________________
पंचम खण्ड | १६०
..
अर्चनार्चन
वर्णन है।
यौगिकग्रन्थों में स्पष्ट बताया है कि मन:चक्र जागत होने पर अतीन्द्रिय ज्ञान, प्राज्ञा चक्र से अन्तर्ज्ञान तथा भूत-भविष्य संबंधी ज्ञान तथा सोमचक्र से सर्व प्रकार का प्रत्यक्षीकरण साधक कर लेता है।
यह सर्वजन विदित है कि अतीन्द्रिय ज्ञानी अपनी इच्छानुसार सूक्ष्म, व्यवहित, समीपस्थ और दूरस्थ पदार्थों का साक्षात् ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम होता है। भूत का और भविष्य का भी इसे प्रत्यक्ष हो जाता है।
एक बात यहाँ ध्यातव्य है कि सूक्ष्म अथवा तैजस शरीर में जितने और जिस प्रकार के स्पन्दन होते हैं, वे स्थूल औदारिक शरीर के आन्तरिक भाग में भी बन जाते हैं, अभिव्यक्ति का माध्यम हो जाते हैं। ये ही शक्ति और अभिव्यंजना के केन्द्र अथवा चेतना केन्द्र हैं। इन्हें आधुनिक विज्ञान की भाषा के विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र (Electro-Magnetic Field) कहा जा सकता है। यही अतीन्द्रिय ज्ञान के 'करण' (instrument) बनते हैं। इन्हीं के माध्यम से देशावधिज्ञान कार्यकारी होता है।
___ यद्यपि परंपरा में यह प्रसिद्ध है कि जंबूस्वामी के निर्वाण के उपरान्त अवधि ज्ञान भी व्युच्छित हो गया। किन्तु उसका अभिप्राय परमावधि ज्ञान ही माना जाना चाहिए जिसकी परिणति केवल ज्ञान में होती है। देशावधिज्ञान की व्युच्छित्ति मानना उचित नहीं है, क्योंकि आज भी अनेक योगियों और साधु-सन्तों को प्रत्यक्ष ज्ञान होता देखा जाता है, वे भूत-भविष्य की घटनाओं को साक्षात देखने-जानने में सक्षम होते हैं। सम्यक् तप
अब थोड़ा सा सम्यक् तप पर भी विचार कर लें।
आध्यात्मिक यज्ञ (तप) का स्वरूप बताते हुए हरिके शबल मुनि याज्ञिक ब्राह्मणों से कहते हैं
तवो जोई जीवो जोइठाणं जोगा सूया सरीरं कारिसंगं । कम्मं एहा संजमजोग संती, होमं हुणामि इसिणं पसत्यं ॥
(उत्तरा० १२/४४) यहां 'सरीरं कारिसंगं' शब्द इस निबन्ध की दष्टि से महत्त्वपूर्ण है। हरिकेशबल ने शरीर (औदारिक स्थूल शरीर) को उपमा कारिसंग उपलों (कंडों) से दी है। जितने कंडे पावश्यक अथवा सहकारी होते हैं, उससे भी अधिक आवश्यक है अरणिकाष्ठ ।
आज के युग में जो काम माचिस (दियासलाई) करती है, प्राचीन युग में वही उपयोग अरणिकाष्ठ का था। उसे परस्पर रगड़ कर उसी प्रकार अग्नि उत्पन्न की जाती थी, जिस प्रकार आज दियासलाई को माचिस की डिबिया पर लगे गंधक-फास्फोरस के मिश्रण से रगड़ कर करते हैं।
अब प्रश्न यह है कि क्या संपूर्ण शरीर ही 'कारिसंग' है अथवा शरीर के कुछ विशेष भाग ही। इस प्रश्न के उत्तर के लिए फिर हमें चेतनाकेन्द्रों पर आना पड़ता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org