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से भी पतला माना है और कहीं स्टील से भी अधिक की आयु मजबूत । ऐसे परस्पर विरोधी गुण वैज्ञानिकों का ईथर में पाये जाते हैं और चूंकि प्रयोगों के द्वारा वे उसके अस्तित्व को सिद्ध नहीं कर सके हैं इसलिये आवश्यकतानुसार वे कभी उसके अस्तित्व को स्वीकार कर लेते हैं। और कभी इन्कार वास्तविकता यही है जो जैनागम में बतलाई गई है कि ईथर एक अरूपी द्रव्य है जो ब्रह्माण्ड के प्रत्येक कण में समाया हुआ है और जिसमें से होकर जीव और पुद्गल का गमन होता है । यह ईथर द्रव्य प्रेरणात्मक नहीं है, यानी किसी जीव या पुद्गल को चलने की प्रेरणा नहीं करता वरन् स्वयं चलनेवाले जीव या पुद्गल की गति में सहायक हो जाता है, जैसे ऐंजिन के चलने में रेल की पटरी (लाइनें ) सहायक हैं । इस द्रव्य के बिना किसी द्रव्य की गति सम्भव नहीं है।
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अब हम पाठकों को विश्व की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कुछ बातें बताते हैं हिन्दुओं के संकल्प मन्त्र के अनुसार इस पृथ्वी का जन्म आज से 1 अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार 76 वर्ष पूर्व हुआ संकल्प मंत्र इस प्रकार है— ओम् तत्सत् ब्रह्मणे द्विताये परार्द्ध, श्री श्वेत वाराह कल्पे वैवस्वत् मन्वन्तरे अष्टाविशतितमे युगे, कलियुगे, कलि प्रथम चरणे इत्यादि ।'
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(संकल्प मन्त्र में से सृष्टि सम्वत् की यह संख्या किस प्रकार निकलती है, लेख का कलेवर बढ़ जाने के भय से हम यहाँ बतलाना उचित नहीं समझते । )
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4 अरब 60 करोड़ वर्ष निश्चित होती है । सृष्टि की आयु से अभिप्राय यह है कि आज जिस रूप में हम सृष्टि को देख रहे हैं वह रूप लगभग साढ़े चार अरब वर्ष पुराना है।
कुछ समय पूर्व साइन्स की भी यही धारणा थी कि पृथ्वी का जन्म लगभग 2 अरब वर्ष पूर्व हुआ, किन्तु अब यह मान्यता बदल गई है। एक मान्यता ऐसी है कि पृथ्वी के प्रशान्त महासागर से चन्द्रमा का जन्म हुआ । अमृत मंथन की कथा में इसी बात का संकेत मिलता है। जब चन्द्रमा पृथ्वी से पृथक् हुआ तो उसकी गति भिन्न थी और यह गति अब घट गई है और जिस रेट से यह घट रही हैं उसका हिसाब लगाने से सृष्टि
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सृष्टि की उत्पत्ति किस प्रकार हुई ? विज्ञान के क्षेत्र में इस सम्बन्ध में मुख्य दो सिद्धान्त हैं – ( 1 ) महान आकस्मिक विस्फोट का सिद्धान्त, और (2) सतत् उत्पत्ति का सिद्धान्त ।
महान आकस्मिक विस्फोट का सिद्धान्त जिसे सन् 1922 में रूसी वैज्ञानिक डा० फेडमैन ने जन्म दिया,
हिन्दुओं की कल्पना से मेल खाता है । जिसके अनुसार ब्रह्माण्ड का जन्म हिरण्य गर्भ ( सोने का अण्डा) से हुआ। सोना धातुओं में सब से भारी है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जिस पदार्थ से विश्व की रचना हुई है वह बहुत भारी था। उसका घनत्व सब से अधिक था। बढ़ते-बढ़ते यही अण्डा विश्वरूप हो
गया ।
अमेरिका के प्रोफेसर चन्द्रशेखर ने गणित के आधार पर बतलाया है कि विश्व रचना के प्रारम्भ में पदार्थ का घनत्व लगभग 160 टन प्रति घन इंच था। जबकि 1 घन इंच सोने का तोल केवल 5 छटांक होता है । दूसरे शब्दों में वह पदार्थ अत्यन्त भारी था ।
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आजकल के वैज्ञानिक इस प्रश्न पर दो समुदायों में बँटे हुये हैं एक वह जिनका मत है कि यह ब्रह्माण्ड अनादिकाल से अपरिवर्तित रूप में चला आ रहा है और दूसरा वह जो यह विश्वास करते हैं कि आज से अनुमानतः 10 या 20 अरब वर्ष पूर्व एक महान आकस्मिक विस्फोट के द्वारा इस विश्व का जन्म हुआ । हाइड्रोजन गैस का एक बहुत बड़ा घधकता हुआ बबूला अकस्मात फट गया और उसका सारा पदार्थ चारों दिशाओं में दूर-दूर तक छिटक पड़ा और आज भी वह पदार्थ हम से दूर जाता हुआ दिखाई दे रहा है ।
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