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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म सन्दर्भ अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग २, पृष्ठ १०५० जिस प्रकार एक माता का वात्सल्य अपने पुत्र पर होने से पुत्र बहुत अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग ४, पृष्ठ १८३५ वर्षों के पश्चात् जब माता के पास आकर उसे नमस्कार करता है, तब 'अर्ह' धातु से वर्तमानकालीन कर्ता अर्थ में शतृ प्रत्यय लगाने से स्नेह के वश माता के स्तनों से दूध झरता है अथवा स्तनों में दूध संस्कृत-व्याकरणानुसार 'अर्हत्' शब्द इस प्रकार बनता है : अर्ह + आता है। यदि उसी माता के सामने अन्य के पुत्र को लाया जाता तो शत् । लशक्वतद्धिते' १।३।८ सूत्र के शतृ के श की इत् संज्ञा और उसके स्तनों में कदापि दूध न तो आयेगा ही और न झरेगा ही। उसी 'तस्यलोपः' १३९ सूत्र से शकार का लोप हुआ। तब अर्ह + अतृ प्रकार जिनकी आत्मा में सारे जगत् के जीवों के लिए इस प्रकार वात्सल्य रहा । यहाँ 'उपदेशेऽजनुनासिक इत् ११३।२ सूत्र से ऋकार की इत् का सागर लहराता हो, मानो समुद्र में जल। तो भला सोचिए क्यों न, संज्ञा और 'तस्यलोपः' सूत्र से ऋकार का लोप होने पर 'अर्ह + उनके शरीर का रक्त और मांस दुग्धवत् श्वेत होगा? अवश्य होगा। अत् रहा। अज्झीनं परेण संयोज्यम्' न्याय से सबका सम्मेलन करने इसमें संदेह को लेशमात्र भी स्थान नहीं है। पर अर्हत्' यह रूप सिद्ध होता है। अभिधानराजेन्द्रकोश, तृतीय, भाग, पृ. ३४१ 'अर्हत्' का प्राकृतरूप अरिहंताणं' इस प्रकार बनता है : ८. अभिधानराजेन्द्रकोश, प्रथम भाग, पृ.७६१ अर्हत् शब्द को 'उच्चार्हति' ८।२।१११ सूत्र से हकार से पूर्व 'इत्' ९. अभिधानराजेन्द्रकोश, चौथा भाग, पृ. १४५९। हुआ तब अइहत्' बना, रेफ में इकार को मिलाने पर अरिहत् बना। १०. सिध् धातु से निष्ठा ३।२।१०२। सूत्र से क्त प्रत्यय आने पर उगिदचांसर्वनामस्थाने धातोः ७।१७० (पाणिनि के) सूत्र से नुम् सिध् + क्त बना। लशक्वतद्धिते ।१।६।८। सूत्र से ककार की इत् संज्ञा तथा होकर अनुबंध का लोप होने पर 'अरिहन्त रहा। 'ङ बणनो व्यञ्जने तस्य लोपः सूत्र से ककार का लोप होने पर सिध+ त रहा। झषस्तथो?र्धः 1८।१।२५। सूत्र से नकार का अनुस्वार और प्राकृत में स्वररहित ८।२।४०। सूत्र से तकार का धकार तथा झलां जश् झशि ८।४।५३ सूत्र से व्यञ्जन नहीं रहता। अत: अन्त्य हल तकार में अकार आया, तब शक्तार्थवषड् नमः स्वस्तिस्वाहास्वाधाभिः ।२।२।२५। सूत्र से नम: के योग बना अरिहंत। में चतुर्थी विभक्ति होती है। अत: चतुर्थी का भ्यस् प्रत्यय आया और चतुर्थ्याः 'शक्तार्तवषड्नमः स्वस्तिस्वाहास्वधामिः' २।२।२५ सूत्र से नमः के षष्ठी ८।३।१३१ से भ्यस् के स्थान पर आम् आया सिद्ध + आम योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। अतः यहाँ भी नमः के योग में जस्शस्ङसित्तोदो द्वामि दीर्घः ८।३।१२ सूत्र से अजन्तांग को दीर्घ तथा टा चतुर्थी बहुवचन का प्रत्यय ध्यस आया, तब अरिहंत+भ्यस बना। आमोर्णः सूत्र से अकार का णकार तथा मोऽनुस्वारः ।८।१।२३। से मकार 'चतुर्थ्याः षष्ठीः' ८।३।१३१ सूत्र से षष्ठी बहुवचन का प्रत्यय आम् __ का अनुस्वार होने पर सिद्धाणं बनता है। आया। तब अरिहंत + आम् बना। 'जस्शस्ङसित्तोदो द्वामि दीर्घः ११. १. आयरियाणं (आचार्येभ्यः) ८।३।१२ सूत्र से अजन्ताङ्ग को दीर्घ हुआ। 'टा आमोणः' ८।३।६ चर् धातु से आङ् उपसर्ग लगने पर आङ् + चर् बना। सूत्र से आम् के आ का ण तथा 'मोऽनुस्वारः ।८।१।२३। सूत्र से लशक्वताद्विते सूत्र से ङ्की इत् संज्ञा और 'तस्यलोपः' सत्रसे ङ्का लोप मकार का अनुस्वार होने पर अरिहंताणं यह रूप सिद्ध हुआ। आ + चर् बना। 'ऋहलोर्ण्यत्' ३।१।२२४ सूत्र से ण्यत् प्रत्यय हुआ आचर् ४-५. तेषामेव स्वस्वभाषापरिणाममनोहरम् । + ण्यत् बना। 'चुटू' १३७ से ण् की इत् संज्ञा तथा त् की "हलन्त्यतम्" अप्येकरूपं वचनं, यत्ते धर्मावबोधकृत् ।।३।। ७।२।११६ सूत्र से वृद्धि होने पर तथा सबका सम्मेलन करने पर साऽग्रेपि योजनशते, पूर्वोत्पन्ना गदाम्बुदाः। 'जलतुम्बिकान्यायेन रेफस्योर्ध्वगमनम्' न्याय से रेफ का ऊर्ध्वगमन होने पर सिद्ध रूप आचार्य बनता है। यदञ्चसा विलीयन्ते, त्वद्विहारानिलोर्मिभिः ।।४।। "स्याद् भव्यचैत्यचौर्यसमेषु यात्" ८।२।१०७ सूत्र से यकार से पूर्व (वीतरागस्तोत्र, तृतीयप्रकाश) इत् का आगम तथा अनुबन्ध का लोप होने पर इको रेफ् में मिलाने से कम समझ वाले लोग यह पूछ बैठते हैं कि - "भगवान् के मांस और आचारिय बना। “क-ग-च-ज-त-द पयवां प्रायो लुक्" ८।१।१७७ सूत्र शे रक्त किस प्रकार से सफेद हो सकते हैं? यह तो भगवान् की महत्ता चकारका लोप "आचार्येचोच्च" ८1१७३ सत्र से आ के लोप होने पर शेष का वैशिष्ट्य दिखलाने के लिए उक्ति मात्र है। इसमें कोई तथ्यांश रहे आ के स्थान पर अत्। अवर्णोयः श्रति ८।१।१८० सूत्र से अ के स्थान पर दिखाई ही नहीं देता।" इसका समाधान है कि - परमकरुणामूर्ति यकार होने पर आयरिय बनता है। फिर नमः के योग में 'शक्तार्थबषड् नमः भगवान के रक्त और मांस का सफेद होना कोई आश्चर्य एवं उनका स्वस्ति स्वाता स्वधामि २५ सब मे चतर्थी का ध्यस आया और वशिष्ट्य सिद्ध करने के लिए कही गई उक्त मात्र नहीं है। जनशासन चतुर्थ्याः षष्ठीः सूत्र से भ्यस् के स्थान पर आम् आया आयरिय + आम् हुआ। में जो वस्तु जैसी है, वैसी ही कही गई है। अस्तु हम देखते हैं कि Parowardwaroordarbrowd Gibrariwordroidalord--१८Poordinatororitoriwondironidminironird-orderbirdwood ६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211234
Book TitleNamaskar Mahamantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendravijay
PublisherZ_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf
Publication Year1999
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationArticle & Panch Parmesthi
File Size3 MB
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