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प्रा० डॉ० एच० यु० पण्डया
बौद्ध परम्परा कष्टप्रद तप की निंदा करती है' अतः वह दूसरी धारा की ही समर्थक है । यद्यपि जैन परम्परा ने उपवास का एवं अमुक अन्य तप भेदों को स्वीकार किया है फिर भी उसका झुकाव ज्ञानरूप तप की ओर है, अतः वह मुख्यरूपेण दूसरी धारा की समर्थक रही है, क्योंकि अनशन, कायक्लेश आदि को उसने बाह्यतप कहा है ।
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तप की व्यवस्था - प्राचीन काल में तप स्वतंत्ररूप में था । जैसे कि केनोपनिषद् में दम, कर्म, वेद और शिक्षादि वेदांगों की तरह तप को भी स्वतंत्र बताया है । महाभारत में धर्म, विद्या इन्द्रिय संयम, विविध प्राणायाम, नियत आहार, द्रव्ययज्ञ, योग, स्वाध्याय, ज्ञान, दान, दम, अहिंसा, सत्य, अभ्यास और ध्यान से तप को स्वतंत्र बताया है। गीता के काल में यज्ञ, दान, और तप की महिमा अधिक थी, क्योंकि ये तीनों पवित्र करने वाले होने से इनको अनिवार्य माना गया था । अतः इन तीनों का विशद निरूपण करने के लिए गीता में एक स्वतंत्र अध्याय ( १७ ) रखा गया है ।
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इस स्वतन्त्र उपायरूप तप को अन्य से संलग्न करने का प्रयास वैदिक और जैन दोनों परम्पराओं में हुआ है : जैसे-- यद्यपि पतंजलि ने तप और समाधि को सिद्धि प्राप्ति के उपायरूप में स्वतन्त्र बताया है, फिर भी उन्होंने मुख्यरूपेण तप को अष्टांगयोग के द्वितीय अंग ( नियम में और प्राणायाम को चतुर्थ अंग में समाविष्ट किया और तप, स्वाध्याय एवं क्रियायोग को समाधि के लिए आवश्यक माना । " जैन परम्परा में स्थानांग के समय में तप के मुख्य दो भेद स्वीकृत हुए - बाह्य और आभ्यंतर । बाह्य तप के छः भेद हैं- अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्त शय्यासन और कायवलेश । आभ्यंतर तप के भी छः भेद हैं- प्रायश्चित्त, विनय वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान । उमास्वाति ने धर्म के दस अंगों में तप का अंतर्भाव करके तप का संबंध धर्म से जोड़ दिया और यथाशक्ति तप को स्वीकृति देकर ११ एवं अग्नि प्रवेशादि को बालतप ( जो तप देवायुस्थ का आस्रव है ) कहकर सुधारणा की प्रवृत्ति कं
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१. गोतमो सब्बं तपं मर्हति दीघ निकाय १- १६१; संयुत्त ४- ३३०, उद्धृत पालि इंग्लिश डिक्शनरी
लंडन १९५९
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२. केन० ४-८
३. महाभारत वनपर्व २१३।२९
४. भगवद्गीता ४-२ : ४-२६ से ३० ६-४६; १२-१२; १६-१ से ३
५. वही १८-३, ५
६. जन्मौषधिमंत्रतपः समाधिजा सिद्धयः । पातञ्जल योगदर्शन ४-१
७. पातञ्जल योगदर्शन २-२९; ३०
८. वही २- १
९. ठाणांग ५११ १०. तत्त्वार्थसूत्र ९-६ ११. वही ६ - २३ १२ . वही ६ - २०
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