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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ ।
पर्यावरण प्रदूषण और जैन दृष्टि
-डॉ. सुषमा
भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में अन्यतम । में वैचारिक प्रदूषण का (मन, बुद्धि और अहंकार के प्रदूषण) का
है। इसका प्रारम्भ कब और किसके द्वारा हुआ अथवा इस संस्कृति परिगणन नहीं हुआ है। यद्यपि प्रदूषण के क्षेत्र में सर्वाधिक महत्त्व SSOS का बीजवपन किन द्वारा हुआ, इस प्रसंग में भिन्न-भिन्न विद्वानों के इसका ही है। इसके अप्रदूषित रहने पर शेष के प्रदूषण की
भिन्न-भिन्न मत हैं। एक परम्परा वेदों को आदि ज्ञान मानती है और सम्भावना कम से कम होती है। वैचारिक प्रदूषण के अभाव से उन्हें ही भारतीय संस्कृति का मूल स्वीकार करती है। इसके विपरीत व्यक्ति निरन्तर सचेष्ट रहेगा कि उसके किसी भी व्यवहार से जल, दूसरी परम्परा सृष्टि को अनादि मानकर वर्तमान संस्कृति का वायु, भूमि, अन्तरिक्ष, द्यु आदि कोई भी प्रदूषित न होने पाएं। प्रारम्भ आदिनाथ भगवान् ऋषभदेव से मानती है।
इस प्रकार वैचारिक प्रदूषण को सम्मिलित कर लेने से उसके __ हम प्रायः अनेकानेक प्राचीन ग्रन्थों में ऋषि-मुनि शब्दों का
भेदोपभेदों के कारण पर्यावरण प्रदूषण के अनेक प्रकार हो प्रयोग एक साथ प्राप्त करते हैं। 'ऋषि' शब्द वैदिक परम्परा के
सकते हैं। तत्त्वज्ञानियों के लिए प्रयुक्त और 'मुनि' शब्द जैन परम्परा में पर्यावरण प्रदूषण का नाम लेने पर स्थूल रूप से हमारा ध्यान आदरणीय तत्त्वदर्शियों के लिए व्यवहृत होता है। इन दोनों शब्दों जल, वायु, पृथ्वी, अन्तरिक्ष आदि की ओर जाता है। प्राचीनका युग्म के रूप में प्रयोग देखकर यह मानना अनुचित न होगा कि काल में जब भारतीय संस्कृति अपने तेजस्वी रूप में प्रतिष्ठित थी, भारतीय संस्कृति के बीज वपन से लेकर अधुनातन विकास पर्यन्त उसके फलस्वरूप जन-जन के विचारों में शुद्धता, समता, दोनों परम्पराओं का समान रूप से योगदान रहा है। दोनों की परोपकारिता आदि गुण विद्यमान थे, उस समय पर्यावरण प्रदूषण अपनी-अपनी मान्यताएँ इतर परम्परा में इस प्रकार प्रतिबिम्बित हुई की समस्या नहीं रही है। उस काल में अग्नि, जल, वायु पृथ्वी हैं कि उन्हें बहुत बार अलग से देख पाना सम्भव नहीं है। अतएव आदि को देवता के रूप में अथवा माता के रूप में स्वीकार किया मैं वैदिक परम्परा में प्राप्त कुछ संकेतों को भी जैन दृष्टि से पृथक जाता था उनको परिशुद्ध बनाये रखने के लिए समाज अत्यन्त नहीं सोच सकती।
गतिशील था। आलेख के पस्तत विषय पर्यावरण की सीमा बहुत व्यापक है। वर्तमान समय में जब मानव विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति करता इसमें जल, वाय, पृथ्वी, आकाश (ध्वनि), ऊर्जा और मानव चेतना हुआ प्रकृति और उसके अंग-पृथ्वी आदि के प्रति मातत्व की
आदि सभी को संगृहीत किया जाता है। भारतीय संस्कृति के प्राचीन । भावना को भुला बैठा है और उस पर विजय प्राप्त करने के लिए इतिहास ग्रन्थ महाभारत में पर्यावरण के अन्तर्गत पृथ्वी, जल,
लालायित हो उठा है, तो अनजाने ही उसके हाथों से प्रकृति के DDA अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार इन आठ की। सभी अंगों का प्रदूषण प्रारम्भ हो गया है। फलतः आज प्रकृति का 1299 गणना की गयी है।
प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि विचारशील वैज्ञानिक प्रदूषण के
प्रसंग में चिन्तित हो उठे हैं और वे अनुभव करने लगे हैं कि वैदिक परम्परा में धु. अन्तरिक्ष, पृथिवी, जल, औषधि,
प्रदूषण के फलस्वरूप पृथ्वी का तापमान बढ़ने लगा है। यदि यही वनस्पति और इनके बाद विश्वदेव नाम से पर्यावरण के अन्य अंगों
क्रम रहा तो सम्भावना है कि अगले २७ वर्षों के अन्दर पृथ्वी के की ओर संकत किया गया है। एवं इन्हें निर्दोष तथा शान्तिदायी
तापमान में न्यूनतम दो डिग्री सेन्टीग्रेड की वृद्धि हो जायेगी, (उपयोगी) बनाये रखने की कामना की गयी है। प्रकृति के उन
परिणामतः हिम पिघलकर जल के रूप में समुद्रों में इतना पहुँचेगा तत्त्वों में विजातीय हानिकारक तत्त्वों के मिश्रण से प्रायः प्रदूषण
कि मालद्वीप जैसे द्वीप समुद्र की गोद में समा जायेंगे। भारत, उत्पन्न होता है, जिसे वर्तमान में पर्यावरण प्रदूषण के नाम से जाना
बांगला देश और मिश्र जैसे समुद्रतटीय देशों का अस्तित्व भी जाता है।
संदिग्ध हो जायेगा। विगत् कुछ वर्षों में भी इस उष्णतावृद्धि के आधुनिक विचारकों ने पर्यावरण प्रदूषण के सामान्यतः आठ फलस्वरूप जो समुद्री तूफान बार-बार आये हैं, उनमें १९६३ में विभाग किये हैं-१. जल प्रदूषण, २. वायु प्रदूषण, ३. मृदा प्रदूषण, २२००, १९६५ में ५७००, १९७० में ५०,000 और १९८५ ४. ध्वनि प्रदूषण, ५. रेडियोधर्मी, ६. जैव प्रदूषण, ७. रासायनिक में १०,000 व्यक्ति अपना जीवन खो बैठे हैं। २९-३० नवम्बर प्रदूषण और ८. वैद्युत प्रदूषण। पर्यावरण प्रदूषण के इस विभाजन १९८८ का तूफान भी प्रलयकारी रहा है। इनके अतिरिक्त अन्य में प्रथम तीन तो वे आधार हैं, जिनमें प्रदूषण होता है तथा शेष छोटे-बड़े तूफानों में भी जो धन-जन की हानि हुई है, वह अत्यन्त पांच प्रदूषण के कारण हैं। पर्यावरण प्रदूषण के इन आठ विभागों भयावह तथा चौंकाने वाली है।
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