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गये और कलर गढ़ भाटियोंके अधीन हो गया। भाटियोंने पल्लूके शौर्यको चिर-स्थायी बनाने के लिए कलर गढ़ का नाम बदलकर पल्लू गढ़ रख दिया जो अभी तक चला आ रहा है ।।
पल्लू का समीकरण खरतरगच्छपट्टावलिके पल्हुपुर तथा चौहानअभिलेखीय स्थल प्रह्लादकूप से भी किया गया है । किरातकूप से किराडू तथा जांगलकूपसे जांगलू के समान प्रह्लादकूपसे पल्लू की व्युत्पत्ति भाषा-वैज्ञा. निक दृष्टिसे तर्क-संगत जान पड़ती है। परन्तु कलूरगढ़ नाम की व्युत्पत्ति अज्ञात है । गढ़ (=कोट) से स्पष्ट है कि उत्तर-मध्यकाल में यहांपर जाटोंका किला था । आज भी यदि पल्लूके थेड़का निरीक्षण ध्यानपूर्वक किया जाये तो इस किले की रूपरेखा कुछ स्पष्ट हो जाती है। चौकोर किलेके चारों किनारों पर गोल बुों तथा चारों ओर परिखाकी सम्भावना चतुष्कोण थेड़ के किनारोंपर गोल-गोल बाहर को बढ़े हए मिट्टीके ढेरों तथा चारों ओर के निकटवर्ती गड्ढोंसे सहज अनुमेय है । जाटोंका यह किला सम्भवतः निम्नांकित आकृतिका था
PROINOOL
कलूर में 'ऊर' भाग सम्भवतः पुर का अवशेष है । प्राचीनता
पल्लूके थेड़के ऊपर तथा इर्द-गिर्द कुछ दूरी तक इसकी प्राचीनताके परिचायक पुराने मृद्भाण्डोंके टुकड़े विकीर्ण हैं । थेड़ तथा आस-पासकी भूमिसे अबतक प्राप्त अवशेषों में प्राचीनतम है इण्डो-ग्रीक राजा फिलौक्सिनोस (Philoxenos) की एक ताम्र-मुद्रा जो इस बात की परिचायक है कि पल्लू ईसा पूर्व द्वितीय २. परमेश्वरलाल सोलंकी, “पल्लू घाटी और उसकी कलाकृतियां', वरदा, वर्ष ४, अंक २ (अप्रैल १९६१)
पृष्ठ २०-२१ । ३. Dr. Dasharatha Sharma, Early Chauhan Dynasties, Delhi, 1959, pp. 312
and 314. १. मौजीराम भारद्वाज, 'पल्ल गांवका ब्राह्मणी मन्दिर", सत्य विचार (बीकानेर), दिनांक ८.६.६५,
पृष्ठ ३ । १२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ
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