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४/ विशिष्ट निबन्ध : २२९
जातिगत उच्चनीच भाव आदि शामिल हो गये हैं। तर्पण श्राद्ध उपाध्यायप्रथा आदि इसमें भी प्रचलित हुए हैं। यज्ञोपवीतादि संस्कारोंने जोर पकड़ा है। दक्षिणमें तो जैन और ब्राह्मणमें फर्क करना भी कठिन हो गया है । तदनुसार ही अनेक ग्रन्थोंकी रचनाएँ हई और सभी शास्त्रके नामपर प्रचलित हैं। त्रिवर्णाचार और चर्चासागर जैसे ग्रन्थ भी शास्त्रके खाते में खतयाए हए हैं। शासन देवताओंकी पूजा प्रतिष्ठा दायभाग आदिके शास्त्र भी बने हैं। कहनेका तात्पर्य यह कि मात्र शास्त्र होने के कारण ही हर एक पुस्तक प्रमाण और ग्राह्य नहीं कही जा सकती। अनेक टीकाकारोंने भी मूलग्रन्थका अभिप्राय समझनेमें भूलें की हैं । अस्तु ।
___ हमें यह तो मानना ही होगा कि शास्त्र पुरुषकृत हैं। यद्यपि वे महापुरुष विशिष्ट ज्ञानी और लोक कल्याणकी सद्भावनावाले थे पर क्षायोपशमिकज्ञानवश या परम्परावश मतभेदकी गुंजायश तो हो ही सकती है। ऐसे अनेक मतभेद गोम्मटसार आदिमें स्वयं उल्लिखित हैं। अतः शास्त्र विषयक सम्यग्दर्शन भी प्राप्त करना होगा कि शास्त्रमें किस युगमें किस पात्रके लिए किस विवक्षासे क्या बात लिखी गई है ? उनका ऐतिहासिक पर्यवेक्षण भी करना होगा। दर्शनशास्त्रके ग्रन्थोंमें खण्डन मण्डनके प्रसंगमें तत्कालीन या पूर्वकालीन ग्रन्थोंका परस्परमें आदान-प्रदान पर्याप्त रूपसे हआ है। अतः आत्म-संशोधकको जैन संस्कृतिको शास्त्र विषयक दृष्टि भी प्राप्त करनी होगी । हमारे यहाँ गुणकृत प्रमाणता है । गुणवान् वक्ताके द्वारा कहा गया वह शास्त्र जिसमें हमारी मलधारासे विरोध न आता हो, प्रमाण है।
इसीतरह हमें मन्दिर, संस्था, समाज, शरीर, जीवन, विवाह आदिका सम्यग्दर्शन करके सभी प्रवृत्तियोंकी पुनः रचना आत्मसमत्वके आधारसे करनी चाहिए तभी मानव जातिका कल्याण और व्यक्तिकी मुक्ति हो सकेगी। तत्त्वाधिगम के उपाय
"ज्ञानं प्रमाणमात्मादेरुपायो न्यास इष्यते।
नयो ज्ञातुरभिप्रायो युक्तितोऽर्थपरिग्रहः ॥" -लघीय० अकलंकदेवने लघीयस्त्रय स्ववृत्तिमें बताया है कि जोवादि तत्त्वोंका सर्वप्रथम निक्षेपोंके द्वारा न्यास करना चाहिए, तभी प्रमाण और नयसे उनका यथावत् सम्यग्ज्ञान होता है । ज्ञान प्रमाण होता है । आत्मादि
उपाय न्यास है। ज्ञाताके अभिप्रायको नय कहते हैं। प्रमाण और नय ज्ञानात्मक उपाय हैं और निक्षेप वस्तुरूप है। इसीलिए निक्षेपोंमें नययोजना कषायपाहुडणि आदिमें की गई है कि अमुक नय अमुक निक्षेपको विषय करता है।
निक्षेप-निक्षेपका अर्थ है रखना अर्थात् वस्तुका विश्लेषण कर उसकी स्थितिकी जितने प्रकारकी संभावनाएं हो सकती हैं उनको सामने रखना। जैसे 'राजाको बलाओ' यहाँ राजा और बलाना इन दो पदोंका अर्थबोध करना है। राजा अनेक प्रकारके होते हैं यथा 'राजा' इस शब्दको भी राजा कहते हैं, पट्टीपर लिखे हुए 'राजा' इन अक्षरोंको भी राजा कहते हैं, जिस व्यक्तिका नाम राजा है उसे भी राजा कहते हैं, राजाके चित्रको या मूर्तिको भी राजा कहते हैं, शतरंजके मुहरोंमें भी एक राजा होता है, जो आगे राजा होनेवाला है उसे भी लोग आजसे ही राजा कहने लगते हैं, राजाके ज्ञानको भी राजा कहते हैं, जो वर्तमानमें शासनाधिकारी है उसे भी राजा कहते हैं । अतः हमें कौन राजा विवक्षित है ? बच्चा यदि राजा मांगता है तो उस समय किस राजाकी आवश्यकता होगी, शतरंज के समय कौन राजा अपेक्षित होता है । अनेक प्रकारके राजाओंसे अप्रस्तुतका निराकरण करके विवक्षित राजाका ज्ञान करा देना निक्षेपका प्रयोजन
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