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- यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्य - जैन आगम एवं साहित्य ऋविभाषितनियुक्ति - चौरासी आगमों में ऋषिभाषित का भी १२. आवश्यकनियुक्ति, गाथा ९४-१०३ नाम है। प्रत्येक बद्ध द्वारा भाषित होने से यह ऋषिभाषित के १३. वही. गाथा ४५९ नाम से विश्रुत है। इस पर भी भद्रबाहु ने नियुक्ति लिखी थीं पर १४. वही, गाथा ५९४ वर्तमान में अनुपलब्ध हैं।
१५. वही, गाथा ८८१ सूर्य ज्ञप्तिनियुक्ति - यह भी वर्तमान में उपलब्ध नहीं है, परन्तु १६. वही, गाथा १०२३-१०३४ आचार्य मलयगिरि की वृत्ति में इसका नाम-निर्देश हुआ है। १७. वही, गाथा १०३५ इसमें सूर्य की गति आदि ज्योतिषशास्त्र · सम्बन्धी तथ्यों का १८. वही, गाथा १०५९ सुन्दर निरूपण हुआ है।
१९. वही, गाथा १०६४ इनके अतिरिक्त पिण्डनियुक्ति, ओघनियुक्ति एवं २०. वही, गाथा १०६६-६८ पंचकल्पनियुक्ति स्वतन्त्र ग्रंथ न होकर क्रमशः दशवैकालिक, २१. वही, गाथा १०८७-८९ आवश्यक और बृहत्कल्पनियुक्ति की ही सम्पूरक हैं। २२. वही, गाथा ११०-११
इस प्रकार जैन परम्परा के महत्त्वपूर्ण एवं विशिष्ट पारिभाषिक २३. वही, गाथा ११४५-४७ शब्दों की स्पष्ट व्याख्या जो नियुक्तिसाहित्य में हुई है वह अपूर्व २४. वही, गाथा ११६७-१२०० है। इन्हीं व्याख्याओं के आधार पर बाद में भाष्यकार, चूर्णिकार २५. वही, गाथा १०२४ एवं वृत्तिकारों ने अपने अभीष्ट ग्रन्थों का सृजन किया है। नियुक्तियों २६. वही, गाथा १२२३ की रचना करके भद्रबाहु ने जैनसाहित्य की जो विशिष्ट सेवा की २७. स्वस्थानात्यत्परस्थानं प्रमादस्य वशादगहः । तत्रैव क्रमणं है वह जैन आगमिक-क्षेत्र में सवर्था अविस्मरणीय है।
भूयः प्रतिक्रमणमुच्यते। सन्दर्भ-ग्रन्थ
- आवश्यकनियुक्ति, गाथा १२३६
२८. वही, गाथा १२३८ १. अनुयोगद्वार, पृ. १८ और आगे
२९. वही, गाथा १२४४-४६ २. आवश्यकनियुक्ति, गाथा ८८ ३. वही, गाथा ८३
३०. वही, गाथा १२६८ निश्चयेन अर्थप्रतिपादिका युक्तिनियुक्ति : आचारांगनियुक्ति
३१. वही, गाथा १२६९-१२७३ १/२/१
३२. वही, गाथा १४४७ उत्तराध्ययन की भूमिका, पृ. ५०-५१
३३. वही, गाथा १४५३ D. Ghatge, Indian Historical Quarterly, Vol. 12, P. 270
३४. वही, गाथा १४५४-५५ वंदामि भद्दबाहुं पाईणं चरिमसगलसुयनाणिं.।
३५. वही, गाथा १४५८ सुत्तस्स कारगमिसि दयासु कप्पे य ववहारे ।।
३६. वही, गाथा १५३६-३८ - दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति ,१
३७. वही, गाथा १५३९-४० आवश्यकनियुक्ति , गाथा ७९-८६
३८. वही, गाथा १५४१-४२ गणधरवाद प्रस्तावना, पृ. १५-१६ .
३९. वही, गाथा १५४५ आवश्यकनियुक्ति, गाथा १७-१९
४०. वही, गाथा १५५० सामाइयमाइयाई एक्कारस्स अहिज्जइ। - अन्तः कृतदशांग ४१. (क) दशवैकालिकनियुक्ति, हरिभद्रीयविवरणसहित : प्रथमवर्ग।
प्रकाशक-देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, बम्बई, १९१८
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