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जैन-योग का एक महान ग्रन्थ-ज्ञानार्णव : एक विश्लेषण | १३१
परम्परा कैसे चलेगी? मंत्री ने जब राजा को यों उद्विग्न और खिन्न देखा तो राजा से पूछा। मंत्री के बहुत आग्रह पर गजा ने अपने मन की व्यथा उसे कह दी। मंत्री ने कहा-राजन् ! यह किसी के वश की बात नहीं है। यह तो देवाधीन है, पर फिर भी पुण्य के प्रभाव से सांसारिक सुखों की प्राप्ति हो सकती है, इसलिए आप विशेष रूप से पुण्यार्जन कीजिए । मंत्री . की बात राजा को बहुत पसन्द पाई और वह पुण्य-कार्यों में विशेष रुचि लेने लगा, वैसा करने लगा।
एक दिन की घटना है। राजा अपनी रानी और मंत्री के साथ वन-विहार के लिए गया था। एक सरोवर था। उसके पास मुंज-सरकंडों का खेत था। राजा वहाँ घूम रहा था। अकस्मात् उसने देखा-मुंजों की ओट में एक नन्हा सा सुन्दर शिशु पड़ा हुआ है, अपना अंगूठा चूस रहा है। राजा के मन में वात्सल्य उमड़ पड़ा । तत्क्षण शिशु को उठाया और सरोवर की पालि पर बैठी रानी के पास आया । शिशु रानी की गोद में रख दिया। राजा ने रानी को शिशु के सम्बन्ध में सब बताया। मंत्री को भी सारी बात कही। मंत्री ने शिशु के चिह्न देखे और वह बोला-राजन् ! यह बालक सौभाग्यशाली भविष्य लिए हुए है। आप
और महारानी इसे पुत्र के रूप में स्वीकार कर लीजिए । नगर में चलकर प्रसारित करवा दीजिए-महारानी का गर्भ किसी कारण-विशेष से गुप्त रखा गया था-अब राजकुमार का जन्म हुआ है। विशाल पुत्रोत्सव आयोजित कीजिए।
ऐसा ही किया गया। प्रजा में सर्वत्र आनन्द छा गया। शिशु मुंज के नीचे प्राप्त हुना था, इसलिए राजा ने उसका नाम मुंज रखा। राजसी ठाठ-बाट से मुंज का लालन-पालन हुमा, विद्याध्ययन हुना, कला-कौशल का शिक्षण दिया गया । युवा होने पर रत्नावती नामक राजकन्या से उसका विवाह कर दिया गया।
भाग्य का कैसा संयोग था, इधर महाराज सिंह की रानी गर्भवती हुई। पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम सिंहल "सिन्धुराज" रखा गया। राजा और रानी अत्यन्त प्रसन्न थे। राजकुमार सिंहल का सुन्दर रूप में लालन-पालन, शिक्षण प्रादि हुआ । युवा होने पर मृगावती नामक राजकन्या से उसका विवाह कर दिया गया। कुछ समय बाद मृगावती गर्भवती हुई। उसने पुत्र-युगल को जन्म दिया । बड़े का नाम शुभचन्द्र और छोटे का भर्तृहरि रखा गया । बड़ी अद्भुत स्थिति थी। इन दोनों ही बालकों को बचपन से तत्त्व-ज्ञान में बड़ी अभिरुचि थी। इसलिए इन्होंने उधर अच्छी योग्यता भी प्राप्त की।
एक दिन की घटना है, आकाश में बादल छाए थे । राजा सिंह अपने प्रासाद में बैठा था। थोड़ी देर में बादलों का रंग बदल गया और कुछ देर बाद सारे बादल लुप्त हो गये। सारा प्राकाश निर्मल दोखने लगा। अन्तरिक्ष के इस दृश्य का राजा के मन पर बहुत प्रभाव हुआ। राजा को इस साधारण से दृश्य ने अपने अन्तरतम में पैठ कर जीवन की गहराई में डुबकी लगाने को प्रेरित किया। राजा को सांसारिक भोग-सुख आकाश के बादलों के समान क्षण भर में नष्ट हो जाने वाले लगे। जीवन की क्षण-भंगुरता मानो राजा के आगे साक्षात् नाचने लगी। राजा ने मन ही मन सोचा-सांसारिक भोग खूब भोग लिए, क्या सारा जीवन यों ही बिताते चलना है ? अन्तत: उसके मन में विरक्ति हुई। उसने अपने पुत्र मुंज और सिंहल को
आसमस्थ तम आत्मस्थ मन तब हो सके आश्वस्त जन
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