________________ -यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहासपरकोटे के कोने में राष्ट्रकूट-काल (982 ई.) में निर्मित ११वीं सदी में विष्णुवर्धन के सेनापति भरतमय्य ने कराया। एक मण्डप है, जिसमें राजा इंद्र चतुर्थ का समाधिलेख है। कुछ बाद में उनसे लगा हुआ खुला मण्डप जोड़ा गया। अन्य लेखों में गंगराज के परिवार के नामोल्लेख है। ऐसे कुछ अखण्ड बागिल से कुछ आगे बढ़ने पर तीसरा तोरण और भी यहां मण्डप है, जहां समाधिलेख उत्कीर्ण है। परकोटे के आता है जो कचिन गुब्बि बागिलु कहलाता है और 21 सीढ़ियों बाहर ब्रह्मदेव मंदिर है, जिसमें १०वीं सदी के कुछ महत्त्वपूर्ण बाद एक और तोरण आता है जिसे गुल्लेकायि अज्जि बागिल नामोल्लेख हैं। कहा जाता है। यहाँ से प्राकार प्रारंभ होता है, जिसे होयसल नरेश (2) बड़ा पहाड़ (विन्ध्यगिरि) विष्णुवर्धन के सेनापति एवं अमात्य गंगराज ने 1117 ई. के लगभग बनवाया था। इस प्राकार के भीतर विभिन्न देव-देवियों विन्ध्यगिरि उल्टे कटोरे की आकृति में 650 सीढ़ियों को। की 43 मूर्तियाँ हैं। परकोटा बनने के पूर्व यहाँ गोम्मटेश्वर मूर्ति समेटे 435 फीट ऊँचा सिर उठाए लगभग 58 फीट ऊँची भ.. का निर्माण हो चुका था। इस मूर्ति के सामने खड़े होने पर बायीं बाहुबलि की मनोज्ञ मूर्ति को समाहित किए हुए है। इसका इतिहास और सिद्धर वसदि है, जिसमें सिद्ध भगवान की तीन फीट ऊँची ई. सन् 980 से प्रारंभ होता है। मूर्ति के निर्माण के साथ। बाद में मूर्ति है और उसके दोनों ओर दो कलात्मक छह फीट ऊँचे स्तम्भ है। १२वीं सदी में परकोटा, मूर्ति के समीप दो परिचारक, अष्टदिक्पाल, द्वारमण्डप, मानस्तम्भ और दो कोठरियाँ जोड़ी गईं। अनन्तर पश्चिमी ओर ओडेया मण्डप है, जिसमें पत्थर के आधार अन्य वसदियां भी। पर तीन मूर्तियाँ खड़ी है-नेमिनाथ, आदिनाथ और शांतिनाथ। इसमें कुछ महत्त्वपूर्ण लेख भी हैं। सामने गुल्लेकायि अज्जि सीढ़ियों पर चढ़ते ही बाईं और ब्रह्मदेव का मंदिर (1878 मण्डप है, जिसमें पाँच स्तम्भ, एक शिलालेख और एक वृद्धा ई.) है। बाद में कुछ ऊपर चढ़कर तोरणपथ मिलता है, जिसे की मूर्ति है। यह अज्जि कुरती और चुनरे वाली साड़ी पहने है। १४वीं सदी में बनाया गया। उस पर धरणेन्द्र और गजलक्ष्मी के इसका निर्माण १७वीं सदी में हुआ है। कहा जाता है, अज्जि की चित्र उकेरे गए हैं। यहीं बाहरी किले का प्रवेश द्वार (१८वीं सदी) ही मूल भूमिका थी बाहुबलि स्वामी के मस्तकाभिषेक करनेमिलता है। भीतर जाने पर दायीं ओर एक मंदिर है जो 24 कराने में। दन्तकथा के अनुसार यक्षि पद्मावती ने चामुण्डराय तीर्थंकरों को समर्पित है (१७वीं सदी)। वहीं ओदेगल वसदि ___ का दर्द दलन करने के लिए वृद्धा का रूप धारण किया। नगर (त्रिकूट वस्ती) है, जो सबसे ऊँचा है। 12 स्तम्भों वाला द्वारमण्डप, को भी बिलिगुल्ल (बेंगन) नाम दिया गया। वृद्धा ने इसी फल तीन गर्भगृहों में तीन विशाल मूर्तियाँ और होयसल कला की के खोल से भगवान का अभिषेक किया था। अभिव्यक्ति यहाँ है। इसमें 27 अभिलेख हैं। अज्जिमण्डप के साने वाले खुले प्रांगण में गोम्मटेश्वर की इसके पश्चिम में चागद कंभ (कलात्मक त्यागद स्तम्भ है / भव्य मूर्ति खड़ी है। बाह्य द्वारमण्डप में १७-१८वीं सदी में (१०वीं सदी) जहाँ चामुण्डराय ने संसार त्याग किया था। यह निर्मित दो द्वारपाल शोभित हैं। प्रवेश-द्वार के बायी ओर १२वीं स्तम्भ गंग कारीगरी का उत्कृष्ट नमना है। इसके दायीं ओर दो सदी के कवि बोप्पण पंडित का शिलालेख है, जो गोम्मटेश की मूर्तियाँ हैं, जो शायद चामुण्डराय और नेमिचंद्र सिद्धान्त चक्रवर्ती मूर्ति की चमत्कारात्मकता का वर्णन करता है। भीतरी मण्डप में की है। यहीं पास ही दो तलैया हैं और एक खुला भवन बारह अष्टदिक्पाल हैं और खले प्रांगण में गोम्मटेश की मूर्ति अपनी स्तम्भों वाला। इसका निर्माण चेत्रण ने किया १७वीं सदी में। भव्यता को प्रकट कर रही है। 58'8" ऊँची इस मूर्ति को ई. इसी चेन्नण व सदि में एक संदर मानस्तम्भ भी है। 980 में गंगराज सेनापति चामुण्डराय ने प्रतिष्ठापित किया था। चागद कंभ से आगे चढ़ने पर अखण्ड बागिलु (द्वार) है इस विराट मर्ति को चट्टान से काटकर कुशल शिल्पी अरिष्टनेमि जो एक ही शिला को काटकर बनाया गया है। इसके ऊपर ने गोम्मटेश का रूप दिया। इसके घुघराले केश, नुकीली नासिका, गजलक्ष्मी का बहुत सुंदर चित्र है, पास ही दो कोठरियाँ हैं, जिनमें अर्धनिमीलित नेत्र, सुंदर ओंठ, व्यवस्थित ठुड्डी, 26' चौड़ा भरत बाहुबलि की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। यह सब निर्माण १०वीं- वक्षस्थल देखते ही बनता है। इस मूर्ति के माप के बारे में andramodroinodriwariwarirandisarowarduariwariritonira[131droidnirodeoromaniramirroriramidnirmirandir Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org