन्वय के अर्थ में 'परवाल' नाम आया है । उसमें अठसखा के स्थान पर 'अस्टवार' तथा सोरठिया के स्थान पर सारडिया नाम पाये जाते हैं। इसमें एक अन्वय का नाम पवारछिया भी आया है । ऐसा लगता है कि संकलन करते समय जिन्हें जो नाम उपलब्ध हुए, उन्हें भेदों का विवरण और उनकी वर्तमान स्थिति विचारणीय 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211374
Book TitlePaurpat Anvay 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shatri
PublisherZ_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf
Publication Year1989
Total Pages16
LanguageHindi
ClassificationArticle & Society
File Size2 MB
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