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________________ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ और 'तत्त्वार्थसूत्र' इन पुराने नामों का सर्वशः विस्मृत न कर सकी' । उत्तर काल में तो प्रायः अनेक श्वेताम्बर टीका-टिपणीकाएं द्वारा एकमात्र 'तत्त्वार्थसूत्र' इस नाम को ही एक स्वर से स्वीकार कर लिया गया है। श्रद्धालु जनता में इसका एक नाम मोक्षशास्त्र भी प्रचलित है। इस नाम का उल्लेख इसके प्राचीन टीकाकारों ने तो नहीं किया है। किन्तु इसका प्रारम्भ मोक्षमार्ग की प्ररूपणा से होकर इसका अन्त मोक्ष की प्ररूपणा के साथ होता है। जान पडता है कि एकमात्र इसी कारण से यह नाम प्रसिद्धि में आया है। २. ग्रन्थ का परिमाण वर्तमान में तत्त्वार्थसूत्र के दो पाठ (दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा मान्य ) उपलब्ध होने से इसके परिमाण के विषय में उहापोह होता रहता है। किन्तु जैसा कि आगे चलकर बतलानेवाले हैं, सर्वार्थसिद्धिमान्य पाठ ही मूल तत्त्वार्थसूत्र है। तदनुसार इसके दसों अध्यायों के सूत्रों की संख्या ३५७ है। यथा-अ. १ में सूत्र ३३, अ. २ में सूत्र ५३. अ. ३ में सूत्र ३९, अ. ४ में सूत्र ४२, अ. ५ में सूत्र ४२, अ. ६ में सूत्र २७, अ. ७ में सूत्र ३९, अ. ८ में सूत्र २८, अ. ९ में सूत्र ४७ और अ. १० में सूत्र ९, कुल ३५७ सूत्र । श्वेताम्बर परम्परा में तत्त्वार्थाधिगम भाष्य की रचना होने पर मूलसूत्र पाठ में संशोधन कर दसों अध्यायों में जो सूत्र संख्या निश्चित हुई उसका विवरण इस प्रकार है-अ. १ में सूत्र ३५, अ. २ में सूत्र ५२, अ. ३ में सूत्र १८, अ. ४ में सूत्र ५३, अ. ५ में सूत्र ४४, अ. ६ में सूत्र २६, अ. ७ में सूत्र ३४, अ. ८ में सूत्र २६, अ. ९ में सूत्र ४९, अ. १० में सूत्र ७, कुल ३४४ सूत्र । ३. मंगलाचरण तत्त्वार्थसूत्र की प्राचीन अनेक सूत्र पोथियों में तथा सर्वार्थसिद्धि वृत्ति में इसके प्रारम्भ में यह प्रसिद्ध मंगल श्लोक उपलब्ध होता है-- मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम् । ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये ॥ किन्तु तत्त्वार्थसूत्र की प्रथम वृत्ति सर्वार्थसिद्धि है, उसमें तथा उत्तर कालीन अन्य भाष्य और टीका ग्रन्थों में उक्त मंगल श्लोक की व्याख्या उपलब्ध न होने से कतिपय विद्वानों का मत है कि उक्त मंगल श्लोक मूल ग्रन्थ का अंग नहीं है। सर्वार्थसिद्धि की प्रस्तावना में हमने भी इसी मत का अनुसरण किया है । किन्तु दो कारणों से हमें स्वयं वह मत सदोष प्रतीत है । स्पष्टीकरण इस प्रकार है-- १. सिद्धसेनगणि टीका, अध्याय १ और ६ की अन्तिम पुष्पिका । २. प्रज्ञाचक्षु पं. सुखलालजी द्वारा अनुदित तत्त्वार्थ सूत्र । ३. विशेष के लिए देखो, सर्वार्थसिद्धि प्र., पृ. १७ से । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211095
Book TitleTattvartha Sutra aur Uski Tikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shatri
PublisherZ_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf
Publication Year
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationArticle, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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