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________________ श्री आनन्द अन्थ धर्म और दर्शन 2 のの pos wers aংRazavar आनंदी अभिनंदन ३६२ की शक्ति है उसी से वह प्राप्त हो सकता है, कारण 'असत् की उत्पत्ति नहीं होती और सत् का नाश कभी नहीं होता।' यह सिद्धांत जैनागम, विज्ञान और गीता में प्रतिपादित है । अत: इसीसे यह सिद्ध होता है कि अमोनिया के अंश के जो गुण हैं वही अमोनिया में होना चाहिए । अणु, परमाणु या अन्य सूक्ष्म स्कन्ध पुद्गल में जो चार गुण रहते हैं वह प्रकट या अप्रकट रूप में रहते हैं । जैनागम में पुद्गल द्रव्य को सत् माना है । जो द्रव्य सत् है वह उत्पाद, व्यय, धोव्य गुण युक्त होता है । २४ जो अपने 'सत्' स्वभाव से च्युत नहीं होता, गुण पर्याय से युक्त है, वही द्रव्य २५ है । व्यय रहित उत्पाद नहीं और उत्पाद रहित व्यय नहीं होता, उत्पाद और व्यय होते रहते हुए भी धौव्य द्रव्य का गुण कभी नाश नहीं होता । उत्पाद और व्यय दोनों द्रव्य के पर्याय हैं । धौव्य ध्रुव है न इसका उत्पाद है और न व्यय । यही बात उदाहरण से समझाई जाती हैजैसे सुवर्ण से कटक बनाया फिर उसी कटक से कुंडल बनाया तो सुवर्ण का नाश या उत्पाद नहीं हुआ, जो सुवर्ण कटक में विद्यमान था वही कुंडल में भी विद्यमान है । अतः सुवर्ण सुवर्ण के रूप रहा । परन्तु उत्पाद और व्ययात्मक पर्याय बदलती रही सुवर्ण ध्रौव्य रहा । अतः जिसका अभाव हो उसकी १६ उत्पत्ति कैसी ? इसी धीव्य के बारे में भी विज्ञान का मत उल्लेखनीय है --- Nothing can made out of nothing and it is impossible to annihilate any thing. All that happens in the world depends on a change of forms (af) and upon the mixture or seperation of to the bodies' - अर्थात् सारांश रूप में इस प्रकार कह सकते हैं कि किसी भी वस्तु का सर्वथा नाश नहीं होता। सिर्फ परिवर्तन होता रहता है । इसी मत को एम्पीडोकल्स २७ ने अन्य ढंग से प्रस्तुत किया है "There is only change of modification of the matter.' इसी संदर्भ में मोमबत्ती का उदाहरण दिया गया है । विज्ञान युग ने अणु बम या एटम बम की अनोखी देन दी। इसी एटम बम का निर्माण पुद्गल की गलन और पूरण शक्ति के आधार पर हुआ है । व फिशन या इन्टिग्रेशन व डिस्इन्टिग्रेशन (Fusion and disintegration) कहते हैं । इसी एटम बम में एटम के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं और तब शक्ति उत्पन्न होती है । और हाइड्रोजन बम में एटम परस्पर मिलते हैं, तब उसमें शक्ति का प्रादुर्भाव होता है । परमाणुवाद परमाणुओं की कल्पना आज से २ || हजार वर्ष पूर्व डिमोक्रिटस् आदि यूनानियों ने की थी और भारत में पदार्थों के अन्दर छिपे हुए कणों का ( परमाणुओं का ) संशोधन करने वाला कणाद् नामक ऋषि हो गया है। पाश्चात्य विद्वानों को जैन दर्शन के साहित्य के अध्ययन का सु-अवसर मिलता तो कणाद् और डिमोक्रिटस् आदि कतिपय विचारकों के 'परमाणुवाद का सिद्धान्त' का उद्गम इनके पहले का माना जाता । जैन दर्शन में भी इस दिशा में पर्याप्त प्रयास हुआ है - आगम में कहा है कि सूक्ष्म या स्थूल सब पुद्गल परमाणुओं से निर्मित हैं । Jain Education International अतः विज्ञान की भाषा में इसे पयुजन Fisoon or Integration and २४ भगवती ११४, २५ प्रवचनसार २।१-११. २६ पंचास्तिकाय २।११-१५ २७ General and Inorganic chemistry - by P. J. Durrant. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211305
Book TitlePanchastikay me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukumchand P Sangave
PublisherZ_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf
Publication Year1975
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Six Substances
File Size2 MB
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