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ध्यान का वैज्ञानि कविवेचन १३७
(र) ध्यानावस्था में गैल्वेनिक त्वचावरोध २५ से ५० प्रतिशत तक बढ़ जाता है। (ल) ध्यान के समय ब्लड लेक्टेट के निर्माण की दर कम हो जाती है। (क) ध्यानाभ्यास धमनियों से रक्तप्रवाह की दर बढ़ा देता है। इससे निरुपयोगी पदार्थों का निष्कासन अधिक
होने लगता है।
(v) रोगोपचार : ध्यान से शिथिलीकरण होता है । इससे दुर्बल एवं रुग्ण ऊतकों को शक्ति एवं सक्रियता प्राप्त होती है। इससे रक्तचाप सामान्य बना रहता है । ध्यान रक्तचाप की उत्तम औषधि है ।
ध्यान स्वचालित तंत्रिका तंत्र की सक्रियता को स्थिरता देता है। इससे तनावों के प्रति प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाती है । इससे तनाव-जन्य ऊर्जा की क्षतिपूर्ति की दर कई गुनी बढ़ जाती है।
योग और ध्यान के अभ्यास से डा० श्रीनिवास ने हृदय रोग को शान्त करने में काफी सफलता पायी है । इससे गठिया रोग में भी लाभ होता है । ध्यान से दमा, मिर्गी/उन्माद में भी लाभ पाया गया है।
ध्यानासन की क्रियाओं से जापानवासियों की लम्बाई में वृद्धि देखी गई है । डा० पासे ने पूना के स्कूली बच्चों पर ध्यान का प्रयोग कर उनकी लम्बाई में २.६ सेमी० प्रतिमाह की वृद्धि प्राप्त की।
ध्यानिक क्रियाओं से अस्थि रोग, अतिअम्लता, अनेक चर्म रोग, गठिया रोग, सिर दर्द, सिर में चक्कर आना, मितली आना, लकवा ( अतिनिम्न रक्तचाप), स्पॅडिलाइटिस, एलर्जी (प्राण शक्ति की कमी), अतिनिद्रा (निम्न रक्तचाप). कब्ज आदि अनेक सामान्य व जटिल शारीरिक ब्याधियाँ दूर की गई हैं। अब योग या ध्यान चिकित्सा चिकित्सा विज्ञान की एक नई शाखा के रूप में विकसित हो रही है। मस्तिष्क तन्त्र पर ध्यान के प्रभाव
ध्यान के समग्र मानसिक प्रभावों में निम्न प्रमुख हैं : (१) दैनिक जीवन में तनाव-प्रतीकार क्षमता में आशातीत वृद्धि । (२) दैनिक अनुभवों के प्रति अधिक सजगता एवं चेतनता । (३) शरीर और मस्तिष्क में परस्पर समुचित समन्वय एवं सामन्जस्य । (४) क्रियावाही तन्त्र को संवेदना और सजगता में वृद्धि । (५) बौद्धिक संवेदनशीलता, समझदारी तथा स्मरण शक्ति में वृद्धि । (६) बुद्धिपूर्वक निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि । (७) मानसिक शक्ति में वृद्धि । (८) प्राणियों में सजनात्मक शक्ति की क्षमता का विकास । (९) लक्ष्य, उद्देश्य या कार्य के प्रति रुचि में तीक्ष्णतापूर्ण वृद्धि जिससे आनन्द और सन्तोष की अनुभूति होती है । (१०) शरीर की आभा और प्रभा में वृद्धि ।
पीयूषिका ग्रन्थि का जागरण और सक्रियण । (१२) मस्तिष्क के दायें एवं बायें भाग (चेतन, सक्रिय) भाग में अधिक सन्तुलन । (१३) मस्तिष्क की क्षमता की उपयोगिता का प्रतिशत १०% से अधिक होने लगता है । (१४) केंसर मुख्यतः निराशावादी दृष्टिकोण की उपज है । ध्यान के अभ्यास से इसके उपचार में काफी सफलता देखो गई है। (१५) मानसिक उद्वेग मधुमेह के भी मुख्य कारण हैं । इस विषय में भी ध्यान बहुत सहायक सिद्ध हुआ है । इस विषय पर
प्रमुख अन्वेषण भारत में ही हो रहे हैं। १८
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