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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
२६ वर्ष, क्षर, शर, वर, अप्, सरस, उरस् और मनसु से परे सप्तमी का विकल्प से होता है 'ज' परे हो तो।
२७. प्रावृ वर्षा, शरतु काल और दिन इनसे परे सप्तमी का लुक नहीं होता है, उत्तरपद में 'ज' परे हो । २८. श्वन् शब्द से परे षष्ठी विभक्ति का लुकू नहीं होता शेष आदि शब्द परे हो तो संज्ञा के नियम में। २६. नासिका शब्द से परे तसु, य प्रत्यय तथा क्षुद्र शब्द हो तो नस् आदेश होता है- नस्तः, नस्यम्, नःक्षुद्रः । ३०. क्रियाव्यतिहार में गत्यर्थक शब्दार्थक हिंसार्थक और हस धातु को छोड़कर अन्य धातुओं से तथा हृ और वह धातु से आत्मनेपद होता है।
३१. चत्यार्थक, आहारार्थक और बुध आदि धातुओं से परस्मैपद होता है कर्तृवाच्य में ।
३२. गृणाति, शुभ और रुच धातु से भृश और आभीक्ष्य अर्थ में य प्रत्यय नहीं होता ।
३२. जिज्ञासार्थक शक धातु में कर्ता में आत्मनेपद होता है-नाते ।
३४. अच् प्रत्यय परे हो तो उकारान्त से विहित यङ् का लोप नहीं होता -- योयूयः रोरूयः ।
३५. वाष्प, उष्म, धूम और फेन कर्म से उद्यमन अर्थ में ts प्रत्यय होता है ।
३६. विविधि के प्रसंग के कुछ आचार्य द्वित्व को भी द्वित्व करने के पक्ष में हैं - सुसोसुपिषते ।
३७. जू, भ्रम, वम, त्रस, फण, स्यम, स्वन, राज, भ्राज भ्रास, भ्लास इनमें णवादि सेट् थप परे हो तो अ को ए होता है तथा द्वित्व नहीं होता ।
पण आदि शब्दों को छोड़कर रूप धातु की और तू आदेश होता है।
३६. अनिट् प्रत्यय परे हो तो ष्ठिवु और षिवु धातु को विकल्प से दीर्घ होता है।
४०. पित् वर्जित स्वरादि शित्प्रत्यय परे हो तो इंक धातु को व आदेश विकल्प से होता है।
४१. वि पूर्वक श्रम धातु को नि णित् कृत् प्रत्यय और णि प्रत्यय परे हो तो विकल्प से वृद्धि होती हैविश्रामः विश्रमः ।
अपू, सरस्, उर और मन शब्द नहीं है।
वर्षा शब्द नहीं है ।
संज्ञा का कोई नियम नहीं है ।
इस सम्बन्ध में सूत्र नहीं है ।
वह धातु को भी छोड़ा गया है ।
आहारक अद धातु को छोड़ा गया है ।
गृणाति धातु में निषेध नहीं है ।
ऐसा विधान नहीं है।
यह नियम नहीं है।
धूम शब्द से नहीं होता ।
यह प्रसंग नहीं है, अतः सोसुपिषते ।
चमति धातु
से यह एक विधान नहीं है ।
कृपण आदि शब्दों को नहीं छोड़ा है ।
यह विधान नहीं है ।
इंक धातु को इणवत् माना गया है अतः वैकल्पिक विधान नहीं है।
वृद्धि का निषेध होने से केवल विथम रूप बनता है ।
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