________________
જ્ઞાનાંજલિ
आचार्य श्री हरिभद्रसूरिने अपनी शिष्यहितावृत्तिमें इस चूर्णिका खास तौर से निर्देश नहीं किया है। सिर्फ़ रइवक्का सं० रतिवाक्या नामक दशवैकालिकसूत्रकी प्रथम चूलिकाकी व्याख्या में [पत्र २७३ - २] " अन्ये तु व्याचक्षते " ऐसा निर्देश करके अगस्त्य सिंहीया चूर्णिका मतान्तर दिया है । इसके सिवा कहीं पर भी इस चूर्णिके नामका उल्लेख नहीं किया है ।
८०]
इस अगस्त्य सिंह या चूर्णिमें तत्कालवर्त्ती संख्याबन्ध वाचनान्तर - पाठभेद, अर्थभेद एवं सूत्रपाठोकी कमी - बेशीके काफ़ी निर्देश हैं, जो अतिमहत्त्वके हैं ।
यहाँ पर ध्यान देने जैसी एक बात यह है कि दोनों चूर्णिकारोंने अपनी चूर्णीमें दशवैकालिकसूत्रकी एक प्राचीन चूर्णी या वृत्तिका समान रूपसे उल्लेख रइवकाचूलिकाको चूर्णीमें किया हैं, जो इस प्रकार है
66
एत्थ इमातो वृत्तिगतातो पदुद्देसमेत्तगाधाओ । नहा
दुक्खं च दुस्समाए जीविउं जे १ लहुसगा पुणो कामा २ । सातिबहुला मणुस्सा ३ अचिरद्वाणं चिमं दुक्खं ४ ॥ १॥ ओमजणम्मिय खिसा ५ बंतं च पुणो निसेवियं भवति ६ । अहरोवसंपया विय ७ दुलभो धम्मो गिहे गिहिणो ८ ॥ २ ॥ निवयंति परिकिलेसा ९ बंधो १९ सावज्जजोग गिहिवासो १३ । एते तिणि वि दोसा न होति अणगारवासम्मि १०-१२-१४॥ ३॥ साधारणाय भोगा १५ पत्तेयं पुण्ण - पावफलमेव १६ । जीयमवि माणवाणं कुसग्गजलचंचलमणिचं १७ ॥ ४ ॥ थिय अवेदयित्ता मोक्खो कम्मस्स निष्छओ एसो १८ । पदमद्वारसमेतं वीरवयणसासणे भणितं ॥ ५ ॥
"
अगस्त्य सिंहिया चूर्णी
दूसरी मुद्रित चूर्णीमें [ पत्र ३५८ ] “ एत्थ इमाओ वृत्तिगाधाओ । उक्तं च " ऐसा लिखकर ऊपर दी हुई गाथायें उद्धृत कर दी हैं ।
इन उल्लेखोंसे यह निर्विवाद है कि - दशवैकालिकसूत्र के ऊपर इन दो चूर्णियोंसे पूर्ववर्ती एक प्राचीन चूर्णी भी थी, जिसका दोनों चूर्णिकारोंने वृत्ति नामसे उल्लेख किया है । चूर्णीको 'वृत्ति' कहनेका प्रघात प्राचीन है । इसमें यह भी कहा जा सकता है कि- आगमों के ऊपर पद्य और गद्य में व्याख्याप्रन्थ लिखने की प्रणालि अधिक पुराणी है । और इससे हिमवंतस्थविरावली में उल्लिखित निन • उल्लेख सत्य के समीप पहुँचता है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org