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धर्म-साधना में चेतना केन्द्रों का महत्व / १४५
बताई है, वज्र ऋपमनाराव संहनन को अनिवार्य माना है । हमने उसे पढ़ा, देखा, जाना और यह मानकर चुप हो गये कि इस पंचम ( कलि ) काल में मोक्ष की प्राप्ति तो हो नहीं मकती । फिर क्यों इस पचड़े में पड़ा जाय ?
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इस विचारधारा का परिणाम यह निकला कि शरीर और भी उपेक्षित हो गया । काया कारमी बन गई । माटी की काया में हमें कहीं कोई दीपक नहीं दिखाई दिया ।
साधना में ज्योति क्यों नहीं ?
साधक अत्यन्त उत्कट भावना से साधना करता है, जप करता है, ध्यान करता है, तप करता है; किन्तु यह देखकर चकित रह जाता है कि इतने दिनों तक, वर्षों तक ध्यान करने पर भी उसकी साधना में चमक नहीं घाई, तेजस्विता नहीं आई साधना फलवती नहीं हो रही है।
और जब यह प्राचीन पुराणों में शास्त्रों में मन्त्र जाप की ध्यान की महिमा पढ़ता है तब तो उसका हृदय और भी निराशा से ग्रस्त हो जाता है ।
यह स्थिति क्यों प्राती है? साधना तेजस्वी क्यों नहीं बनती ? साधना विधि में क्या कहीं कोई भूल रह जाती है ? इसे एक दृष्टान्त से समझें ।
आपने ट्यूबलाइट का उपयोग तो किया ही है । आपके कमरे में लगी भी है । ऐसा भी होता है कि ट्यूब पूरी रोशनी नहीं देता, उसमें विद्युत की क्षीण-सी धारा तो बहती दिखाई देती है; किन्तु जो श्रोर जितना प्रकाश उसे देना चाहिए, उतना नहीं दे रही है ।
आपने दूसरी ट्यूब को देखा, उसका प्रकाश पूरा है। प्राप विचार में पड़ गये पावरहाउस से फुल लोड आ रहा है, ट्यूब, चोक, पट्टी, होल्डर बात हो गई ?
ग्रादि सब कुछ नया है, फिर क्या
मैकेनिक बुलाया आपने, या स्वयं अपने हाथ से ट्यूब को थोड़ा घुमाया, फिराया, एकदम खट की हल्की-सी ध्वनि आपके कानों में आईं और प्रकाश से आँखें चुंधियाँ गईं, ट्यूब प्रकाशित हो उठी, पूरा कमरा प्रकाश से भर गया, रोशनी से जगमगा उठा ।
अब क्या हुआ ? प्रकाश एकदम कैसे हो गया ?
पहले की क्षीण-सी प्रकाश की धारा
एक दम कैसे तेज प्रकाश में परिवर्तित हो गई।
बात यह थी कि ट्यूब के दोनों सिरों पर पीतल की धातु के जो दो पॉइन्ट होते हैं, उनका हल्का सा स्पर्श होल्डर के टर्मिनलों से हो रहा था, बहुत ही मामूली टच (स्पर्श) के कारण क्षोण-सी विद्युतधारा ट्यूब में प्रवाहित हो रही थी; जैसे ही आपने ट्यूब को घुमाया तो टर्मिनलों का परस्पर गहरा सम्बन्ध बना और ट्यूब में पूरा विद्युत प्रवाह बह उठा ।
ट्यूब लाइट में जो महत्त्व धातु के पॉइन्टों का है, साधना में वही महत्त्व शरीर-स्थित चेतना केन्द्रों का है । जिस प्रकार ट्यूब के पॉइन्ट और होल्डर के टर्मिनलों का मध्य मात्र हल्का सा स्पर्श रहा, विद्युत प्रवाह बहुत मन्द रहा, उसी प्रकार जब तक साधक में आत्मचेतना धारा, प्राप्त ऊर्जा शरीर स्थित चेतना केन्द्रों में सामान्य रूप से प्रवाहित होती रहेगी तब तक उसकी साधना भी मन्द रहेगी और ज्यों ही चेतना केन्द्रों तथा म्रात्म-धारा का
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आसमस्थ तम आत्मस्थ मन तव हो सके आश्वस्त जम
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