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रुक्षत्व गुणों के कारण एटम एक सूत्र में बँधा रहता है। जिसे हम गलन क्रिया कहते हैं यूरेनियम और पूज्यपाद स्वामी ने 'सर्वार्थसिद्धि' टीका में एक स्थान पर रेडियम नाम के पदार्थों में स्वतः ही स्वाभाविक रूप से लिखा है 'स्निग्धरुक्षगुणनिमित्तो विद्युत्' अर्थात् बादलों होती रहती है और नये पदार्थों का जन्म होता है । में स्निग्ध और रुक्ष गुणों के कारण विद्युत की उत्पत्ति यूरेनियम की एक डली में अल्फा, बीटा, गामा किरणे होती है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि स्निग्ध का अर्थ अबाध गति से निरन्तर निकलती रहती हैं और लगभग चिकना और रुक्ष का अर्थ खुरदरा नहीं है। ये दोनों 2 अरब वर्षों में यूरेनियम की आधी डली रेडियम में शब्द वास्तव में विशेष टेक्निकल अर्थों में प्रयोग किये परिवर्तित हो जाती है। यही गलन की प्रतिक्रिया गये हैं। जिस तरह एक अनपढ़ मोटर ड्रायवर बैटरी के रेडियम में भी रात-दिन हुआ करती है । रेडियम की . एक तार को ठंडा और दूसरे तार को गरम कहता है एक डली का आधा भाग लगभग 6 हजार वर्षों में सीसे (यद्यपि उनमें से कोई तार न ठंडा होता है और न (लैंड) में परिवर्तित हो जाता है। गरम) और जिन्हें विज्ञान की भाषा में पोजिटिव व निगेटिव कहते हैं, ठीक उसी तरह जैन धर्म में स्निग्ध वैज्ञानिकों ने इसी प्रक्रिया को कृत्रिम रूप से प्रयोग
और रुक्ष शब्दों का प्रयोग किया गया है। डा० बी. शालाओं में उत्पन्न किया है। इस क्रिया में अतिशीघ्रएन. सील ने अपनी कैम्ब्रिज से प्रकाशित पुस्तक 'पोजि- गामी न्यूट्रोन कणों को गोली के रूप में प्रयोग किया टिव साइन्सिज ऑफ एनशियन्ट हिन्द्रज' में स्पष्ट लिखा जाता है । इन गोलियों से जब किसी परमाणु पर प्रहार है कि जैनाचार्यों को यह बात मालूम थी कि भिन्न-भिन्न किया जाता है तब उस परमाणु का हृदय विदीर्ण हो वस्तुओं को आपस में रगड़ने से णेजिटिव और नेगेटिव जाता है। परमाणु का रूपान्तर हो जाता है। इस बिजली उत्पन्न की जा सकती है। इन सब बातों के प्रकार से वैज्ञानिकों ने नाइड्रोजन को ऑक्सीजन में, समक्ष, इसमें कोई सन्देह नहीं रह जाता कि स्निग्ध का सोडियम को मैग्नेशियम में, मैग्नेशियम को एल्यूमीनियम अर्थ पोजिटिव और रुक्ष का अर्थ निगेटिव विद्युत् है।
में, एल्यूमीनियम को सिलीकन में, सिलीकन को फास-, एटम की रचना का जो वैज्ञानिक स्वरूप हमने ऊपर
फोरस में, बैरीलियम को कार्बन में बदल कर दिखा दिया खींचा है उससे स्पष्ट है कि संसार के सभी परमाणु,
है । इससे पुद्गल शब्द की व्याख्या पूर्ण रूप से सत्य
सिद्ध होती है। सबसे आश्चर्यजनक घटना पारे को सोने चाहे वह किसी भी पदार्थ के हों, प्रोटोन (स्निग्ध कण)
में परिवर्तित करने की है । पारे का अणु भार 200 है और न्यूट्रोन (उदासीन कण) भिन्न-भिन्न संख्याओं में
और प्रोटोन का भार 1 है। जब पारे के परमाणु पर इनके मिलने से बने हैं । इस बात से 'स्निग्धरुक्षात्वाद्
प्रोटोन का आधात होता है तो पूरण क्रिया के द्वारा बंधः' सूत्र की प्रामाणिकता सम्पूर्ण रूप से सिद्ध हो 201 भार का परमाणु बना जाता है । अब इस परमाणु जाती है । जब स्निग्ध अथवा रुक्ष कणों की संख्या पर न्यूटोन की गोली द्वारा प्रहार किया जाता है तो बढ़ानी पड़ती है तो उसे 'पूरण' क्रिया कहते हैं और उसमें से गलित होकर एक अल्फा कण बाहर निकल जब घटानी पड़ती है तब उसे 'गलन' क्रिया कहते हैं। आता है। अल्फा कण का भार 4 है । 201 में से 4 अतः इसमें कोई सन्देह नहीं कि आजकल के वैज्ञानिक कम हये तो 197 भार का परमाणु रह जाता है । सोने विश्लेषण के ठीक अनुकूल जैनाचार्यों ने इस विलक्षण का अणु भार 197 है । दूसरे शब्दों में पूरण और गलन 'पुद्गल' शब्द का प्रयोग अपने ग्रन्थों में बहुत वर्षों पहले की प्रतिक्रियाओं के द्वारा पारे का परमाणु सोना बन किया था।
गया । (सोना बनाने की यह विधि बहुत महंगी पड़ती
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