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२२६ : डॉ. महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ का घर होकर जल्दी क्षीण हो जायगा । इसमें कर्मको क्या अटलता है ? यदि कर्म वस्तुतः अटल होता तो ज्ञानी जीव त्रिगुप्ति आदि साधनाओं द्वारा उसे क्षणभरमें काटकर सिद्ध नहीं हो सकेंगे। पर इस आशयकी पुरुषार्थप्रवण घोषणाएँ मूलतः शास्त्रों में मिलती ही हैं।
स्पष्ट बात है कि कर्म हमारी क्रियाओं और विचारोंके परिणाम है। प्रतिकल विचारोंके द्वारा पूर्वसंस्कार हटाए जा सकते हैं। कर्मकी दशाओं में विविध परिवर्तन जीवके भावोंके अनसार प्रतिक्षण होते ही
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