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पंचम खण्ड / १८
भी बतलाये हैं।' योगी उसी पासन को ध्यान का साधन बना सकता है, जिससे मन स्थिर रह सके । योगी अमुक अासन ही करे, ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है ।
आसन का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए प्राचार्य शुभचन्द्र ने कहा है कि जितेन्द्रियों को
आसन-जय करना चाहिए, इससे समाधि में थोड़ा भी खेद नहीं होता है। जिसको आसन का. अचेनार्चन | अभ्यास नहीं होता है, उस योगी का शरीर स्थिर नहीं होता है, जिससे योगी को खेद होता
है। आसन को जीतने वाला योगी पवन, गर्मी, तुषार आदि और विभिन्न प्रकार के जीवों से पीड़ित होकर भी खेद-खिन्न नहीं होता है । अत: योगी को प्रासनजयी होना चाहिए ।
प्राणायाम-पतंजलि ने योग का चौथा अंग प्राणायाम बतलाया है। 'प्राण+पायाम प्राणायाम । प्राण का अर्थ है वायु और पायाम का अर्थ है रोकना । अतः प्राणायाम का अर्थ हमा-श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया का निरोध करना । आचार्य शुभचन्द्र और हेमचन्द्र ने प्राणायाम के तीन भेद योगदर्शन की भांति बतलाये हैं-पूरक, कुम्भक और रेचक ।५ किसी प्राचार्य ने प्राणायाम के उपर्युक्त तीन भेदों में प्रत्याहार, शान्त, उत्तर और अधर को मिलाकर सात प्रकार का प्राणायाम बतलाया है। उपर्युक्त प्राणायामों का विस्तृत और सूक्ष्म विवेचन ज्ञानार्णव और योगशास्त्र में उपलब्ध है।
योगदर्शन की भाँति जैनदर्शन में भी प्राणायाम की आवश्यकता योगी के लिए प्रतिपादित की गई है, लेकिन इसके प्रतिपादन का उद्देश्य या प्रयोजन अलग-अलग प्रतीत होता है। जैनदर्शन में ध्यान की सिद्धि और मन की एकाग्रता से प्रात्म-स्वरूप में स्थिर होने के लिए प्राणायाम की प्रशंसा की गई है। बिना प्राणायाम के मन को नहीं जीता जा सकता है। हेमचन्द्र कहते हैं कि यद्यपि मन और वायु दोनों परस्पर अविनाभावी हैं लेकिन इनमें से किसी एक के निरोध करने से दूसरे का भी निरोध हो जाता है । मन और वायु का निरोध हो जाने से इन्द्रिय और बुद्धि के व्यापार का नाश हो जाता है और ऐसा होने पर मोक्ष हो जाता है।'' शुभचन्द्र ने भी कहा है कि प्राणायाम से चित्त स्थिर हो जाता है और चित्त के
१. हेमचन्द्र, योगशास्त्र, ४।१२४ २. जायते स्थिति येनेह, विहितेन स्थिरं मनः ।
तत्तदेव विधातव्यम् आसनं ध्यान साधनम् ॥-वही, ४११३४. ३. शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव, २९।३०-३२ ४. "प्राणायमो गतिच्छेदः श्वासप्रश्वासयोर्मतः।" योगशास्त्र, ५।४ ५. (क) शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव २९।३
(ख) हेमचन्द्र, योगशास्त्र ५।४ ६. योगशास्त्र ५१५ ७. ज्ञानार्णव २९।३-१०२ ८. योगशास्त्र ५।४-२७३ ९. सुनिर्णीतसुसिद्धांतैः प्राणायाम: प्रशस्यते ।
मुनिभिान सिद्धयर्थं स्थैर्यार्थ चान्तरात्मनः ।। -ज्ञानार्णव, २९-१ १०. वही, २९।२ ११. योगशास्त्र, ५।२-३
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