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________________ Jain Ed ६८२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : तृतीय अध्याय ४. पुराणों से भी प्राचीन साहित्य में अवन्ति का उल्लेख है: ( अ ) अवन्तीस्थावन्तीस्त्यावन्तु (आ) देवीं वाचमजनयन्त यद्वाग्वदन्ति...... चाचं देवा उपजीवन्ति विश्वे वाचं गंधर्वा पशवोः मनुष्यः । यात्रीमा विश्वा भुवनान्यर्पिता सानो हवं तामपत्नी वागक्षरं प्रथमजा ऋतस्य वेदानां माताऽमृतस्य नाभिः । सा नो जुषाणोपयज्ञमागात्, अवन्ती देवी सुहवा मे श्रस्तु । तैत्तरीय ब्राह्मण २, ८, ८. (इ) अवन्तयोऽगमगधाः सुराष्ट्राः दक्षिणापथा, उपावृत्सिन्धुसौवीरा एते संकीर्णयोनयः - बौद्धायन धर्मसूत्र १, १२, १८ काशी संस्कृत सीरीज, (१९३४) पृष्ठ १० (ई) स्त्रियामवन्तिकुन्ति कुरुभ्यश्च पाणिनि अष्टाध्यायी, ४, १, १७६. इस प्रकार के अनेक उल्लेख अवन्ति के मिलते हैं. 3 बौद्ध ग्रन्थों में अवन्ति बौद्ध साहित्य में भी अवन्ति के अनेक उल्लेख हैं : १. बौद्ध साहित्य में १६ महाजनपदों के नाम मिलते हैं. उनमें एक जनपद अवन्ति भी बतायी गयी है और उसकी राजधानी का नाम उज्जैन बताया गया है' परन्तु, अन्य स्थल पर एक उल्लेख से ज्ञात होता है कि कुछ कालतक महिस्सति (महिष्मती) अवन्ति की राजधानी थी. २ ગ્ -तैत्तरीय ब्राह्मण ३, ६, ६, १, महावग्ग में इसे दक्षिणापथ में बताया गया है? बुद्ध के समय में यहाँ पज्जोत नाम का राजा राज्य करता था. इनके अतिरिक्त कुछ अन्य प्रसंगों में भी अवन्ति के उल्लेख आये हैं. जैन ग्रंथों में प्रवन्ति का स्थाननिर्णय अवन्ति थी कहाँ, इसका स्पष्टीकरण करते हुए जैन ग्रंथों में आता है : १. उज्जयिनी नगरी प्रतिबद्धे जनपदविशेषे २. अस्थि अवन्ति विसए उज्जेणी पुरवरी जयपसिद्धा । कुलभूषणो य सिट्ठी तम्भज्जा भूसरा नामा | ३. ( अ ) अवती णाम जणव । १. अंगुत्तर निकाय खण्ड १. पृष्ठ २१३, खंड ४ पृष्ठ २५२, २५६, २६०. २. दन्तपुरं कलिङ्गानं, अस्सकानञ्च पोतने । माहिरमति अवन्तीनं, सोवीरानन्व रोरुके । मिथिला च विदेहानं, चम्पा अंगेसु यापिता वाराणसी च कासीनं, एते गोविन्द यापिता || तत्थ य श्रमरावइ सरिसलीलाविलंबिया उज्जेणी नाम नयरी । ३. अवन्ति दक्खिणापथे महावग्ग, पृष्ठ २१४ (नालंदा). ४. विनयपिटक, महावग्ग (मूल) पृष्ठ २१२ (नालंदा). जैन ग्रन्थों में उसका नाम चंडपज्जोय (चण्डप्रद्योत ) आता है. ५. राजेन्द्राभिधान खण्ड १, पृष्ठ ७८७ देखिए 'आवश्यक मलयगिरि' (द्वि०) - सुपासनाहचरियं, पृष्ठ ३६६. - वसुदेव हिंडी पृष्ठ ३६. -दीघनिकाय (२) महावग्ग, सं० १९५८) पृष्ठ १७५. -दीघनिकाय राहुल का अनुवाद पृष्ठ १७१
SR No.211134
Book TitleTambuvan aur Arya Vajra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherZ_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf
Publication Year1965
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size842 KB
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