________________ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड -. -. -. -. -. -. -. -. -. -. -. ............................................. 17 18 19 20 21 28 29 30 31 32 35 36 44 46 52 62 2 2 2 2 2 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 कुछ बड़े आँकड़े-अर्जुनलालजी के धार्मिक उपक्रमों के कुछ अन्य आँकड़े भी काफी बड़े और विचित्र हैं / पचासी सहस्र के लगभग सामायिक, पन्द्रहसौ के लगभग पोरसी, प्रतिदिन कम से कम पाँचसौ गाथाओं का स्वाध्याय, बारहसौ के लगभग चतुष्प्रहरी तथा अष्टप्रहरी पौषध उनके अतिरिक्त जो विशिष्ट पौषध उन्होंने किये उनकी तालिका इस प्रकार है१६ प्रहरी 48 प्रहरी 24 प्रहरी 52 प्रहरी 32 प्रहरी 64 प्रहरी 44 प्रहरी 66 प्रहरी m m mm 50 ~ उपर्युक्त पौषधों में 64 प्रहरी तीनों पौषध विभिन्न समय में की गयी तीन अठाईयों में किये गये तथा 16 प्रहरी पौषध 35 दिनों की तपस्या के प्रथम 12 दिनों में किया। अन्तिम समय--अर्जुनलालजी ने अपने जीवन-काल में अनेक दीक्षार्थी भाई-बहिनों की दीक्षा में सहयोग दिया / उनमें साध्वी नजरकंवरजी (वास वाली) भी एक थी। उन्होंने एक बार उनसे कहा कि आपने मेरी दीक्षा के लिए जो प्रयास किया वह मेरे पर आपका एक ऋण है। अवसर आने पर मैं उसे उतारने का प्रयास करूंगी। संवत् 2017 में वह अवसर आ गया। अर्जुनलालजी रुग्ण हो गये और धीरे-धीरे उनकी रुग्णता अन्तिम स्थिति तक पहुँच गयी। माघ का महीना था / उदयपुर में उस समय साधु-साध्वियों का संयोग नहीं था, स्थानीय श्रावक-श्राविकाएँ तथा उनके परिजन ही उन्हें धर्म-आराधना का सहयोग दे रहे थे / आचार्यश्री तुलसी का विहरण उस वर्ष मेवाड़ में हो रहा था / मर्यादा-महोत्सव आमेट में मनाया जाने वाला था। वहाँ संघ एकत्रित हो उससे पूर्व साध्वी नजरकंबरजी आदि कुछ सिंघाड़ों का उदयपुर जाना हुआ। उन्हें जब अर्जुनलालजी की स्थिति का पता लगा तो वे तत्काल उन्हें दर्शन देने के लिए गयीं। यथासमय उन्होंने उनको धार्मिक सहयोग दिया। संवत् 2017 माघ कृष्णा 3 को प्रात: उनकी शारीरिक स्थिति अत्यन्त शोचनीय हो गयी। तब उनकी बहिन ने उनको चौ विहार संथारा करा दिया / पाँच मिनिट के पश्चात् ही उनका देहावसान हो गया। 0000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org